Supreme Court News: रेव पार्टी और सांप के जहर से जुड़े मामले में गिरफ्तारी पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने एल्विश यादव को दी अंतरिम राहत
Supreme Court News: रेव पार्टी और सांप के जेहर को लेकर विवादों में घिरे और अदालती कार्रवाई का सामना कर रहे यूट्यूबर एल्विश यादव को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। यूट्यूबर की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने निचली अदालत की कार्रवाई पर रोक लगा दी है।

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Supreme Court News: दिल्ली। यूट्यूबर एल्विश यादव को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता यूट्यूबर के खिलाफ निचली अदालत की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। एल्विश पर आरोप है कि यूट्यूब वीडियो बनाने के लिए सांप और सांप के जहर का दुरुपयोग किया है। रेव पार्टी अटेंड किया, जहां विदेशी पर्यटकों ने सांप का जहर और अन्य नशीली दवा उपलब्ध कराई गई।
याचिका की सुनवाई जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 12 मई, 2025 के आदेश के खिलाफ एक याचिका पर नोटिस जारी किया। हाई कोर्ट ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, IPC और NDPS Act के विभिन्न प्रावधानों के तहत जारी आरोप पत्र और समन आदेश के खिलाफ दायर यादव की याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने इस मामले को एक शिकायतकर्ता द्वारा सुरक्षा की मांग करने वाले एक अन्य मामले के साथ मर्ज कर दिया है, जिसकी सुनवाई 29 अगस्त को होगी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने पैरवी करते हुए इस आदेश पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया। अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता यूट्यूबर के खिलाफ एनडीपीएस का मामला नहीं बनता है। इस मामले पर आरोप तय करने के लिए शुक्रवार को सुनवाई होनी थी।
ये है मामला-
नोएडा के सेक्टर-49 पुलिस थाने में दर्ज एक प्राथमिकी से जुड़ा है। यादव के खिलाफ आरोप पत्र में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 9, 39, 48ए, 49, 50 और 51 के साथ-साथ आईपीसी की धारा 284, 289 और 120 बी और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8, 22, 29, 30 और 32 का भी इस्तेमाल किया गया है। गौतमबुद्ध नगर के प्रथम अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आरोपों का संज्ञान लेते हुए समन आदेश जारी किया है।
सीजेएम की नोटिस को हाई कोर्ट में दी थी चुनौती-
यूट्यूबर ने सीजेएम कोर्ट से जारी नोटिस पर रोक लगाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष तर्क पेश करते हुए कहा, एफआईआर स्वयं कानूनी रूप से वैध नहीं है। क्योंकि सूचना देने वाला वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इसे दर्ज करने के लिए सक्षम नहीं है। उन्होंने दलील दी कि सूचनाकर्ता पहले पशु कल्याण अधिकारी के रूप में कार्यरत थे, लेकिन एफआईबार दर्ज होने के समय वह उस पद पर नहीं थे।
अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास से कोई सांप, मादक पदार्थ या नशीली दवाएं बरामद नहीं हुईं और वह उस पार्टी में भी मौजूद नहीं थे जहां कथित अपराध हुए थे। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उनकी गिरफ्तारी के बाद, पुलिस ने मामले को सनसनीखेज बनाने के प्रयास में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27 और 27 ए जोड़ीं, लेकिन बाद में इन आरोपों को हटा दिया क्योंकि वे सिद्ध नहीं कर पाए। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा, उनकी लोकप्रियता या सार्वजनिक स्थिति उन्हें संरक्षण प्रदान करने का आधार नहीं हो सकती।
