Vishwakarma Puja 2025: इस साल कब है विश्वकर्मा जयंती, क्या है इसका महत्व, पूजा की विधि और पौराणिक मान्यता
यदि कोई मानव मात्र पर उपकार करें उनकी पूजा-अर्चना करना स्वाभाविक है। इन्हीं में से एक हैं भगवान विश्वकर्मा जिन्हें निर्माण वास्तुकला शिल्पकला यांत्रिकी एवं तकनीकी कौशल का देवता माना जाता है...

Vishwakarma Puja 2025 (NPG file photo)
नई दिल्ली। सनातन धर्म में किसी भी त्योहार की तारीखें अक्सर चंद्रमा की स्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं, लेकिन विश्वकर्मा पूजा हमेशा 17 सितंबर को ही मनाई जाती है। इसके पीछे एक खास वजह है, जो इसे बाकी त्योहारों से अलग बनाती है। दरअसल, विश्वकर्मा पूजा की तारीख चंद्रमा के चक्र पर नहीं, बल्कि सूर्य के गोचर यानी सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने पर निर्भर करती है।हर साल 17 सितंबर के दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस घटना को कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म इसी कन्या संक्रांति के दिन हुआ था। यही कारण है कि, यह पूजा हर साल इसी निश्चित तिथि पर होती है। यह मान्यता सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल में भी बहुत प्रचलित है, जहां इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को सही मुहूर्त में करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मुहूर्त का अर्थ होता है, किसी कार्य को करने का सबसे अच्छा और शुभ समय। मुहूर्त में काम करने से उसमें सफलता और सकारात्मक ऊर्जा की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही यह कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर करने में भी सहायक होता है। वहीं, इस वर्ष भगवान विश्वकर्मा की जयंती (17 सितंबर, 2025) बुधवार के दिन मनाया जाएगा। यह पूजा आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ेगी। इस दिन कन्या संक्रांति का विशेष संयोग भी बनेगा।
भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी कुछ रोचक बातें
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और उन्हें सृष्टि का प्रथम वास्तुकार माना जाता है। उनकी गणना पंचदेवों में की जाती है और वे दिव्य निर्माणों के अधिपति हैं। विश्वकर्मा जी को कई चमत्कारी और दिव्य निर्माणों के लिए जाना जाता है- स्वर्ग लोक, इंद्रपुरी अमरावती, पुष्पक विमान, द्वारका नगरी, इंद्र का वज्र, शिवजी का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और कुबेर का पुष्पक रथ भी इनके निर्माण माने जाते हैं। उन्होंने सिर्फ महलों और अस्त्र-शस्त्रों का ही निर्माण नहीं किया, बल्कि कई महान और पौराणिक शहरों की भी रचना की।
विश्वकर्मा पूजा की विधि
विश्वकर्मा पूजा मुख्य रूप से फैक्ट्री, ऑफिस, और कार्यस्थल पर की जाती है। इस पूजा का मकसद कार्यस्थल की सुरक्षा और समृद्धि है। पूजा से पहले अपने औजारों, मशीनों और कार्यस्थल को अच्छी तरह से साफ कर लें। एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें।
पूजा सामग्री: मूर्ति के पास फूल, तुलसी, दीपक, अगरबत्ती और प्रसाद रखें। प्रसाद में फल, मिठाई या नारियल चढ़ा सकते हैं।
पूजा विधि: सबसे पहले धूप और दीपक जलाएं। फिर 'ॐ श्री विश्वकर्माय नमः' मंत्र का जाप करें। यह मंत्र आप अपनी फैक्ट्री के सभी कर्मचारियों के साथ मिलकर भी बोल सकते हैं।
औजारों की पूजा: सभी औजारों और मशीनों पर हल्दी, रोली और फूल चढ़ाएं। माना जाता है कि ऐसा करने से मशीनों की उम्र लंबी होती है और वे सुरक्षित तरीके से काम करती हैं।
आरती और प्रसाद वितरण: पूजा के बाद आरती करें और भगवान से अपने व्यवसाय की तरक्की के लिए प्रार्थना करें। फिर प्रसाद को सभी लोगों में बांटें।
विश्वकर्मा पूजा के लाभ
हिन्दू मान्यता के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यवसाय में वृद्धि और सफलता मिलती है। औजारों और मशीनों की देखभाल होने से उनका नुकसान होने की संभावना कम हो जाती है। इसके आलावा इनकी पूजा करने से कार्यस्थल का वातावरण सकारात्मक बनता है, जिससे कर्मचारियों का मन शांत और काम में लगा रहता है। इस पूजा से कार्यस्थल पर दुर्घटनाएं और नुकसान कम होते हैं, जिससे सभी लोग सुरक्षित महसूस करते हैं, हालांकि, इस पूजा का कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं है।
