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Supreme Court News: कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण खबर, नौकरी से इस्तीफा देने वाला कर्मचारी पेंशन का नहीं कर सकता दावा

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सेंट्रल सिविल सर्विस पेंशन नियम CCS Pension Rules का हवाला देते हुए कहा, नौकरी से इस्तीफा देने वाला कर्मचारी पेंशन का दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इस्तीफा और स्वैच्छिक सेवा निवृति VRS में काफी अंतर है। इस्तीफे को स्वैच्छिक सेवा निवृति नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने मृत कर्मचारी के परिजन की पेंशन संबंधी मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

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By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सेंट्रल सिविल सर्विस पेंशन नियम CCS Pension Rules का हवाला देते हुए कहा, नौकरी से इस्तीफा देने वाला कर्मचारी पेंशन का दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इस्तीफा और स्वैच्छिक सेवा निवृति VRS में काफी अंतर है। इस्तीफे को स्वैच्छिक सेवा निवृति नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने मृत कर्मचारी के परिजन की पेंशन संबंधी मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि कर्मचारी द्वारा इस्तीफा देने से उसकी पिछली सेवा समाप्त हो जाती है। पेंशन का हकदार नहीं रह जाता। मृत कर्मचारी ने दिल्ली ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन में 30 साल नौकरी की थी। इसके बाद अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। कानूनी वारिसों ने इसी आधार पर पेंशन की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।

मृत कर्मचारी के कानूनी वारिस,जिन्होंने याचिका दायर की थी, डिवीजन बेंच से मांग की, कि कर्मचारी द्वारा भेजे गए त्यागपत्र को इस्तीफा ना मानकर स्वैच्छिक सेवानिवृति माना जाना चाहिए। अगर यह होता है तो पेंशन का हकदार हो जाएंगे। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि नौकरी से त्यागपत्र देना और वीआरएस दोनों में खासा फर्क है, दोनों की अवधारणाएं एकदम अलग है। इस्तीफे के बाद कर्मचारी द्वारा पूर्व की गई सेवा की गणना नहीं की जाती, त्यागपत्र स्वीकार होते ही पिछली सेवा समाप्त हो जाती है। जिससे वह पेंशन का हकदार नहीं रह जाता और पेंशन के लिए दावा भी नहीं कर सकता। पेंशन की पात्रता के लिए उसे अयोग्य ठहरा दिया जाता है।

क्या है मामला

1985 में दिल्ली ट्रांसपोर्ट कार्पोरिशन में याचिकाकर्ता के परिजन को कंडक्टर के रूप में नियुक्त किया गया थी। तकरीनब 30 साल की सेवा के बाद उसने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। कार्पोरेशन ने उसका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया था। इस्तीफा स्वीकार होने के बाद उसने वापस सेवा में जाने के लिए इस्तीफ़ा वापस लेने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुआ, जिससे उसका इस्तीफ़ा अंतिम हो गया। पेंशन, ग्रेच्युटी और छुट्टी के बदले पैसे जैसे रिटायरमेंट लाभ देने से इनकार करने के कार्पोरेशन के फैसले को चुनौती देते हुए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया था। ट्रिब्यूनल ने कार्पोरेशन के फैसले को बरकरार रखते हुए सेवानिवृति लाभ देने से इंकार कर दिया। कैट ने भी ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि कार्पोरेशन ने उसे ग्रेच्युटी, पेंशन और छुट्टी के बदले पैसे के लाभ से गलत तरीके से वंचित किया गया। अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ग्रेच्युटी और छुट्टी के बदले पैसे के लाभ के हकदार थे, लेकिन पेंशन लाभ से इनकार करने के संबंध में विवादित आदेश को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि 30 साल की सेवा पूरी करने के कारण वह पेंशन नियमों के नियम 48-A के तहत पेंशन का हकदार है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता ने वास्तव में 20 साल से ज़्यादा सेवा की थी। नौकरी से त्यागपत्र देने के कारण वह नियम 48-A के तहत पेंशन लाभों का दावा नहीं कर सकता। नियम 48-A के लिए कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के लिए कम से कम तीन महीने पहले नोटिस देना होता है; तभी पेंशन का अधिकार मिलता है।

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