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Satta King 786: पाकिस्तान से आया ‘मटका किंग’ कैसे बना सट्टेबाजी का बेताज बादशाह? जानें रतन खत्री की पूरी कहानी

Satta King 786: जानिए रतन खत्री की कहानी जिसने मुंबई में मटका सट्टा का करोड़ों का साम्राज्य खड़ा किया। मटका किंग की विरासत, सफलता और विवादों से भरी कहानी।

Satta King 786: पाकिस्तान से आया ‘मटका किंग’ कैसे बना सट्टेबाजी का बेताज बादशाह? जानें रतन खत्री की पूरी कहानी
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By Ragib Asim

Satta King 786: भारत की सट्टेबाजी की दुनिया में अगर किसी एक नाम ने सबसे ज्यादा असर छोड़ा, तो वो नाम है – रतन खत्री। आज इंटरनेट पर आप "Satta King", "Satta King 786", "Matka Result", "Satta Chart" जैसे जो भी शब्द पढ़ते हैं, उनकी जड़ कहीं न कहीं रतन खत्री की बनाई गई 'मटका' व्यवस्था में ही मिलती है। रतन खत्री कोई आम नाम नहीं था, बल्कि मुंबई के अंडरवर्ल्ड और सट्टे की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया था। उनके खेल ने न केवल लाखों लोगों को जोड़ा, बल्कि सरकार की नजरों में भी उन्हें एक खतरनाक शख्सियत बना दिया।

रतन खत्री: बंटवारे की कहानी से मटका साम्राज्य तक

रतन खत्री का जन्म 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौर में हुआ। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया और उन्होंने मुंबई को अपना ठिकाना बनाया। वहीं से शुरू हुई मटका किंग की कहानी। 1962 में, जब भारत में सट्टेबाजी पारंपरिक रूप से गुपचुप होती थी, रतन खत्री ने इसे एक संगठित नेटवर्क में बदल दिया – "मटका", जिसमें शुरुआत में न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज की कीमतों पर दांव लगते थे।

कैसे काम करता था मटका?

शुरुआत में लोग न्यूयॉर्क कॉटन की कीमतों पर दांव लगाते थे। बाद में रतन खत्री ने ताश के पत्तों से नंबर निकालने की एक नई प्रणाली शुरू की। एक मटका (मिट्टी का बर्तन) में नंबर लिखे पर्चे डाले जाते थे, और एक व्यक्ति पर्ची निकालकर लकी नंबर घोषित करता था। यह खेल सस्ता, तेज़ और अनुमान आधारित था, जिसने हर वर्ग को आकर्षित किया।

मटका से ‘किंग’ बनने तक का सफर

रतन खत्री ने पहले कल्याणजी भगत के साथ मिलकर वर्ली मटका का संचालन किया। लेकिन बहुत जल्द उन्होंने अपना अलग ब्रांड – "रतन मटका" शुरू किया, जिसने उन्हें शोहरत की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। 1960 के दशक में वे मुंबई की सट्टा दुनिया के राजा बन चुके थे। पुलिस और प्रशासन की छापेमारी के बावजूद उनका नेटवर्क मजबूती से खड़ा रहा। उनका नाम बॉम्बे अंडरवर्ल्ड, बॉलीवुड, और राजनीतिक गलियारों में भी सुना जाने लगा।

संघर्ष, जेल और अंत

आपातकाल (1975-77) के दौरान रतन खत्री को 19 महीने जेल में रहना पड़ा। 1990 के बाद मटका व्यवसाय धीरे-धीरे ढलान पर आने लगा, लेकिन खत्री का नाम अब भी चमकता रहा। उन्होंने मटका छोड़ दिया और 2020 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी बनाई ‘व्यवस्था’ आज भी गैरकानूनी रूप से जिंदा है।

रतन खत्री की विरासत और विवाद

रतन खत्री का नाम हमेशा विवाद और ग्लैमर के बीच झूलता रहा। वे आधुनिक सट्टेबाजी के जनक कहे जाते हैं। उनके बनाए गेम मैकेनिज़्म को आज भी Satta King, Gali, Desawar, Satta 786 जैसे नामों से खेला जा रहा है – भले ही वो अवैध हो।

बॉलीवुड से भी जुड़ा रहा नाम – हाल ही में चंदू चैंपियन में चर्चा में

कार्तिक आर्यन की फिल्म "चंदू चैंपियन" ने फिर एक बार रतन खत्री के किरदार को चर्चा में ला दिया है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर कई फिल्मों में सट्टेबाजी की झलक दिखाई गई है।

Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। NPG News किसी भी तरह के जुए या सट्टेबाज़ी को बढ़ावा नहीं देता। भारत में सट्टा अवैध है और इसमें शामिल होने से कानूनी कार्रवाई और आर्थिक नुकसान हो सकता है। विवेकपूर्वक निर्णय लें।

Ragib Asim

Ragib Asim-रागिब असीम एक अनुभवी पत्रकार हैं, जो वर्तमान में एनपीजी न्यूज (डिजिटल) में न्यूज़ एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। बिहार के बेतिया में जन्मे और पले-बढ़े रागिब ने अपने करियर की शुरुआत प्रिंट मीडिया से की, जिसके बाद उन्होंने डिजिटल मीडिया की ओर सफलतापूर्वक रुख किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें 10 वर्षों से भी अधिक का अनुभव प्राप्त है, विशेष रूप से न्यू मीडिया में उनकी गहरी पकड़ है। अपने करियर के दौरान उन्होंने हिंदुस्तान समाचार, न्यूज़ ट्रैक, जनज्वर और स्पेशल कवरेज न्यूज़ हिंदी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य किया है। विज्ञान, भू-राजनीति, अर्थव्यवस्था और समसामयिक विषयों में उनकी विशेष रुचि है। रागिब असीम सटीक, तथ्यपरक और पठनीय कंटेंट के माध्यम से अपने पाठकों को गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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