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मंत्री बंगलों में कैद

मंत्री बंगलों में कैद
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By NPG News

संजय कुमार दीक्षित
तरकश, 12 अप्रैल 2020
फूल-मालाओं…जिंदाबाद…कार्यकर्ताओं से घिरे रहने वाले नेताओं की हालत इस समय मत पूछिए! लॉकडाउन में बेचारे बंगले में कैद जैसा हो गए हैं। आम आदमी तो पुलिस से लुका छिपी करके एकाध चक्कर लगाकर आ जा रहा। मगर सोशल मीडिया के युग में बड़े नेताजी या मंत्री लोग ये भी नहीं कर सकते। मिनटों में उनकी पिक वायरल हो जाएगी। पता चला है, तीन मंत्रियों की तबियत नासाज रहने लगी है। शुगर और रक्तचाप बढ़ गया है। क्या करें बेचारे, मंत्री बनने का अभी ठीक से मजा भी नहीं ले पाए थे कि कोरोना आ गया। नेता को क्या चाहिए….पब्लिक और मीडिया में स्पेस। और, वही नहीं है। काश! डिस्टेंस मेंटेन करने वाली बीमारी नहीं होती तो मंत्रीजी, नेताजी लोग दाल, चावल, फल-फू्रट बांटते घूम-घूमकर फोटो खींचवा रहे होते। मगर वो भी मयस्सर नहीं। उपर से जो जहां, जिस हालत में फंसा है, वो वहां से हिल नहीं पा रहा। जो मंत्री रायपुर में हैं, वे अपने क्षेत्र नहीं जा पा रहे और जो अपने क्षेत्र में हैं, वे वहीं सिमटकर रह गए हैं। ठीक मुंह से बात नहीं करने वाले मंत्रियों को सुबह से देखते-देखते शाम हो जाती है, कोई मिलने वाला नहीं होता। क्या दिन थे…क्या हो गए।

अफसरों का हाल जुदा नहीं

अफसरों का हाल भी मंत्रियों से जुदा नहीं है। खासकर, नौकरशाहों का। हेल्थ जैसे दो-एक आवश्यक सेवाओं वाले विभागों के अफसरों को छोड़ दें तो सबको घरवालियों के साथ किच-किच का सामना करना पड़ रहा है। वो भी जमाना था….आफिस में बिना हाट-हूट किए कुछ अधिकारियों को चैन नहीं मिलता था….मिलने आई पब्लिक या छोटे मुलाजिम को वेट नहीं कराया तो अफसर काहे का। मगर अब लॉकडाउन में किस पर रौब झाड़े, किसको घंटी बजाकर बुलाए…इंटरकॉम पर पीए की कैसे क्लास लें। न प्यून है, न पीए और न पब्लिक। घर में बैठे-बैठे अब हालत ये हो गई है कि लॉकडाउन जब खुलेगा तो दो-चार दिन आफिस से घर नहीं आएंगे…आफिस में ही सो जाएंगे।

फिजिकल डिस्टेंस

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 10 अप्रैल को मीडिया के साथ बातचीत में फिजिकल डिस्टेंस पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब सोशल डिस्टेंस से काम नहीं चलेगा। दाउ को शायद मालूम नहीं, लॉकडाउन में घरों में स्वयमेव फिजिकल डिस्टेंस के हालात बन गए हैं। पहले तीन-चार दिन होली की छुट्टी रही…फिर 24 से लॉकडाउन। महीना भर आदमी घर में बैठ जाए, तो वही होगा….पति एक कमरे में सोएगा तो पत्नी दूसरे कमरे में। लॉकडाउन के बाद घरों में दो-चार दिन पिकनिक जैसी स्थिति रही। लेकिन, परिवार के सदस्यों के बीच बातचीत का टॉपिक भी खतम हो गया है। पुराने कलेवर के रामायण, महाभारत में भी लोगों को मजा नहीं आ रहा। ऐसे में, बच गई है सिर्फ खामोशी और चेहरे लटकाए हुए…वही सुबह होती है, शाम होती है।

पुलिस में कमाल की पोस्टिंग

छत्तीसगढ़ पुलिस की पोस्टिंग किस तरह होती है, पढ़कर आप हैरान रह जाएंगे….राजधानी रायपुर में सात-सात एडिशनल एसपी हैं। बिलासपुर में आधा दर्जन। जांजगीर में एक पोस्ट पर दो एडिशनल एसपी। ऐसे में, आपको लगेगा कि देश के सर्वाधिक माओवाद प्रभावित बस्तर के एक-एक जिलों में तो चार-चार, पांच-पांच एडिशनल एसपी तो होंगे ही। पर आपका भ्रम टूट जाएगा। दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर, जहां एक तरह से कहा जाएं तो युद्ध के हालात हैं, वहां आज की तारीफ में एक भी एडिशनल एसपी नहीं हैं। दंतेवाड़ा में जनवरी से पद खाली है। पिछले हफ्ते सरकार ने एक की पोस्टिंग की है। लेकिन, उन्होंने अभी ज्वाईन नहीं किया है। और, अब जरा सुकमा और बीजापुर का सुन लीजिए….दोनों जिलों में आरआई से प्रमोट हुए अधिकारियों को एडिशनल एसपी बनाया गया है। आरआई बोले तो पुलिस का इंतजाम अली। वह पुलिस लाइन में रहकर लाइन का काम देखता है। फील्ड ड्यूटी का उसे कोई अनुभव नहीं होता। सुकमा में 17 जवानों के शहीद होने के बाद भी पुलिस महकमे ने वहां के सेटअप की सुध लेने की जरूरत नहीं समझी। सुकमा में एसपी के पास अगर रेगुलर एडिशनल एसपी के रूप में हैंड होता तो हो सकता था कि 21 मार्च को सीआरपीएफ के साथ कोआर्डिनेट करके मौके पर कोबरा बटालियन को भेज दिया जाता। ऐसे में, इतना बड़ा नुकसान नहीं होता।

जुगाड़ की पोस्टिंग

पुलिस के लिए सबसे कम काम और बिना जोखिम कमाई वाला कोई जिला है तो वह है जांजगीर। जांजगीर में 16 डीएसपी पोस्टेड हैं। एक जिले का यह रिकार्ड होगा। इतने तो रायपुर, बिलासपुर में नहीं हैं। यही नहीं….एक पोस्ट पर दो-दो। एडिशनल एसपी के एक पद पर दो अफसर बैठा ही है, जांजगीर में डबल एसडीओपी हो गए हैं। पता नहीं, एक का तनख्वाह कहां से निकालते होंगे। खैर, जुगाड़ में अगर पोस्टिंग हो सकती है तो वेतन क्यों नहीं?

कलेक्टर का अंग्रेजी प्रेम

सूबे के एक कलेक्टर साब कोरोना में अंग्रेजी सीख रहे हैं। उनके लिए लॉकडाउन में भी 17 किलोमीटर दूर से एक अंग्रेजी ट्यूटर आता है। कलेक्टर साब की सरकारी गाड़ी ट्यूटर को लेने जाती है फिर छोड़ने। खैर, कलेक्टर के लिए लॉकडाउन में ट्यूटर…..यह सामान्य बात है। खास बात यह है कि कलेक्टर जरा रंग-बिरंगे स्वाभाव वाले हैं। उनका एक अतिप्रिय डिप्टी कलेक्टर हैं। मेल-मुलाकात, दौरा फ्रिक्वेंटली जारी रहे इसलिए कलेक्टर ने उन्हें एसडीएम अपाइंट कर लिया है। एसडीएम को अच्छी अंग्रेजी आती है। एसडीएम से इंस्पायर होकर कलेक्टर ने अंग्रेजी सीखने शुरू कर दिया है। तो ये है अंग्रेजी सीखने की वजह।

कमिश्नर के घर बंधक?

सोशल डिस्टेंस के फेर में काम करने वाले नौकर-चाकर, रसोइये को लोगों ने छुट्टी दे दी है या फिर वे खुद ही आना बंद कर दिए हैं। ऐसे में, बड़े लोगों की दिक्कतें बढ़ गई है। अपर मीडिल क्लास के लोग एकाध काम करने या खाना बनाने वाले को घर में ही रुका लिए हैं। लेकिन, सरकारी सुख-सुविधाओं में रहने वाले ऐसे लोग जिनका काम एक-दो से नहीं चलने वाला, उन्हें काफी दिक्कतें हो रही हैं। सूबे के एक डिविजनल कमिश्नर के यहां भी एक एक काम करने वाले की बंधक जैसी स्थिति हो गई है। पता चला है, सर्वेंट के घर वालों ने पुलिस से इस बारे में फरियाद की है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले के पुलिस अधीक्षक का भाई उधारी में ट्रैक्टर खरीदकर यूपी चला गया और अब एजेंसी वाला पैसे के लिए चक्कर लगा रहा?
2. किस मंत्री के पीए से मंत्री की कुर्सी चले जाने का खतरा पैदा हो गया है?

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