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Bilkis Bano Case Update: बिलकिस बानो केस में दोषियों के खिलाफ SC ने टाली सुनवाई

Bilkis Bano Case Update: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों की जल्द रिहाई की अनुमति देने वाले गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई सोमवार को बुधवार तक के लिए टाल दी...

Bilkis Bano Case Update: बिलकिस बानो केस में दोषियों के खिलाफ SC ने टाली सुनवाई
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Bilkis Bano Case 

By Manish Dubey

Bilkis Bano Case Update: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों की जल्द रिहाई की अनुमति देने वाले गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई सोमवार को बुधवार तक के लिए टाल दी। यह घटना 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान हुई थी।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्‍ना और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यह देखने के बाद आदेश दिया कि उसे बिलकिस बानो सहित याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर लिखित प्रस्तुतियां प्राप्त हुई हैं, मामले को 11 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 2 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें।"

पिछले हफ्ते, शीर्ष अदालत ने छूट के आदेशों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को मामले में संक्षिप्त लिखित प्रत्युत्तर दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया था।

इससे पहले, दोषियों ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार होता है और इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती।

जनहित याचिका याचिकाकर्ताओं में से एक, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने तर्क दिया था कि जब बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, तब वह पांच महीने की गर्भवती थी। उसके और उसके परिवार के खिलाफ किया गया अपराध मानवता के खिलाफ अपराध था, जो धर्म के आधार पर किया गया।

केंद्र, गुजरात सरकार और दोषियों ने माकपा नेत्री सुभाषिनी अली, तृणमूल की मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं (पीआईएल) का विरोध करते हुए कहा है कि किसी आपराधिक मामले में दूसरों को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने तर्क दिया कि सजा में छूट सजा में कमी है और सजा पर सवाल वाली जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

इस मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था, जब गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी, क्‍योंकि दोषियों ने जेल में 15 साल पूरे कर लिए थे।

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