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MP Promotion Reservation Dispute: हाईकोर्ट ने नई पॉलिसी पर लगाई रोक, अब इस होगी अगली सुनवाई..

मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फिलहाल राज्य सरकार की नई प्रमोशन पॉलिसी पर रोक लगा दी है। जानें इस विवादित मामले में अब तक क्या हुआ और 16 सितंबर को होने वाली सुनवाई क्यों है महत्वपूर्ण।

MP Promotion Reservation Dispute: हाईकोर्ट ने नई पॉलिसी पर लगाई रोक, अब इस होगी अगली सुनवाई..
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(NPG file photo)

By Ashish Kumar Goswami

भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इस बार, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की नई प्रमोशन पॉलिसी पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि, जब तक इस मामले में कोई अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक सरकार इस पॉलिसी को लागू नहीं कर सकती। यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत है जो इस पॉलिसी से चिंतित थे।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, सरकारी नौकरी में प्रमोशन के दौरान आरक्षण देने का यह मामला लंबे समय से कोर्ट में चल रहा है। राज्य सरकार ने हाल ही में कोर्ट में अपनी पुरानी और नई पॉलिसी का पूरा ब्यौरा पेश किया था। हालांकि, कोर्ट में याचिका दायर करने वालों (याचिकाकर्ताओं) ने सरकार के इस जवाब को अधूरा और गलत बताया।

याचिकाकर्ताओं की क्या है आपत्ति?

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि, सरकार ने अपनी पॉलिसी में दो सबसे महत्वपूर्ण बातों का जिक्र नहीं किया है:

क्रीमी लेयर (Creamy Layer): यह सुनिश्चित करना कि आरक्षण का फायदा सिर्फ उन्हें मिले, जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

क्वांटिफायबल डेटा (Quantifiable Data): यह साबित करने के लिए ठोस आँकड़े कि, आरक्षण देना क्यों ज़रूरी है।

याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि, सरकार ने इन दोनों बातों पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी, जबकि सुप्रीम कोर्ट के नियमों के हिसाब से यह ज़रूरी है।

16 सितंबर की सुनवाई क्यों है महत्वपूर्ण?

हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर को तय की है, जिसमें कोर्ट अंतरिम राहत देने पर भी विचार करेगा। राज्य सरकार ने भी कोर्ट से नई पॉलिसी को लागू करने की अनुमति देने की मांग की है, ताकि प्रमोशन प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। यह मामला हजारों सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन और करियर पर सीधा असर डालता है।

सरकार का दावा है कि, नई पॉलिसी सभी वर्गों के हित में है और यह न्यायसंगत है, जबकि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि इससे कुछ वर्गों का नुकसान हो सकता है। अब सभी की निगाहें 16 सितंबर की सुनवाई पर टिकी हैं, जब अदालत का अगला कदम इस विवाद की दिशा तय करेगा।

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