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माथे पर लिखा…सीएम

माथे पर लिखा…सीएम
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By NPG News

संजय के दीक्षित
तरकश, 3 अक्टूबर 2021

पंजाब के घटनाक्रम से फिर ये बात स्थापित हो गई है कि लाख मशक्कत कर लें, सीएम जैसा पद मुकद्दर में है तभी मिलेगा। सिद्धू के साथ आखिर क्या हुआ…वो साल भर से ताली ठोक रहे थे मगर जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो चरणजीत सिंह चन्नी यकबयक प्रगट होकर कुर्सी पर बैठ गए। छत्तीसगढ़ में 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी सबने देखा…दिलीप सिंह जूदेव सीएम के रेस में सबसे आगे थे और जाहिर है वे सीएम बनते भी। मगर तकदीर देखिए, चुनाव से ऐन पहिले ट्रेप में फंस गए। रमेश बैस भी अगर चुनाव से पहले केंद्रीय राज्य मंत्री का पद छोड़कर छत्तीसगढ़ आने के लिए तैयार हो गए होते तो रमन सिंह 15 साल सीएम रहने का रिकार्ड नहीं बना पाते। सो, माथे पर लिखा होना जरूरी है।

नाम या बदनाम…?

कांग्रेस नेता एवं पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने कांग्रेस शासित राज्यों में चल रही सियासी तनातनी पर एक डिबेट में थे। उन्होंने पंजाब, राजस्थान का नाम लेने के बाद माथे के नसों को सिकोड़ते हुए बोले, झारखंड के बगल में वो कौन सा राज्य है…एंकर बोली, छत्तीसगढ़। नटवर बोले…हां, वहीं। ठीक है नटवर की उमर हो गई है…ऐसे में याददश्त क्षीण हो जाती है। लेकिन, इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि छत्तीसगढ़ के बारे में बाहर में उतना नहीं पता, जितना 21 साल में होना था। दरअसल, विद्याचरण शुक्ल के कद जैसा छत्तीसगढ़ में कोई दुजा शख्सियत हुआ नहीं, जिसके कारण छत्तीसगढ़ को जाना जाए। अभी सियासी टकराव और सुप्रीम कोर्ट के नौकरशाहों तथा पुलिस अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी से छत्तीसगढ़ जरूर कुछ चर्चा में है। नेशनल लेवल पर ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर पंजाब, राजस्थान के साथ छत्तीसगढ़ की भी चर्चा सरगर्म है। तो उधर, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वी रमन्ना ने छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस के प्रकरण में सरकारों और नौकरशाहों के गठजोड़ पर तल्ख टिप्पणी की है। जाहिर है, इस खबर को सुर्खियां मिलनी ही थी। अब इसको नाम बोलें या….।

महिला आईपीएस ज्यादा काबिल

छत्तीसगढ़ के 28 जिलों में सिर्फ दो महिला एसपी हैं। पारुल माथुर और भावना गुप्ता। जांजगीर जैसा बड़ा जिला करने के बाद फिलवक्त गरियाबंद जिले की कप्तान हैं। इससे पहले भी कमोवेश यही स्थिति रही है। दो-एक या जीरो…। कम ही मौका रहा, जब एक साथ सूबे में दो महिला एसपी रहीं। पारुल और नीतू कमल। नीतू फटाफट चार जिलों की कप्तानी करके डेपुटेशन पर सीबीआई चली गईं। दूसरा अभी सूरजपुर एसपी हैं भावना गुप्ता। महिला एसपी का प्रतिनिधित्व कम होने की प्रमुख वजह यह है कि छत्तीसगढ़ के आईपीएस कैडर में महिलाओं को बेहद टोटा है। सीनियर लेवल में सिर्फ नेहा चंपावत। वो भी डीआईजी रैंक की। आईजी, एडीजी में कोई नहीं। पारुल माथुर पिच पर डटी हुई हैं। पहले बेमेतरा एसपी रहीं। उसके बाद रेलवे एसपी फिर मुंगेली, जांजगीर होते हुए गरियाबंद। भावना का सूरजपुर पहला जिला है। जबकि, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने हाल ही में दिल्ली में अपराधों का विवेचना कराया था, तो उन्हें पता चला कि जिन दो जिलों में महिला कप्तान हैं, वहां अपेक्षाकृत क्राइम पर कंट्रोल हुआ है। इसको देखते हुए उन्होंने तीन और जिलों को महिला आईपीएस के हवाले कर दी है। यानी डीसीपी अपाइंट किया है। याने दिल्ली के 13 में से पांच जिलों में अब महिला डीसीपी हो गई हैं।

कलेक्टरी की छूटी ट्रेन

सरकार ने राजेंद्र कटारा को बीजापुर का कलेक्टर बनाकर 2013 बैच को क्लोज कर दिया। लेकिन, एमबीबीएस करके आईएएस में आए डॉक्टर जगदीश सोनकर की ट्रेन छूट गई। उनको छोड़कर सरकार ने 2014 बैच चालू कर दिया। हालांकि, एकाध बार पहले भी ऐसा हुआ है। 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान 2008 बैच की शम्मी आबिदी की बजाए सरकार ने 2008 बैच के भीम सिंह को धमतरी का कलेक्टर बना दिया था। लेकिन, वो चुकि चुनाव के पहले नाइट वाचमैन की तरह की नियुक्ति थी, इसलिए उसमें कोई अन्यथा लेने जैसा कुछ नहीं था। लेकिन, जगदीश सोनकर का मामला जुदा है। हालांकि, आरआर याने डायरेक्ट आईएएस को कम-से-कम एक जिले की कलेक्टरी तो मिलती है। अब देखना है कि उन्हें कब मौका मिलता है।

2014 बैच का खाता

पिछले सप्ताह तरकश में एक खबर थी…दीगर राज्यों में 2015 बैच के आईएएस कलेक्टरी में दूसरा जिला कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ में 13 बैच की वेटिंग खतम नहीं हो रही…। सरकार ने अगले दिन याने सोमवार शाम आदेश निकालकर 2014 बैच का खाता खोल दिया। 6 आईएएस के बैच में कुंदन कुमार सबसे उपर थे। सीनियरिटी के हिसाब से उन्हें सबसे पहले मौका मिला। कुंदन के ओपनिंग बैट्समैन के रूप में पिच पर उतरने के बाद बाकी पांच की उम्मीदें भी अब बढ़ गई है। आखिर कलेक्टरी करना आईएएस का सबसे बड़ा सपना जो होता है।

हेमूनगर की पुनरावृत्ति?

बिलासपुर शहर के हेमूनगर में 97 में एक बड़ी डकैती की वारदात हुई थी। उसमें डकैतों ने लूटपाट के साथ दो लोगों को मार डाला था। तब मध्यप्रदेश का समय था और बिलासपुर के एसपी थे शैलेंद्र श्रीवास्तव। घटना के चार दिन बाद सीएम दिग्विजय सिंह को बिलासपुर आना था। सो, पुलिस ने सीएम के दौरे से एक दिन पूर्व चार युवकों के चेहरों को काले कपड़े से ढक कर मीडिया के सामने पेश कर दिया…यही हैं आरोपी। ये चारों आरोपी छह महीने के भीतर कोर्ट से बरी हो गए। क्योंकि, उनके खिलाफ पुलिस के पास कोई साक्ष्य था नहीं। इसी तरह की कानाफूसी लैलूंगा डबल मर्डर केस में हो रही है। पुलिस ने नाबालिग लड़कों को पकड़ कर प्रेस कांफ्रेंस कर दिया। लेकिन, परिवार वालों को पुलिस की थ्योरी पर यकीन नहीं है। इस संदर्भ में फेमिली ने सीएम से मुलाकात की है। वाकई इस केस में कई सवाल अनुतरित हैं। अगर 25 लाख की लूट हुई तो बरामद 75 हजार क्यों हुआ? फिर ये 25 लाख तो परिवार वालों का फिगर है। बताने वाले तो और बहुत कुछ बता रहे हैं। असल में, इंकम टैक्स का लोचा भी तो है। परिवार वालों की विवशता समझी जा सकती है। रायगढ़ पुलिस को उनके सवालों का जवाब देना चाहिए। वरना, लोग हेमूनगर जैसी बातें करने लगेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ऐसा क्यों बोल रहे…ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर?
2. विधायकों के पांचों उंगली घी में और…ऐसा क्यों कहा जा रहा है?

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