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Mahila arakshan: तो छत्‍तीसगढ़ की इन 30 सीटों पर खत्‍म हो जाएगी पुरुषों की राजनीति, महिलाएं को मिलेगा मौका

Mahila arakshan: संसद के विशेष सत्र के साथ ही महिला आरक्षण को लेकर सरगर्मी फिर तेज हो गई है। लंबे समय से लोकसभा में लंबित महिला आरक्षण विधेयक को पेश करने की मांग कांग्रेस कर रही है।

Mahila arakshan: तो छत्‍तीसगढ़ की इन 30 सीटों पर खत्‍म हो जाएगी पुरुषों की राजनीति, महिलाएं को मिलेगा मौका
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By Sanjeet Kumar

Mahila arakshan: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इनमें 29 सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 10 सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। बाकी सभी सीटें सामान्‍य हैं। यानी बाकी बची 51 सीटों से कोई भी चुनाव लड़ सकता है। आरक्षित या अनारक्षित लगभग अधिकांश सीटों पर पार्टियां पुरुष उम्‍मीदवारों को ही टिकट देती हैं। महिला उम्‍मीदवारों की संख्‍या बहुत ही कम होती है। राष्‍ट्रीय राजनीतिक दल भी बमुश्किल पांच से 10 ही महिलाओं को टिकट देती हैं, लेकिन जल्‍द ही इसमें बदलाव हो सकता है। इस बदलाव का असर राज्‍य की 90 में से 30 सीटों पर पड़ेगा। राज्‍य की 30 सीटें इन में कुछ आरक्षित सीटें भी आएंगी, ऐसी हो जाएगी कि उन पर केवल महिलाएं ही चुनाव लड़ पाएंगी।

दरअसल, मामला महिला आरक्षण से जुड़ा हुआ है। संसद के विशेष सत्र को लेकर कांग्रेस महिला आरक्षण (Mahila arakshan) बिल की मांग जोरशोर से कर रही है। इस मांग को लेकर कांग्रेस राष्‍ट्रीय स्‍तर से लेकर प्रदेश स्‍तर तक सक्रिय हो गई है। सरकार अगर महिला आरक्षण बिल संसद पास हो जाता है तो विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में करीब 33 प्रतिशत सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगे। इस हिसाब से छत्‍तीसगढ़ की 90 सीटों में से कम से कम 30 सीटों पर केवल महिलाएं ही चुनाव लड़ पाएंगी।

Mahila arakshan राज्‍य सभा से पारित हो चुका है महिला आरक्षण विधेयक

महिला आरक्षण विधेयक (Mahila arakshan) लंबे समय से संसद में लंबित है। मार्च 2010 में महिला आरक्षण विधेयक राज्‍यसभा से पारित हो चुकी है और अब यह लोकसभा में लंबित है। बताया जा रहा है कि इस विधेयक पर कोई भी दल एकमत नहीं दिख रहा है। मौजूदा लोकसभा में केवल 14 प्रतिशत महिला संसद हैं।

छत्‍तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण Mahila arakshan

छत्‍तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनावों में 33 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए (Mahila arakshan) आरक्षित हैं। बताया जा रहा है केंद्र सरकार नगरीय निकायों में महिला आरक्षण का दायरा 33 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की तैयारी में है। इसकी प्रक्रिया करीब दो वर्ष से भी अधिक समय से चल रही है। केंद्र सरकार ने इसको लेकर राज्‍यों से राज्‍य मांगी थी। छत्‍तीसगढ़ सरकार नगरीय निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रस्‍ताव पर सहमति दे चुकी है। बता दें कि राज्‍य में 14 नगर निगम, 43 नगर पालिका और 112 नगर पंचायत मिलाकर 169 निकायों में 3260 वार्ड हैं। निकायों में अभी महिलाओं के लिए 33% आरक्षण है। इस लिहाज से महिला पार्षदों की संख्या 1076 है। यह भी बताते चले कि राज्‍य में नगरीय निकायों में महिला आरक्षण की व्‍यवस्‍था 2007-08 में लागू की गई। तत्‍कालीन भाजपा सरकार महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया था।

महिला आरक्षण (Mahila arakshan) को लेकर पीसीसी चीफ का भाजपा पर हमला

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद दीपक बैज ने कहा कि कांग्रेस पार्टी पिछले नौ साल से मांग कर रही है कि महिला आरक्षण (Mahila arakshan) विधेयक, जो पहले ही राज्यसभा से पारित हो चुका है, उसे लोकसभा से भी पारित कराया जाना चाहिए। राज्यसभा में पेश/पारित किए गए विधेयक समाप्त (Lapse) नहीं होते हैं। इसलिए महिला आरक्षण विधेयक अभी भी जीवित (Active) है। महिलाओं को उनका हक देने केन्द्र सरकार लोकसभा के विशेष सत्र में विधेयक को प्रस्तुत करे। भाजपा का चरित्र महिला विरोधी है। अतः वह महिला विधेयक पारित कराएगी इसकी संभावना कम ही है। भाजपा हमेशा से ही महिलाओं के लिये दुर्भावना रखती है। भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस में जो महिलाओं को पदाधिकारी नहीं बनाया जाता है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बैज ने कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से आधी आबादी को उसका पूरा अधिकार देने की पक्षधर रही है। कांग्रेस की सरकारों ने समय-समय पर इस हेतु प्रभावी कदम भी उठाया है। सबसे पहले राजीव गांधी ने 1989 के मई महीने में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। वह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पास नहीं हो सका। अप्रैल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया। दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए। महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह संविधान संशोधन विधेयक लाए। विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ।

बैज ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों के प्रयास से ही आज देशभर में पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं। यह 40 प्रतिशत के आसपास है। भाजपा महिलाओं को उनका हक देने विरोधी रही है। आज लोकसभा में भाजपा की मोदी सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल है। अतः भाजपा चाहे तो महिलाओं को उसका अधिकार अवश्य मिल जायेगा। कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति में भी महिला आरक्षण के लिये प्रस्ताव पारित किया है। वर्तमान केन्द्र सरकार महिला आरक्षण बिल नहीं पारित करेगी तो कांग्रेस की सरकार बनने के बाद महिलाओं को उनका अधिकार कांग्रेस देगी।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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