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Supreme Court News: बर्खास्त रेल कर्मी को मिला न्याय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा मृत कर्मी के कानूनी उत्तराधिकारी को दें सभी लाभ..

Supreme Court News: रेल अफसरों की जांच में लेटलतीफी, कैट के फैसले को रेलवे द्वारा हाई कोर्ट में चुनाैती देना और लंबी कानूनी लड़ाई के बीच न्याय की आस पाले रेल कर्मी की मौत हो गई। 37 साल बाद ही सही मृत कर्मचारी को न्याय मिल गया है।

Supreme Court News: बर्खास्त रेल कर्मी को मिला न्याय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा मृत कर्मी के कानूनी उत्तराधिकारी को दें सभी लाभ..
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By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। रेल अफसरों की जांच में लेटलतीफी, कैट के फैसले को रेलवे द्वारा हाई कोर्ट में चुनाैती देना और लंबी कानूनी लड़ाई के बीच न्याय की आस पाले रेल कर्मी की मौत हो गई। इस बीच हाई कोर्ट का फैसला उसके खिलाफ आ गया। कर्मचारी के परिजनों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 37 साल बाद ही सही मृत कर्मचारी को न्याय मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कैट के फैसले को सही ठहराते हुए हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। डिवीजन बेंच ने मृत कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारी को पेंशन सहित सभी लाभ देने का निर्देश दिया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने का डेडलाइन तय कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे यात्रा टिकट परीक्षक TTE की 37 साल पुरानी बर्खास्तगी को यह कहते हुए रद्द कर दी है कि अनुशासनात्मक निष्कर्ष विकृत और साक्ष्यों से परे है। कानूनी लड़ाई के दौरान निधन हो चुके रेल कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारियों को पेंशन सहित सभी लाभ देने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की डिवीजन बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ के आदेश को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण CAT के पूर्व के फैसले को बहाल कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे अधिकारियों की जांच प्रक्रिया और बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा बाद में उसे दी गई मंज़ूरी की कड़ी आलोचना की है।

क्या है मामला

मृतक रेल कर्मचारी 31 मई, 1988 को दादर-नागपुर एक्सप्रेस में ड्यूटी पर था, उसी वक्त विजिलेंस टीम ने उसकी जांच की।जांच के बाद विजिलेंस टीम ने उसके खिलाफ चार आरोप लगाए। यात्रियों से अवैध रिश्वत मांगना, अतिरिक्त कैश रखना, किराए का अंतर वसूल न करना और ड्यूटी पास में जालसाजी करना शामिल था। जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर 1996 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। रेलवे के फैसले काे चुनौती देते हुए कर्मचारी ने कैट में मामला दायर किया।

CAT ने 2002 में अभियोजन पक्ष के मामले में गंभीर खामियों का हवाला देते हुए रेलवे द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया। रेलवे ने कैट के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कैट के आदेश को खारिज कर दिया।

कैट के आदेश में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया गलत

हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए रेलवे कर्मचारी ने 2019 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में CAT के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए हाई कोर्ट की आलोचना की। डिवीजन बेंच ने कहा है कि हाई कोर्ट इस कानूनी स्थिति पर ध्यान देने में विफल रहा है कि जब जांच अधिकारी के निष्कर्ष विकृत थे और जांच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत सामग्री पूरी तरह से भ्रामक थी तो CAT द्वारा दंड के आदेश को रद्द करना पूरी तरह से उचित था।

तीन महीने का तय किया डेडलाइन

CAT के आदेश का समर्थन करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा, अपीलकर्ता के विरुद्ध सभी आरोप निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं हुआ है। घटना 31 मई, 1988 को हुई, यानी 37 साल से भी ज़्यादा पहले। इस बीच दोषी कर्मचारी का निधन हो गया। लिहाजा हाई कोर्ट का विवादित फैसला रद्द किया जाता है। पेंशन लाभ सहित सभी परिणामी मौद्रिक लाभ आज से तीन महीने की अवधि के भीतर मृत रेल कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारी को दिया जाए।

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