Article 370 News : 5000 लोगों की नजरबंदी मामले में केंद्र पर बरसे सिब्बल, बोले - 'लोकतंत्र का मजाक मत बनाओ'
Article 370 News : वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने गुरुवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के यह कहने के बाद कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद "कोई बंद नहीं हुआ" है, कहा कि केंद्र "लोकतंत्र का मजाक" न बनाए...
Article 370 News : वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने गुरुवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के यह कहने के बाद कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद "कोई बंद नहीं हुआ" है, कहा कि केंद्र "लोकतंत्र का मजाक" न बनाए। पांच हजार लोगों को नजरबंद रखने का क्या मायने है।
सुनवाई के 13वें दिन की शुरुआत में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कोई निश्चित समयसीमा नहीं दे सकता और केंद्र सरकार घाटी में किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है।
एसजी मेहता ने अलग-अलग आंकड़ों का हवाला देते हुए दलील दी कि क्षेत्र लगातार प्रगति कर रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष लगभग 1.88 करोड़ पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था और 2023 तक अब तक एक करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात की 2018 से तुलना करने पर आतंकवादी घटनाओं में 45.2 प्रतिशत की कमी आई है, घुसपैठ में 90.2 प्रतिशत की कमी आई है, पथराव में 97.2 प्रतिशत की कमी आई है, और सुरक्षा कर्मियों के हताहत होने में 65.9 प्रतिशत की कमी आई है।
उन्होंने कहा, ''2018 में पथराव की 1,767 घटनाएं हुई थीं और अब यह शून्य है और अलगाववादी ताकतों द्वारा संगठित बंद के आह्वान की संख्या 52 थी और अब यह शून्य है।''
इस पर एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सिब्बल ने पूछा कि क्या संविधान पीठ सरकार द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को ध्यान में रखेगी, क्योंकि उनके अनुसार ऐसे तथ्यात्मक आंकड़े बेहद "अप्रासंगिक" हैं। उन्होंने केंद्र द्वारा दिए गए आंकड़ों का विरोध करते हुए कहा कि सरकार यह "यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि उसने लोगों के लाभ के लिए यह बड़ा बदलाव (अनुच्छेद 370 को रद्द करना) किया।"
उन्होंने कहा, ''यदि आपके पास पूरे राज्य में 5,000 लोग नजरबंद हैं और धारा 144 लागू है, तो बंद कैसे नहीं है।'' उन्होंने कहा कि ऐसे तथ्य संवैधानिक संदर्भ पर निर्णय लेने में "आवश्यक" या "प्रासंगिक" नहीं हैं।
उन्होंने कहा, "आज जम्मू-कश्मीर में युवाओं को जिस तरह नशे का लती बनाया जा रहा है, वह अविश्वसनीय है। मैं उस मसले पर नहीं जाना चाहता, क्यों इस तरह के तथ्य अदालत के उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।"
सिब्बल ने दलील दी कि कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग से सरकार द्वारा दिए गए तथ्य रिकॉर्ड पर आ जाते हैं। उन्होंने कहा, "वे सार्वजनिक स्थान का हिस्सा हैं और लोगों को लगता है कि सरकार ने कितना अच्छा काम किया है। मगर इससे समस्या पैदा होती है।"
मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि 'प्रगति कभी समस्या पैदा नहीं करती।' "हल्की बात यह है कि कुछ लोग घर में नजरबंद थे और इसलिए, कोई बंद नहीं था। इसका मतलब है कि सही लोग घर में नजरबंद थे।"
देश के दूसरे सबसे बड़े कानून अधिकारी की टिप्पणी पर सिब्बल ने कहा, "लोकतंत्र का मजाक न बनाएं। 5,000 लोग नजरबंद थे और पूरे राज्य में (धारा) 144 लागू थी। इस अदालत ने एक फैसले में इसे मान्यता दी है। इंटरनेट बंद कर दिया गया था और फिर बंद किसे कहा जाए, यहां तक कि लोग अस्पताल नहीं जा सकते थे।''
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के हस्तक्षेप से उच्च तीव्रता वाली बहस शांत हो गई। पीठ ने कहा कि "संवैधानिक चुनौती पर संवैधानिक आधार पर विचार किया जाएगा न कि नीतिगत निर्णयों के आधार पर।"
पीठ ने स्पष्ट किया कि अगस्त 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में केंद्र द्वारा किए गए विकास कार्य अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ संवैधानिक चुनौती पर निर्णय लेने में प्रासंगिक नहीं होंगे।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने और चुनाव कराने पर केंद्र सरकार द्वारा दिया गया रोडमैप संवैधानिक चुनौती का जवाब नहीं हो सकता और इससे "स्वतंत्र रूप से" निपटना होगा।
उन्होंने कहा, "अगस्त 2019 के बाद हुए विकास कार्यों की प्रकृति संवैधानिक चुनौती के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकती... (और) संवैधानिक चुनौती का जवाब नहीं हो सकती.... इन तथ्यों का संभवतः संविधान के मुद्दे पर कोई असर नहीं होगा।"
इससे पहले दिन में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह कोई सटीक समय सीमा नहीं दे सकती और जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने में "कुछ समय" लगेगा, जबकि यह दोहराया कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा "अस्थायी" है।
मेहता ने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहले ही संसद में बयान दे चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के बाद यह फिर से राज्य बन जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है और चुनाव के लिए राज्य चुनाव आयोग और भारत चुनाव आयोग द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
संविधान पीठ ने मंगलवार को अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समय सीमा के बारे में केंद्र सरकार से निर्देश मांगें। केंद्र ने कहा कि "केंद्र शासित प्रदेश एक स्थायी विशेषता नहीं है" और वह 31 अगस्त को इससे पहले एक सकारात्मक बयान देगा।