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'SIR' नहीं बड़ा गोलमाल! उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग पर दागे सवाल; कहा- MP में BJP कर रही वोटरों से खिलवाड़.' जनगणना पर कही ये बात

SIR नहीं बड़ा गोलमाल! उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग पर दागे सवाल; कहा- MP में BJP कर रही वोटरों से खिलवाड़. जनगणना पर कही ये बात
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By Ashish Kumar Goswami

भोपाल। मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चुनाव आयोग की नई 'विशेष गहन पुनरीक्षण' प्रक्रिया (Selective Intensive Removal) पर गंभीर सवाल उठाए हैं। सिंघार का कहना है कि, यह 'SIR' प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ों पर सीधा हमला है। उन्हें डर है कि, चुनाव आयोग की जल्दबाज़ी और सब कुछ छिपाकर करने के तरीके (अपारदर्शिता) से करोड़ों सही वोटरों, खासकर दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और दूसरे राज्यों में काम करने वाले मज़दूरों के नाम वोटर लिस्ट से कट सकते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर उठे बड़े सवाल

आपको बता दें कि, चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर 2025 को SIR का दूसरा चरण 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 4 नवंबर 2025 से 7 फरवरी 2026 तक चलाने की घोषणा की है। आयोग का कहना कि, वह 51 करोड़ मतदाताओं की घर-घर गिनती सिर्फ 30 दिन में पूरी कर लेगा। जिसपर सिंघार पूछते हैं कि, "इतना बड़ा और मुश्किल काम एक महीने में कैसे संभव हो सकता है?"

12 राज्य ही क्यों चुने? -सिंघार

उन्होंने पूछा कि, ये 12 राज्य किस आधार पर चुने गए है और बाकियों को क्यों छोड़ दिया गया? इसमें कोई पारदर्शिता नहीं है। असम को SIR से बाहर रखने पर उन्होंने सवाल उठाया, यह कहते हुए कि, यह रवैया भेदभाव वाला लगता है। उन्होंने पूछा कि, अगर पिछली मतदाता सूची शुद्धिकरण (SSR) की प्रक्रिया ठीक नहीं थी, तो पहले उसकी गलतियों का पता लगाना चाहिए था। उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि, वहां SIR के बाद सुप्रीम कोर्ट को बार-बार दखल देना पड़ा था, लेकिन कितने विदेशी या गलत नाम हटाए गए, उसका सही आंकड़ा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया।

जनगणना से पहले SIR क्यों?

सिंघार ने मध्यप्रदेश में SIR के संभावित प्रभावों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि, राज्य में लगभग 22 प्रतिशत आदिवासी आबादी है, जिनमें से अधिकांश दूरस्थ और वन क्षेत्रों में रहते हैं। इन क्षेत्रों में दस्तावेज़ी और डिजिटल पहुँच सीमित है, जिसके चलते लाखों आदिवासी मतदाता बिना किसी गलती के सूची से बाहर हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि, आयोग ने SIR प्रक्रिया के लिए 13 प्रकार के दस्तावेजों को आवश्यक बताया है, जिनमें वन अधिकार पत्र भी शामिल है। लेकिन राज्य सरकार ने मार्च 2025 तक 3 लाख से अधिक वन अधिकार दावों को खारिज कर दिया था। ऐसे में जिन आदिवासियों के पास प्रमाणपत्र नहीं है, वे मतदाता सूची से हट सकते हैं।

सिंघार ने आगे कहा कि, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, करीब 25 लाख मध्यप्रदेशवासी दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर के रूप में कार्यरत हैं। इतनी तेज़ और सीमित समय वाली गिनती से उनके नाम हटने की आशंका बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि, “यह सिर्फ आदिवासियों की समस्या नहीं है, बल्कि दलित, अल्पसंख्यक और छोटे OBC समुदायों पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा।” उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां SIR प्रक्रिया के बाद लगभग 47 लाख नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए। यदि यही पैटर्न अन्य बड़े राज्यों में दोहराया गया, तो करोड़ों मतदाता लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित हो सकते हैं।

वोट चोरी पर कोई जवाब नहीं: सिंघार

सिंघार ने यह भी याद दिलाया कि, उन्होंने 19 अगस्त 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मध्य प्रदेश में चल रही वोट चोरीका मुद्दा उठाया था। उन्होंने बताया कि, उस समय उन्होंने ठोस आँकड़ों और प्रमाणों के साथ मतदाता सूचियों में असामान्य और संदिग्ध वृद्धि के उदाहरण दिए थे। लेकिन आज तक न तो राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी और न ही भारत निर्वाचन आयोग ने इस पर कोई जवाब दिया। उन्होंने कहा कि, केवल दो महीनों (अगस्त से अक्टूबर 2023) के भीतर 16 लाख से अधिक नए मतदाता जोड़े गए, यानी औसतन हर दिन 26,000 से अधिक नाम। यह बढ़ोतरी सामान्य नहीं हो सकती।

सिंघार ने यह भी बताया कि 9 जून 2023 को भारत निर्वाचन आयोग ने एक आदेश जारी कर कहा था कि, मतदाता सूची में हुए जोड़, हटाव और संशोधन सार्वजनिक वेबसाइट पर न डाले जाएँ और न ही यह जानकारी किसी पक्ष के साथ साझा की जाए। जब आयोग खुद पारदर्शिता से बचना चाहता है, तो SIR जैसी प्रक्रिया पर कैसे भरोसा किया जा सकता है? नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि SIR की मौजूदा रूपरेखा मतदाता अधिकारों और कमजोर वर्गों के प्रतिनिधित्व पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा, “यह मतदाता सूची की सफाई नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल अधिकारों की कटौती और नियंत्रण की प्रक्रिया है।”

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