Maharashtra Three Language Policy: महाराष्ट्र में NEP 2020 की तीन भाषा नीति पर बवाल! राज ठाकरे बोले, 'हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं!'
Maharashtra Three Language Policy: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत तीन भाषा नीति को लेकर तमिलनाडु के बाद अब महाराष्ट्र में भी विवाद गहरा गया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले की कड़ी आलोचना की है।

Maharashtra Three Language Policy: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत तीन भाषा नीति को लेकर तमिलनाडु के बाद अब महाराष्ट्र में भी विवाद गहरा गया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे “महाराष्ट्र पर हिंदीकरण थोपने” की कोशिश करार देते हुए चेतावनी दी कि उनकी पार्टी इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। ठाकरे ने केंद्र और राज्य की BJP सरकार पर निशाना साधते हुए इसे “चुनावी राजनीति” का हिस्सा बताया।
राज ठाकरे ने क्या कहा?
राज ठाकरे ने X पर मराठी में लिखा, “राज्य शालेय अभ्यासक्रम आराखडा 2024 नुसार महाराष्ट्रात पहिलीपासूनच हिंदी ही भाषा अनिवार्य करण्यात आली आहे। मी स्वच्छ शब्दांत सांगतो की ही सक्ती महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना खपवून घेणार नाही। केंद्र सरकारचं सध्या जे सर्वत्र ‘हिंदीकरण’ करण्याचे प्रयत्न सुरू आहेत, ते या राज्यात आम्ही यशस्वी होऊ देणार नाही।”
उन्होंने आगे कहा:
- “हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं, बल्कि देश की अन्य भाषाओं की तरह एक आधिकारिक भाषा है। इसे महाराष्ट्र में पहली कक्षा से क्यों पढ़ाया जाए?”
- “तीन भाषा फॉर्मूला सरकारी कार्यों तक सीमित रखें, शिक्षा में इसे थोपने की कोशिश न करें।”
- “हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं। अगर महाराष्ट्र पर हिंदीकरण थोपा गया, तो संघर्ष अवश्यंभावी है।”
- “क्या यह मराठी बनाम गैर-मराठी का टकराव पैदा कर आगामी चुनावों में राजनीतिक लाभ लेने की साजिश है?”
ठाकरे ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाए रखा, तो MNS हिंदी किताबों को दुकानों पर बिकने से रोकेगी और विरोध तेज करेगी।
महाराष्ट्र में तीन भाषा नीति का विवाद
महाराष्ट्र सरकार ने NEP 2020 के तहत 2025-26 शैक्षणिक सत्र से कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का फैसला किया है। यह निर्णय 16 अप्रैल 2025 को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी सरकारी संकल्प (GR) के जरिए लागू किया गया।
NEP 2020 की तीन भाषा नीति के अनुसार:
- छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, जिनमें से दो भारतीय मूल की होनी चाहिए।
- गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा, हिंदी, और अंग्रेजी पढ़ाई जा सकती है।
- राज्यों को भाषा चुनने की छूट है, लेकिन महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य करने से विवाद खड़ा हो गया है।
महाराष्ट्र में मराठी और अंग्रेजी पहले से ही अनिवार्य हैं, और अब हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में जोड़ा गया है। सरकार का तर्क है कि यह नीति राष्ट्रीय एकता और भाषाई विविधता को बढ़ावा देगी।
राज ठाकरे का BJP पर हमला
ठाकरे ने BJP के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा:
- “महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति खराब है, सरकार के पास योजनाओं के लिए पैसा नहीं है।”
- “मराठी युवा बेरोजगार हैं, और किसानों का कर्ज माफी का वादा अधूरा है।”
- “उद्योग महाराष्ट्र से पलायन कर रहे हैं, लेकिन सरकार हिंदी थोपने में व्यस्त है।”
उन्होंने दावा किया कि यह नीति “मराठी अस्मिता” के खिलाफ है और गैर-मराठी भाषी लोगों को भी इसका विरोध करना चाहिए, क्योंकि यह “राजनीतिक उकसावे” का हिस्सा है।
तमिलनाडु का प्रभाव
तमिलनाडु में DMK सरकार ने NEP 2020 की तीन भाषा नीति को “हिंदी थोपने का छिपा प्रयास” करार देते हुए इसका कड़ा विरोध किया है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने दावा किया कि यह नीति क्षेत्रीय भाषाओं, जैसे मराठी और तमिल, को कमजोर कर रही है। तमिलनाडु ने दो भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) को बनाए रखने का फैसला किया है। ठाकरे ने तमिलनाडु के इस रुख की सराहना की और कहा कि महाराष्ट्र को भी इससे सीख लेनी चाहिए।
विपक्ष का रुख
कांग्रेस ने भी महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य बनाने के फैसले की आलोचना की है। पार्टी ने इसे “मराठी भाषा और संस्कृति पर हमला” बताया। पूर्व शिक्षा निदेशक वसंत कालपांडे ने कहा कि छात्रों को हिंदी के बजाय तमिल, कन्नड़, या तेलुगु जैसी अन्य भारतीय भाषाएं चुनने का विकल्प मिलना चाहिए।
महाराष्ट्र में NEP 2020 की तीन भाषा नीति और हिंदी की अनिवार्यता ने भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को लेकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। राज ठाकरे का आक्रामक रुख और तमिलनाडु का समर्थन इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर ले जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकार को इस संवेदनशील मुद्दे पर सावधानी से कदम उठाने होंगे, ताकि भाषाई विविधता का सम्मान बरकरार रहे।