Supreme Court News: जज नहीं हैं देवता, न्याय में ही बसता है भगवान, सुप्रीम कोर्ट ने वकील को किया सावधान, कहा मत करें न्यायाधीशों का महिमामंडन
Supreme Court News: एक मामले की सुनवाई के दौरान जब एडवोकेट आन रिकार्ड ने कहा कि हम अपने न्यायाधीशों में भगवान का स्वरुप देखते हैं, डिवीजन बेंच ने अधिवक्ता से कहा कि जजों में भगवान की तलाश ना करें, कृपया न्याय में भगवान की तलाश करें। पढ़िए क्या है पूरा मामला, अधिवक्ता ने ऐसा क्यो कहा।

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Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच के सामने एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने पैरवी के दौरान कहा कि हम अपने न्यायाधीशों में भगवान का स्वरुप देखते हैं। इस पर जस्टिस एमएम सुंदरेश ने एडवोकेट आन रिकार्ड से कहा कि कृपया हम लोगों में भगवान की तलाश ना करें। न्याय में भगवान की तलाश करें। हम सिर्फ एक लोक सेवक हैं। न्यायाधीश अपने संवैधानिक कर्तव्यों और दायित्वों को निभा रहे हैं।
वकील की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही थी। अधिवक्ता ने एक मुअक्किल के नोटिस को अवमानना पूर्ण करार दिया, जिसमें कहा था कि जज वकीलों द्वारा तय किए जाते हैं। डिवीजन बेंच में वकील की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उन्होंने मामले से बरी करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने अपनी याचिका में कहा कि मुअक्किल उसकी सलाह पर ध्यान नहीं दे रहा है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता की ओर से पैरवी के लिए डिवीजन बेंच में पेश हुए एडवोकेट आन रिकार्ड ने किा कि यह मुद्दा बेहद गंभीर है। जिसने पूरे वकील समुदाय को प्रभावित किया है। एडवोकेट आन रिकार्ड ने कहा कि हम अपने न्यायाधीशों में भगवान का रूप देखते हैं। आगे कहा कि जब हमने 40 साल पहले हमने न्यायिक प्रणाली और कानून का शासन के रूप में शपथ ली थी। हमारे यहो उच्चतम न्यायालय है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता के मुअक्किल ने नोटिस दिया कि न्यायाधीशों को वकीलों के माध्यम से तय किया जा रहा है, यह अवमानना की श्रेणी में आता है। हम एडवोकेट आन रिकार्ड हैं। अगर हमें पता चलता है कि कुछ बेईमानी चल रही है तो हम मामलों से पीछे हट जाते हैं।
न्यायाधीश अपने संवैधानिक कर्तव्यों और दायित्वों को निभा रहे हैं-
डिवीजन बेंच ने एडवोकेट आन रिकार्ड से इस तरह की बातों और टिप्पणियों से भावनात्मक रूप से प्रभावित ना होने की अपील की। डिवीजन बेंच ने कहा कि न्यायाधीश विनम्र लोक सेवक होते हैं और इस तरह की टिप्पणियों से परेशान नहीं होते। डिवीजन बेंच ने कहा कि जजों के बजाय लोगों को न्याय में भगवान को देखना चाहिए। वर्ष 2024 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी इसी तरह की भावना व्यक्त की थी और न्यायाधीशों को भगवान का दर्जा देने के खतरों पर ज़ोर दिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा था कि न्यायाधीशों की भूमिका सार्वजनिक हित की सेवा करना है, न कि देवताओं के रूप में पूजनीय होना। न्यायाधीश अपने संवैधानिक कर्तव्यों और दायित्वों को निभा रहे हैं।
