Satta King, Satta King 786: जानिए कौन था मटका किंग रतन खत्री? कैसे एक आदमी ने मुंबई में सट्टेबाजी का बनाया साम्राज्य?
Satta King, Satta King 786: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के भी अपने-अपने रंग हैं। बीते कई दशकों में मुंबई शहर अनेक घटनाओं का गवाह रहा है। माफियाराज, बड़े बिजनेसमैन और बॉलीवुड के नामी सितारे सब इसी मुंबई में रहे।

Satta King, Satta King 786: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के भी अपने-अपने रंग हैं। बीते कई दशकों में मुंबई शहर अनेक घटनाओं का गवाह रहा है। माफियाराज, बड़े बिजनेसमैन और बॉलीवुड के नामी सितारे सब इसी मुंबई में रहे। इन सबके अलावा एक शख्स था जिसे देश में सट्टे का बादशाह कहा गया था। इस शख्स का नाम रतन खत्री उर्फ मटका किंग था। मुंबई में मटका जुआ काफी सालों से प्रचलन में था लेकिन रतन खत्री ने इस गैरकानूनी काम को पूरे देश से वाकिफ कराया।
क्या था मटका जुआ?
देश में गैरकानूनी माने जाने वाले सट्टे के कारोबार को कई तरीके से इस्तेमाल में लाया जाता रहा है। इसी में एक प्रकार मटका जुएं का था। दिलचस्प बात यह थी कि इस प्रक्रिया में न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज में कपास के दाम खुलने और बंद होने तक सट्टा लगता था। इस दौरान एक मटके में दामों के हिसाब से पर्चियां डाली जाती थी, फिर उन पर्चियों पर लिखे दामों पर सट्टा लगाने वाले शख्स के भाव के अनुसार जीत-हार तय की जाती थी। इसमें जीतने वाले को तय राशि का कई गुना पैसा मिल जाता था।
कौन था मटका किंग खत्री?
सिंधी परिवार से आने वाला रतन खत्री 1947 में विभाजन के बाद पकिस्तान से मुंबई आया था। 60 के दशक में वह मटका जुएं के कारोबार में उतरा। कुछ दिनों तक वह इस गैरकानूनी धंधे के तिकड़म को सीखता रहा फिर कल्याण भगत जी के साथ मटका जुएं के कारोबार में काम किया। रतन खत्री ही वह शख्स था जिसने मटका जुआ जैसे अवैध कारोबार को मुंबई सहित देश के कई जगहों में फैलाया था।
पहला मटका किंग कौन?
अपराध की श्रेणी में आने वाला यह धंधा 1962 तक मुंबई की तकरीबन जनता को पता था। पुलिस भी इस धंधे पर लगाम कसने के लिए छापेमारी करती रहती थी लेकिन यह अवैध धंधा फलता-फूलता रहा। मूल रूप से गुजराती कल्याण भगत जी मुंबई का पहला मटका किंग था। वहीं, रतन खत्री भगत के मैनेजर के रूप में काम करता था। कुछ सालों बाद किसी अनबन के कारण दोनों अलग हो गए और रतन खत्री ने खुद से मटका जुएं का काम शुरू किया।
रतन मटका की शुरुआत
कल्याण भगत जी से अलग होने के बाद रतन खत्री ने “रतन मटका” नाम से इस धंधे को शुरू किया। उसने अपने धंधे से मटके में पर्ची डालने का काम ख़त्म कर नए तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया। इसका फायदा रतन को मिला। मुंह मांगे भावों पर उसकी किस्मत चमकने लगी। बताया जाता है कि 70 के दशक में रतन खत्री का यह गैरकानूनी धंधा उसे महीने में करोड़ों रुपये का मुनाफा देने लगा। थोड़े ही दिनों में रतन ने मटका जुएं को सट्टेबाजी में तब्दील कर दिया।
जब शुरू हुए बुरे दिन
जहां रतन खत्री को लोग अब मटका किंग के आम से जानने लगे थे तो वहीं सरकार की नजर इस अवैध कारोबार पर नकेल कसने की थी। देश में आपातकाल के समय रतन खत्री को जेल में डाल दिया गया। 19 महीनों तक जेल में रहने के बाद रतन खत्री जब बाहर आया तो उसके कारोबार में काफी कुछ नया हो चुका था। हालांकि, कुछ दिनों में ही उसने फिर से वर्चस्व स्थापित कर लिया। 80 के दशक में प्रशासन ने इस कारोबार पर लगाम लगानी शुरू की तो धंधा टूटने लगा।
जानें क्या था पूरा मामला
कई सालों तक सट्टेबाजी में बादशाहत रखने वाले रतन खत्री ने 90 के दशक में मटके के कारोबार को बंद कर दिया। कहा जाता है कि फिर उसने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी पैसा लगाया था। वहीं, साल 2020 में रतन खत्री उर्फ मटका किंग की 88 की उम्र में मौत हो गई।