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Supreme Court News: अजमेर शरीफ दरगाह बम ब्लास्ट: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, विलंब के बावजूद पीड़ित की अपील पर गुण-दोष के आधार पर फैसला करने हाई कोर्ट को निर्देश

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के अजमेर शरीफ दरगाह में बम विस्फोट मामले में अहम आदेश देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट से कहा कि पीड़ित द्वारा दायर अपीलों पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मामले के गुण-दोष के आधार पर फैसला करे। यह निर्देश उन अपीलों से संबंधित है, जिनमें कुछ आरोपियों को बरी किए जाने और दोषियों को सुनाई गई सजा को कमतर मानते हुए दायर की गई है।

Supreme Court News: अजमेर शरीफ दरगाह बम ब्लास्ट: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, विलंब के बावजूद पीड़ित की अपील पर गुण-दोष के आधार पर फैसला करने  हाई कोर्ट  को निर्देश
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SUPREME COURT NEWS

By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के अजमेर शरीफ दरगाह में बम विस्फोट मामले में अहम आदेश देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट से कहा कि पीड़ित द्वारा दायर अपीलों पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मामले के गुण-दोष के आधार पर फैसला करे। यह निर्देश उन अपीलों से संबंधित है, जिनमें कुछ आरोपियों को बरी किए जाने और दोषियों को सुनाई गई सजा को कमतर मानते हुए दायर की गई है।

जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की डिवीजन बेंच ने यह अंतरिम आदेश अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम और मामले के शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट से कहा कि अपील दायर करने में विलंब के बावजूद मामले की सुनवाई करे और मेरिट के आधार पर फैसला सुनाए।

मामला 11 अक्टूबर, 2007 का है। इस दिन रमज़ान के दौरान इफ्तार के तुरंत बाद अजमेर शरीफ दरगाह परिसर में बम विस्फोट किया गया। बम विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए। जांच के बाद मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA को सौंपा गया। वर्ष 2017 में NIA की स्पेशल कोर्ट ने भवेश पटेल और देवेंद्र गुप्ता को दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अन्य आरोपियों लोकेश शर्मा, चंद्रशेखर लेवे, मुकेश वासानी, हर्षद उर्फ मुन्ना, नाबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, माफत उर्फ मेहुल और भारत मोहनलाल रतेश्वर को आरोप से बरी कर दिया गया था।

अपील दायर करने में 90 दिनों से अधिक की देरी के चलते, सुनवाई से किया था इंकार

शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती ने कोर्ट से बरी किए गए आरोपियों के खिलाफ और दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को दी गई सजा की मात्रा को कमतर बताते हुए राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। मामले की सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने वर्ष 2022 में दायर अपील को तय समयावधि के बाद अपील करने के चलते खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट का कहना था कि अपील दाखिल करने में 90 दिनों से अधिक का विलंब हुआ है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) के तहत इस विलंब को माफ नहीं किया जा सकता, भले ही मामला लगभग पांच वर्षों तक लंबित रहा हो।

हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती

हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सैयद सरवर चिश्ती ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने दलील दी कि NIA एक्ट में दी गई व्यवस्था के तहत अपील दायर करने में विलंब को माफ न करने की कठोर व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है। ऐसी कठोर व्याख्या से अपील का मौलिक अधिकार छिन जाता है। इससे गंभीर आतंकवाद से जुड़े मामलों में पीड़ितों के अधिकार प्रभावित होते हैं।

मेरिट के आधार पर हाई कोर्ट को सुनवाई का दिया निर्देश

मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार के जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपीलों पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मेरिट के आधार पर फैसला करने का निर्देश राजस्थान हाई कोर्ट को दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उपयुक्त आवेदन दायर होने पर हाई कोर्ट अपीलों का निपटारा गुण-दोष के आधार पर करे, भले ही पहले याचिका दायर करने में विलंब के आधार पर उन्हें खारिज कर दिया गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की अगली सुनवाई के लिए 24 मार्च, 2026 की तिथि तय कर दी है।

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