संजय के. दीक्षित
तरकश, 17 मई 2020
छत्तीसगढ़ सरकार के एक मंत्री अपने बेटों से आजिज आ गए हैं। बार-बार समझाने के बाद भी ट्रांसफर-पोस्टिंग की एडवांस पेशगी लेने से वे बाज नहीं आ रहे। स्थिति यह है कि एडवांस के बाद भी छह-छह महीने से लोग चक्कर काट रहे हैं। ये सब बात आखिर मार्केट में तो फैलती ही है। इससे मंत्रीजी बेहद दुखी है। पता चला है कि कोरोना पीरियड में उन्होंने बेटों को एक साथ बिठाकर समझाया है…अच्छा खासा कैरियर है, तुमलोगों की वजह से सब खतम हो जाएगा…तुमलोग धैर्य रखो…मैं इकठ्ठे इतना इंतजाम कर दूंगा कि ये सब करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। चलिये, ठीक है। बेटों के भविष्य का इंतजाम पिता नहीं करेगा तो कौन करेगा। लेकिन, बेटों को भी तो समझना चाहिए।
शिव का वजन
सरकार ने मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना के संचालन का जिम्मा नगरीय प्रशासन विभाग को सौंपा है। इसका काम कितना फास्ट चल रहा है, इस बात से समझा जा सकता है कि नगर निगमों द्वारा टेंडर का प्रॉसेज प्रारंभ कर दिया गया है। सीएम सचिवालय सीधे इसकी मानिटरिंग कर रहा है। अगर कोई व्यवधान नहीं आया तो 15 अगस्त को इस योजना का लोकार्पण भी हो जाएगा। दिल्ली सरकार के मोहल्ला क्लीनिक की तर्ज पर सरकार की यह अब तक की सबसे अहम योजना होगी। और, इसकी जिम्मेदारी हेल्थ विभाग की बजाए अगर नगरीय प्रशासन को मिली है तो जाहिर है नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया का इससे वजन बढ़ेगा ही। क्योकि, उन्हें शहरी स्वास्थ्य का एक बड़ा सेटअप उनके अंदर आ जाएगा।
सीएस को नया टास्क
सरकार ने चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल को तीन नया टास्क दिया है। खारुन फ्रंट रिवर और अरपा फ्रंट रिवर के निर्माण के साथ ही राजधानी के सबसे प्राचीन बूढ़ापारा तालाब को मरीन ड्राईव जैसा बनाने का। सरकार के निर्देश पर सीएस दो दिन पहले अचानक बिलासपुर पहुंचे और तीन घंटे तक अफसरों के साथ भरी दोपहरी में मौके का मुआयना किया। बूढापारा तालाब की सफाई का काम प्रारंभ हो गया है। और, दो दिन बाद खारुन फ्रंट रिवर का ब्लूप्रिंट बनाने मंडल वहां जाने वाले हैं। खबर है, मुख्यमंत्री ने मंडल से कहा है कि अरपा नदी में पानी लबालब दिखना चाहिए। इसके बाद मंडल एक्शन मोड में हैं।
कोरोना में रिटायरमेंट
लॉकडाउन में रिटायर होना भी बड़ा शॉकिंग है…न बुके, न बिदाई। न मीडिया में कोई खबर। कई अधिकारी, कर्मचारी बेचारे घर बैठे गुमनामी में ही सर्विस को बॉय-बॉय कह दिया। बड़े अफसरों की बात करें तो लॉकडाउन-2 में 30 अप्रैल को डीआईजी आरएस नायक रिटायर हुए। और, अब लॉकडाउन-4 में डीआईजी जीएस दर्रो का नम्बर है। वे 31 मई को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
आलोक का नहीं
छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईएएस डॉ0 आलोक शुक्ला का भी इसी महीने रिटायरमेंट है। लेकिन, सरकार के लिए वे इतने उपयोगी हैं कि उनके पोजिशन में कोई बदलाव नहीं आएगा। दरअसल, स्कूल शिक्षा में उन्होंने थोड़े ही दिनों में अप्रत्याशित काम किए हैं। एक झटके में 40 अंग्रेजी स्कूल। कोरोना आया नहीं कि उन्होंने ऑनलाइन एजुकेशन पोर्टल बना दिया। इस पोर्टल की दूसरे राज्य डिमांड कर रहे। वैसे भी आलोक को कंप्यूटर का काफी नॉलेज है। पुराने मंत्रालय में 2002-03 में जब दो-तीन आईएएस लेपटॉप पर काम करते थे, उनमें वे भी शामिल थे। कोरोना में डोर-टू-डोर सब्जी पहुंचाने के लिए सीजी हॉट पोर्टल बनाया गया, इसके पीछे उन्हीं का ब्रेन था। और, अब सुनते हैं हेल्थ विभाग की टेलीमेडीसिन को वे मूर्तरूप दे रहे हैं। सीएम उन्हें पसंद भी करते हैं। ऐसे में, अब कोई सवाल उठते नहीं।
ये चार कलेक्टर!
कलेक्टरों की जंबो लिस्ट निकलने वाली है। इसमें उन चार कलेक्टरों का हटना लगभग निश्चित है, जिनकी पिछली सरकार में पोस्टिंग हुई थी और नई सरकार ने उन पर भरोसा करते हुए कंटीन्यू किया। इनमें अवनीश शरण कवर्धा, सारांश मित्तर सरगुजा, श्याम धावड़े गरियाबंद और नीलकंठ टेकाम कोंडागांव। इन चारों का टाईम भी दो साल से अधिक हो गया है। इनमें से कुछ बड़े जिलों में जाएंगे और कुछ राजधानी लौटेंगे। अवनीश शरण को कवर्धा में नेट दो साल हो गया है। इससे पहले कवर्धा में कोई भी कलेक्टर इतना लंबा नहीं रहा। सोनमणि बोरा, सिद्धार्थ परदेशी, मुकेश बंसल, दयानंद पाण्डेय एक, सवा साल काम करने के बाद बड़े जिलों में चले गए थे। ऐसे में, अवनीश की स्थिति समझी जा सकती है।
कोरोना इम्पैक्ट
कई महीने से लिस्ट निकलने की आस लगाए कलेक्टरों को कोरोना ने इस कदर परेशान कर रखा है कि पूछिए मत! एक तो जिले में कोरोना को रोकने का टेंशन। जिनके जिले में कोरोना का केस आ रहा, उनसे एक बार आप बात कीजिए। आपको समझ में आ जाएगा। वो भी उस समय जब ट्रांसफर लिस्ट लगभग तैयार है। भले ही सरकार कोरोना को मापदंड बनाए या न बनाए मगर कलेक्टरों को भय तो खाए जा रहा। उधर, कोरोना भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। जैसे ही नार्मल होने की स्थिति आने पर लिस्ट निकलने की सुगबुगाहट प्रारंभ होती है एक-दो केस टपक जाता है। हालांकि, इससे नुकसान राज्य का हो रहा है। विधानसभा सत्र के बाद से कलेक्टरों की नजर लिस्ट पर है। कोरोना के पहले से अधिकांश कलेक्टरों ने नए कामों में रुचि लेना बंद कर दिया था। दरअसल, वे जानते हैं कि चलाचली की बेला में नए काम का कोई मतलब नहीं। दूसरा कोई कलेक्टर आएगा तो वो उसमें इंटरेस्ट लेगा नहीं।
हेड ऑफ फॉरेस्ट
सूबे के सबसे सीनियर आईएफएस मुदित कुमार के वन विभाग छोड़कर डीजी सीजी कॉस्ट बनने से पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी का हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनने का रास्ता साफ हो गया है। राकेश साल भर पहिले पीसीसीएफ तो बन गए थे लेकिन, सबसे वरिष्ठ होने के नाते मुदित कुमार के पास हेड ऑफ फॉरेस्ट का पद बरकरार था। राकेश को अब वन बल प्रमुख बनाने के लिए प्रॉसेज चालू हो गया है। डीपीसी के बाद उन्हें 80 हजार का स्केल मिल जाएगा। राज्य में तीन पोस्ट 80 हजार के होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ। मुदित कुमार के कारण एडिशनल पीसीसीएफ पीसी पाण्डेय को भी लाभ मिलता दिख रहा है। पद रिक्त होने के कारण पाण्डेय अब पीसीसीएफ प्रमोट हो जाएंगे। फिलहाल, वे राज्य वन अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर हैं।
बजाज की वापसी
राज्य सरकार ने सीनियर आईएफएस एसएस बजाज का निलंबन बहाल कर दिया है। उनकी पोस्टिंग की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। नोटशीट वन मंत्री मोहम्मद अकबर के यहां पहुंच गई है। उनकी टीप के बाद फाइल सीएम भूपेश बघेल के पास जाएगी और फिर उनके एप्रूवल के बाद आदेश निकल जाएगा। बजाज के साथ 10 और आईएफएस अधिकारियों का आदेश निकलेगा। इनमें हाल ही में संस्कृति संचालनालय से वन विभाग में लौटे एडिशनल पीसीसीएफ अनिल साहू शामिल हैं। उनके अलावा 9 अवार्डेट आईएफएस अधिकारियों को भी सरकार नई पोस्टिंग देगी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या 13 से घटकर 9 पर आ गई है। ये संख्या बढ़ेगी या 9 के आसपास ही रहेगी?
2. राजधानी की कलेक्टरी करने से अधिकांश आईएएस क्यों बचते हैं?