"SIR" पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा - आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता
Supreme Court's big decision : जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसे सत्यापित करना आवश्यक है.

Supreme Court's big decision : बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. इस दौरान वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) अभियान पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. जस्टिस सूर्यकांत ने SIR पर चुनाव आयोग के रुख को सही बताया है. उन्होंने कहा कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसे सत्यापित करना आवश्यक है. बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बिहार भारत का हिस्सा है. अगर बिहार के पास नहीं हैं, तो दूसरे राज्यों के पास भी नहीं होंगे. ये कौन से दस्तावेज़ हैं? अगर कोई केंद्र सरकार का कर्मचारी है, तो स्थानीय/एलआईसी द्वारा जारी कोई पहचान पत्र/दस्तावेज.
इस पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती. जन्म प्रमाण पत्र की बात करें तो ये केवल 3.056% के पास ही है. पासपोर्ट 2.7%…14.71 के पास मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह साबित करने के लिए कुछ तो होना ही चाहिए कि आप भारत के नागरिक हैं. हर किसी के पास प्रमाणपत्र होता है, सिम खरीदने के लिए इसकी ज़रूरत होती है. ओबीसी/एससी/एसटी प्रमाण पत्र.
SIR कानून के मुताबिक है या नहीं ?
आज सुनवाई के दौरान इससे पहले जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाए कि एसआईआर प्रक्रिया कानून के मुताबिक है या नहीं. उन्होंने कहा कि हमें बताएं कि ऐसी प्रक्रिया जारी की जा सकती है या नहीं? अगर आप कहते हैं कि ऐसी प्रक्रिया सशर्त योजना के तहत मंजूर है, तो हम प्रक्रिया पर विचार करेंगे. अगर आप कहते हैं कि यह संविधान में ही नहीं है तो फिर उस हिसाब से कार्यवाही होगी. वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि बड़े पैमाने पर बहिष्कार हुआ है. 65 लाख लोग बाहर हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बड़े पैमाने पर हटाया जाना तथ्यों और आंकड़ों पर निर्भर करेगा.
12 जिंदा लोगों को दिखाया मृत
उधर, कपिल सिब्बल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें मृत दिखाया गया है, लेकिन वे जीवित हैं. बीएलओ ने कुछ नहीं किया है. इसपर चुनावा आयोग की तरफ से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह तो बस एक ड्राफ्ट रोल है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आयोग से पूछा हमें आपसे जानना है कि कितने लोगों की पहचान मृत के रूप में हुई है. आपके अधिकारियों ने ज़रूर कुछ काम किया होगा. वकील द्विवेदी ने कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ न कुछ गलतियां तो होंगी ही, लेकिन मृत को जीवित कहना ठीक नहीं है और किसी नए आईए की ज़रूरत नहीं है.
