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Gandhi jayanti 2025: आखिर 'मोहनदास करमचंद गांधी' कैसे बने भारत के राष्ट्रपिता और किसने दिया उन्हें बापू का दर्जा, जानें इसके पीछे का पूरा इतिहास

Mahatma Gandhi interesting facts: महात्मा गांधी एक ऐसी सख्सियत जिनका नाम भारत के इतिहास में दर्ज है। उन्होंने न सिर्फ देश को आजादी की राह दिखाई, बल्कि पूरी दुनिया को अहिंसा, सत्य और प्रेम का संदेश दिया।

Gandhi jayanti 2025: आखिर मोहनदास करमचंद गांधी कैसे बने भारत के राष्ट्रपिता और किसने दिया उन्हें बापू का दर्जा, जानें इसके पीछे का पूरा इतिहास
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Gandhi jayanti 2025

By Ashish Kumar Goswami

Gandhi jayanti 2025: भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात हो और महात्मा गांधी का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। 'मोहनदास करमचंद गांधी', जिन्हें आज हम प्यार से 'बापू' कहते हैं, जिन्होंने न सिर्फ भारत को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई, बल्कि पूरी दुनिया को अहिंसा, सत्य और प्रेम का संदेश दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, उन्हें 'महात्मा', 'बापू' और 'राष्ट्रपिता' जैसे सम्मानजनक नाम किसने दिए? आइए जानते हैं इन ऐतिहासिक उपाधियों के पीछे की दिलचस्प कहानी।

गांधी जी को 'महात्मा' किसने कहा?

'महात्मा' शब्द का अर्थ होता है 'महान आत्मा'। इतिहासकारों के अनुसार, कहा जाता है कि, रवींद्रनाथ टैगोर जी ने गांधी जी को यह उपाधि दी थी। लेकिन गुजरात सरकार के अनुसार, सबसे पहले यह उपाधि सौराष्ट्र के एक अज्ञात पत्रकार ने दी थी। हालांकि, ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, गांधी जी को पहली बार 'महात्मा' कहने वाले व्यक्ति गोंडल रियासत के राजवैद्य और आयुर्वेदाचार्य जीवराम शास्त्री थे। उन्होंने यह उपाधि गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ चलाए गए आंदोलन की सफलता के बाद दी थी।


इसके बाद 27 जनवरी 1915 को गुजरात के रससाला में एक भव्य स्वागत समारोह में गांधी जी को औपचारिक रूप से 'महात्मा' की उपाधि दी गई। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य महान व्यक्तियों ने भी उन्हें इसी नाम से पुकारा, जिससे यह उपाधि पूरे देश में प्रसिद्ध हो गई।

'बापू' कहने की शुरुआत कैसे हुई?

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, 'बापू' एक सम्मानजनक संबोधन है जिसका अर्थ है "पिता"। गांधी जी को यह नाम उनके अनुयायियों और देशवासियों ने स्नेहपूर्वक दिया। उनके सादगीपूर्ण जीवन, लोगों के प्रति प्रेम और त्याग ने उन्हें एक पिता जैसी छवि प्रदान की। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधी जी का सादा पहनावा, हाथ में लाठी और जनसेवा की भावना ने उन्हें देश के 'बापू' के रूप में स्थापित कर दिया। यह नाम धीरे-धीरे पूरे देश में लोकप्रिय हो गया।


'राष्ट्रपिता' की उपाधि किसने दी?

गांधी जी को 'राष्ट्रपिता' कहने का श्रेय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जाता है। उन्होंने 1944 में गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा गांधी के निधन पर भेजे गए शोक संदेश में उन्हें 'राष्ट्रपिता' कहा था। हालांकि, गांधी जी के निधन के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर देश को संबोधित करते हुए कहा था, "राष्ट्रपिता अब नहीं रहे"। इससे यह उपाधि और भी व्यापक रूप से स्वीकार की गई।

दक्षिण अफ्रीका से भारत वापसी और आंदोलन की शुरुआत

गांधी जी ने इंग्लैंड में कानून (वकालत) की पढ़ाई की और फिर दक्षिण अफ्रीका में जाकर रंगभेद के खिलाफ आंदोलन चलाया। वहां के अनुभवों ने उन्हें सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। भारत लौटने के बाद उन्होंने चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने हमेशा अहिंसा और सत्य की राह पर चलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी।


गांधी जी के विचार और समाज सुधार

गांधी जी का मानना था कि, अगर समाज में बदलाव लाना है, तो पहले खुद को बदलना होगा। उन्होंने छुआछूत, जातिवाद और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। उनका जीवन सादगी, नैतिकता और आत्मसंयम का प्रतीक था। उन्होंने सभी धर्मों को समान माना और सभी वर्गों को एक साथ लेकर चलने की कोशिश की।

गांधी जयंती का महत्व

आपको बता दें की हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है। यह दिन हमें उनके विचारों, संघर्ष और योगदान को याद करने का अवसर देता है। संयुक्त राष्ट्र ने भी इस दिन को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' घोषित किया है। गांधी जी को मिले ये उपनाम सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं का सम्मान हैं। 'महात्मा' उनके महान विचारों का प्रतीक है, तो 'बापू' उनके स्नेह और मार्गदर्शन का, पटरिक माना जाता रहा है।

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