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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ समेत 9 राज्यों को भेजा नोटिस, बंगाली मुस्लिम कामगारों को बांग्लादेशी बताकर हिरासत में रखने का आरोप

Supreme Court News: बंगाली मुस्लिम कामगारों को बांग्लादेशी बताकर पुलिस द्वारा हिरासत में रखने के आरोप में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सहित 9 राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। बीते दिनों छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह का मामला सामने आया है। पश्चिम बंगाल के कामगारों ने बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की है।

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By Supriya Pandey

Supreme Court News: दिल्ली। पश्चिम बंगाल के कामगारों को बांग्लादेशी बताकर हिरासत में रखने और बिना वजह परेशान का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ब सहित ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल व केंद्र शासित प्रदेशो को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

पश्चिम बंगाल प्रवासी कामगार कल्याण बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि विभिन्न राज्य प्राधिकरण बंगाली मुस्लिम प्रवासी मजदूरों को बांग्लादेशी बताकर बेतरतीब ढंग से उठा रहे हैं और उन्हें हिरासत में ले रहे हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि लगभग सभी मामलों में, जब मामला सत्यापन के लिए भेजा गया तो पाया गया कि मज़दूर भारतीय नागरिक थे।

दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल के प्रवासी मुस्लिम कामगारों को बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में कई राज्यों में हिरासत में रखा जा रहा है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की और केंद्र के साथ ही 9 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। बेंच ने कहा कि वह केंद्र व राज्य सरकारों से इस बारे में राय मांगेगी कि अखिल भारतीय स्तर पर जो हो रहा है, उसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट उन्होंने आगे कहा, "कुछ मामलों में उन्होंने उन्हें देश से बाहर भी भेज दिया। सत्यापन के बाद उन्हें वापस भारत लाना पड़ा। दिल्ली पुलिस कह रही है कि उनके दस्तावेज़ बांग्लादेशी भाषा में हैं, जबकि बांग्लादेशी भाषा है ही नहीं। यह बांग्ला (यानी बंगाली) है। अधिवक्ता भूषण ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों को विदेशी होने के संदेह में हिरासत में रखा जा रहा है जबकि सरकार को केवल नागरिकता न होने के संदेह पर किसी को हिरासत में लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने दावा किया कि इससे पूरे देश में दहशत फैल रही है। उन्होंने अदालत से मांग की, कि जब तक अधिकारी सत्यापन करते रहें तब तक हिरासत से अंतरिम राहत प्रदान की जाए।

अधिवक्ता ने कहा अधिकारियों को सत्यापन करने दें कोई समस्या नहीं है। समस्या यह है कि वे हिरासत में ले रहे हैं। कुछ लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है। इससे दहशत फैल रही है। विदेशी अधिनियम सरकार को विदेशी होने के संदेह में लोगों को हिरासत में लेने का अधिकार नहीं देता।" इस संबंध में जस्टिस कांत ने कहा, मूल राज्य और जहां वे आजीविका के लिए गए हैं। उनके बीच समन्वय के लिए एक नोडल एजेंसी की आवश्यकता है। जस्टिस बागची ने पूछा कि क्या मौजूदा कानून के तहत राज्य या मूल और उस राज्य के बीच समन्वय के लिए कोई प्राधिकरण है जहां प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ का यह मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट-

29 जून को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर और मुर्शिदाबाद क्षेत्र के 12 निर्माण श्रमिक जो ठेकेदार के माध्यम से बस्तर के कोंडागांव में एक स्कूल निर्माण के लिए श्रमिक के रूप में गए थे, को 12 जुलाई को साइबर सेल पुलिस थाना कोंडागांव ने स्कूल निर्माण साइट से हिरासत में ले लिया था। साइबर सेल में इन 12 श्रमिकों के साथ मारपीट, गाली गलौज और दुर्व्यवहार किया गया। आधार कार्ड आदि पहचान पत्र प्रस्तुत करने के बाद भी पुलिस ने भरोसा नहीं किया।12 और 13 जुलाई की दरमियानी रात जगदलपुर सेंट्रल जेल दाखिल कर दिया। इन श्रमिकों की ओर से बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हाई कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

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