Supreme Court : सुप्रीम फैसला: कांट्रेक्ट पर नियुक्त सरकारी वकील को नियमित नियुक्ति की मांग करने का नहीं है अधिकार
Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अनुबंध के तहत सरकारी कार्यालयों में काम करने वाले सरकारी वकील को नियमित नियुक्ति की मांग करने का अधिकार नहीं है। डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।

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Supreme Court : दिल्ली। अनुबंध के तहत काम करने वाले सरकारी वकील ने नियमित नियुक्ति की मांग करते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने जब उसकी याचिका को खारिज कर दिया तब कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को यथावत रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अनुबंध के तहत काम करने वाले सरकारी वकील को नियमित नियुक्ति की मांग करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता ने जिलाधिकारी, पुरुलिया से अनुबंध पर काम जारी रखने की अनुमति मांगते रहे हैं, ताकि आजीविका चला सके।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता के द्वारा ऐसा कोई संवैधानिक बाध्यता के संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं कराया है जिससे उसे नियमितिकरण का लाभ मिल सके। अतिरिक्त लोक अभियोजक की नियुक्ति के लिए जरुरी मापदंड बनाए गए हैं। नियुक्ति के समय अनुबंध की शर्तों का विस्तार से उल्लेख किया जाता है। लिहाजा अनुबंध पर काम करने वाले व्यक्तियों की नियमितिकरण की मांग अनुचित होने के साथ ही यह कानून के विपरीत है। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने स्पेशल लीव पिटिशन SLP को खारिज कर दिया है।
20 जून, 2014 को जिला मजिस्ट्रेट पुरुलिया ने याचिकाकर्ता को अनुबंध के तहत अतिरिक्त लोक अभियोजक के पद पर नियुक्ति दी थी। प्रति पेशी 459 रुपये की फीस तय की गई थी। एक दिन में दो मामलों में पैरवी करने की शर्त पर अनुबंध किया गया था। पैरवी के दौरान ही याचिकाकर्ता को रघुनाथपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट के कोर्ट में पैरवी के लिए मामले दिए गए। इसी बीच उसने फीस में बढ़ोतरी की मांग करने के साथ ही राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण SAT में नियमितिकरण की मांग करते हुए याचिका दायर कर दी।
ट्रिब्यूनल ने स्वीकार कर ली थी याचिका
मामले की सुनवाई के बाद ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता के नियमितिकरण की मांग को स्वीकार करते हुए राज्य शासन को दिशा निर्देश जारी कर दिया था। न्याय विभाग ने जून 2023 में दावा खारिज कर दिया। न्याय विभाग के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने दोबार ट्रिब्यूनल के समक्ष याचिका दायर की। ट्रिब्यूनल ने न्याय विभाग के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए कहा था कि चाहे तो वे फीस में बढ़ोतरी की मांग के लिए प्राधिकरण के समक्ष अपनी मांग रख सकता है।