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जलावन की लकड़ियां चुना करती थी मीराबाई चानू……एक किताब ने बदली जिंदगी, बांस से करती थी वेटलिफ्टिंग की पैक्टिस….ओलंपिक की तैयारी के लिए बहन की शादी छोड़ी, मोबाइल भी नहीं चलाया, वेट मेंटन करने खाना भी छोड़ा….दर्द के बावजूद जीता सिल्वर मेडल

जलावन की लकड़ियां चुना करती थी मीराबाई चानू……एक किताब ने बदली जिंदगी, बांस से करती थी वेटलिफ्टिंग की पैक्टिस….ओलंपिक की तैयारी के लिए बहन की शादी छोड़ी, मोबाइल भी नहीं चलाया, वेट मेंटन करने खाना भी छोड़ा….दर्द के बावजूद जीता सिल्वर मेडल
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By NPG News

मणिपुर 24 जुलाई 2021। भारत की बेटी ने आज वो कमाल कर दिया कि जमाना याद रखेगा। वो गरीबी, वो आंसू, वो दर्द…और जोश से भरा जज्बा!! टूटकर चांदी सा बिखर जाना क्या होता है, आज दुनिया को सीखा गयी मीराबाई चानू। ओलंपिक के दूसरे दिन भारत की झोली में पहला मैडल डालने वाली मीराबाई चानू आज हर भारतीयों की जुबान बन गयी है। टोक्यों में सिल्वर जीतने की खबर जैसे ही भारत पहुंची, सोशल मीडिया से लेकर न्यूज मीडिया में एक ही नाम चढ़ा, वो था मीराबाई चानू । चानू ओलंपिक में वेटलिफ़्टिंग में सिल्वर मेडल लाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं. उन्होंने 49 किलोग्राम भार में यह पदक जीता है. इस वर्ग में चीन की होऊ ज़हुई ने गोल्ड और इंडोनेशिया की विंडी असाह ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता.चानू ने कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया.

ओलंपिक की प्रैक्टिश के लिए मीराबाई चानू ने अमेरिका में लंबा वक्त गुजारा। इस दौरान उसने अपनी बहन की शादी तक को छोड़ दिया, ना वो मोबाइल चलाती थी और ना ही कुछ परिवार के लोगों से मेल मुलाकात।

गरीबी के दलदल से उपर उठकर शोहरत की सुर्खियों पर छायी मारीबाई बचपन में लड़की चुनने का काम करती थी। मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में हुआ था। मणिपुर से आने वालीं मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है. मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता. वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं.

शुरुआत में मीराबाई का सपना तीरंदाज बनने का था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अपना करियर चुनना पड़ा। बताते हैं कि मीराबाई बचपन में तीरंदाज यानी आर्चर बनना चाहती थीं. लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया. दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी का जिक्र था. बता दें कि इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं. कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी से ज्यादा मेडल नहीं जीत पाई है. बस, कक्षा आठ में तय हो गया कि अब तो वजन ही उठाना है. इसके साथ ही शुरू हुआ मीराबाई का करियर.

2016 ओलंपिक मीराबाई के लिए डरावना सपना था। इस ओलंपिक में चानू के साथ ऐसा हुआ, जो उसके लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं था। भारत की वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सिर्फ़ दूसरी खिलाड़ी थीं जिनके नाम के आगे ओलंपिक में लिखा गया था ‘डिड नॉट फ़िनिश’. जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं, उस दिन ओलंपिक में जैसे उनके हाथ बर्फ़ की तरह जम गए थे. उस समय भारत में रात थीं, तो बहुत कम भारतीयों ने वो नज़ारा देखा.

सुबह उठ जब भारत के खेल प्रेमियों ने ख़बरें पढ़ीं तो मीराबाई रातों रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र में विलेन बन गईं. नौबत यहाँ तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े. इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की. मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल.

4 फुट 11 ईंच की है चानू, वजन मेंटन करने खाना भी नहीं खाया

वैसे 4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू को देखकर अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है कि देखने में नन्ही सी मीरा बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा सकती हैं.48 किलोग्राम के अपने वज़न से क़रीब चार गुना ज़्यादा वज़न यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता. पिछले 22 साल में ऐसा करने वाली मीराबाई पहली भारतीय महिला बन गई थीं.

48 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए मीरा ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था. इस दिन की तैयारी के लिए मीराबाई पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं.

भारत के लिए पदक जीतने वाली मीरा की आँखों से बहते आँसू उस दर्द के गवाह थे जो वो 2016 से झेल रही थीं.

ऐसे बदल गयी मीराबाई की जिंदगी

मीराबाई बचपन से ही काफ़ी हुनरमंद थीं. बिना ख़ास सुविधाओं वाला उनका गांव इंफ़ाल से कोई 200 किलोमीटर दूर था.उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं. बस वही दृश्य छोटी मीरा के ज़हन में बस गया और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली.मीरा की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी. 2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं.गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं. डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन न था. उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया.

नेहा कक्कड़ का गाना और सलमान की एक्टिंग बेहद पसंद

11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन. जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा- 192 किलोग्राम वज़न उठाकर. हालांकि सफ़र तब भी आसान नहीं था क्योंकि मीरा के माँ-बाप के पास इतने संसाधन नहीं थे. बात यहां तक आ पहुँची थी कि अगर रियो ओलंपिक में क्वालीफ़ाई नहीं कर पाईं तो वो खेल छोड़ देंगी. ख़ैर यहाँ तक नौबत नहीं आई. वर्ल्ड चैंपियनशिप के अलावा, मीराबाई ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं. वैसे वेटलिफ्टिंग के अलावा मीरा को डांस का भी शौक़ है. बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, “मैं कभी-कभी ट्रेनिंग के बाद कमरा बंद करके डांस करती हूँ और मुझे सलमान खान पसंद हैं.”

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