नेपाल के बाद अब फ्रांस में हाहाकार: सडकों पर क्यों उतरे 1 लाख से अधिक लोग, जानिये क्या थी मुख्य वजह?
नेपाल के बाद अब फ्रांस में भी व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है...

France Anti-Government Protests (NPG File Photo)
नई दिल्ली। नेपाल में बीते सोमवार और मंगलवार को सरकार के खिलाफ हुए आंदोलन की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि, दुनिया के एक और क्षेत्र में सरकारी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शनों की शुरुआत हो गई है। बता दें कि, फ्रांस में भी इन दिनों हालात ठीक नहीं हैं। पेरिस से लेकर कई और शहरों तक, सड़कों पर लोग उतर आए हैं और उनका गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा है।
यह सब कुछ 'ब्लॉक एवरीथिंग' नाम के एक बड़े प्रदर्शन की वजह से हो रहा है, जिसने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। यह आंदोलन, जिसकी शुरुआत सोशल मीडिया और चैट ग्रुप्स से हुई थी, अब पूरे देश में फैल चुका है और एक बड़े जन-आक्रोश का रूप ले चुका है।
क्यों शुरू हुआ प्रदर्शन?
जानकारी के अनुसार, यह विरोध प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू के 2026 के लिए राष्ट्रीय बजट पेश करने के बाद 15 जुलाई को शुरू हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बजट में सरकार ने 4.38 करोड़ यूरो (करीब 452 करोड़ रुपये) की बड़ी कटौती का प्रस्ताव रखा था। सरकार का मकसद था कि, इस कदम से बढ़ते हुए आर्थिक घाटे को कम किया जा सके। लेकिन, इस बजट में तीन ऐसी बातें थीं जिन्हें फ्रांसीसी जनता ने बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया, और इसी के बाद से विरोध की आग भड़क उठी।
आंदोलन की अगुवाई और सरकार का संकट
इन विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई 'द सिटीजन कलेक्टिव' नाम का एक संगठन कर रहा है, जिसमें करीब 20 आयोजक शामिल हैं। यह संगठन खुद को किसी भी राजनीतिक दल या व्यापार संगठन से जुड़ा हुआ नहीं बताता। सोशल मीडिया पर #10septembre2025 और #10septembre जैसे हैशटैग्स के साथ पोस्ट्स की बाढ़ आ गई है, जो इस आंदोलन को और भी ताकत दे रहे हैं।
सरकार ने इस बढ़ते गुस्से को भांपते हुए अगस्त के अंत में एक बड़ा कदम उठाया। प्रधानमंत्री बायरू ने संसद में बजट पर विश्वास मत लाने का फैसला किया। उनका मानना था कि, अगर सरकार इसे पास कराने में कामयाब होती है, तो यह माना जाएगा कि जनता के प्रतिनिधियों का इस खर्च कटौती को समर्थन है। लेकिन अगर वो हार जाते, तो इस्तीफा दे देते। सोमवार (8 सितंबर) को जब वोटिंग हुई, तो बायरू विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इससे फ्रांस की सरकार की योजनाएं अधर में लटक गईं और राजनीतिक अस्थिरता और भी बढ़ गई।
सड़कों पर हाहाकार, 200 से ज्यादा गिरफ्तारियां
सड़कों पर हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि गृह मंत्री ब्रूनो रिटेलो ने बताया कि विरोध प्रदर्शन के शुरुआती घंटों में ही लगभग 200 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पेरिस समेत कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आगजनी की, बसों को आग के हवाले कर दिया और कई जगह रेलवे लाइनों को भी नुकसान पहुंचाया, जिससे ट्रेन सेवाएं बाधित हुईं। पुलिस को भीड़ को हटाने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े, लेकिन इसके बावजूद लोग डटे रहे।
फ्रांस में यह संकट ऐसे समय में आया है जब नेपाल में भी इसी तरह का Gen Z आंदोलन चल रहा है, जहां युवा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और राजनीतिक अस्थिरता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। फ्रांस में भी, युवा प्रदर्शनकारी पुलिस पर चीजें फेंक रहे हैं, ट्रैफिक रोक रहे हैं और सरकार की नीतियों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं।
मैक्रों के लिए 'अग्नि परीक्षा'
प्रधानमंत्री बायरू के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति मैक्रों ने तुरंत नए प्रधानमंत्री सेबास्टियन लेकोर्नू को नियुक्त किया है। लेकोर्नू पिछले तीन सालों से रक्षा मंत्री रहे हैं और मैक्रों के काफी करीबी माने जाते हैं। लेकिन उनका प्रधानमंत्री बनना एक 'अग्नि परीक्षा' साबित हो रहा है, क्योंकि कार्यभार संभालते ही उन्हें देश भर में विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ रहा है।
इस आंदोलन की कोई एक साफ वजह नहीं है, लेकिन इसके पीछे बजट में कटौती, बढ़ती सामाजिक असमानता और सरकार की नीतियों के खिलाफ लोगों की गहरी नाराजगी साफ दिखाई दे रही है। 'ब्लॉक एवरीथिंग' आंदोलन, जिसकी अगुवाई वामपंथी समूह कर रहा है, मैक्रों सरकार के खिलाफ जन-आक्रोश को एक मजबूत आवाज दे रहा है। लेकोर्नू के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस राजनीतिक अस्थिरता को खत्म करके जनता का भरोसा जीतना है।
