MP News: MLA के खिलाफ एफआईआर: हाई कोर्ट ने दिया आदेश, जाली दस्तावेजों के जरिए ली थी कॉलेज की संबद्धता, SIT जांच के आदेश भी
MP News: जाली दस्तावेजों के सहारे कालेज की संबद्धता हासिल करने वाले कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का हाई कोर्ट ने आदेश दिया है। पढ़िए क्या है पूरा मामला।

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MP News: जबलपुर। जाली दस्तावेजों के सहारे कालेज की संबद्धता हासिल करने वाले कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद अब पुलिसिया घेरे में फंस गए हैं। याचिका की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने फर्जीवाड़ा करने वाले विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। विधायक मसूद इंदिरा प्रियदर्शनी कालेज का संचालन करने वाले अमान एजुकेशन सोसायटी के सचिव हैं। विधायक मसूद पर आरोप है कि बीते दो दशकों से कालेज की संबद्धता के लिए जाली दस्तावेजों का उपयोग करते आ रहे हैं। मामले की जांच के लिए हाई कोर्ट ने SIT का गठन किया है। एसआईटी को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश करनी होगी।
बेलगाम और बेशर्म भ्रष्टाचार-
मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने फर्जीवाड़े को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। बेंच ने कहा कि राज्य में बेलगाम और बशर्म भ्रष्टाचार की स्थिति है। कोर्ट ने विधायक मसूद द्वारा अधिकारियों से मिलकर एक नहीं दो-दो बार कालेज की संबद्धता हासिल करने जाली दस्तावेज पेश किया है। लिहाजा विधायक के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। डिवीजन बेंच ने विधायक मसूद और इस फर्जीवाड़े में शामिल अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर करने का निर्देश भोपाल पुलिस कमिश्नर को दिया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि आदेश के हाई कोर्ट के वेबसाइट पर अपलोड होने के बाद तीन दिन के भीतर एफआईआर दर्ज की जाए।
जाली दस्तावेजों के आधार पर ली संबद्धता,विवि ने संबद्धता रद्द करने जारी किया था नोटिस-
साल्वेंसी सर्टिफिकेट को जाली करार देते हुए बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी ने 9 जून को इंदिरा प्रियदर्शनी कालेज को संबद्धता समाप्त करने के संबंध में नोटिस जारी किया। जारी नोटिस में साल्वेंसी सर्टिफिकेट को जाली बताया। नोटिस के जवाब में कालेज ने बताया कि आउटसोर्स के जरिए सर्टिफिकेट लिया था। एजेंटों ने गुमराह कर संपत्ति के संबंध में जाली दस्तावेज दे दिए। जवाब के साथ ही याचिकाकर्ता इंदिार प्रियदर्शनी कालेज ने दूसरा साल्वेंसी सर्टिफिकेट जमा किया।
लगातार तीसरी शिकायत के बाद की गई कार्रवाई-
इंदिरा प्रियदर्शनी कालेज की संबद्धता के लिए जाली दस्तावेज जमा करने के संबंध में लगातार तीसरी शिकायत के बाद यूनिवर्सिटी ने कालेज की संबद्धता रद्द करने का आदेश जारी किया। सबसे पहले शिकायत सितंबर 2005 में मो हसीब ने की, तब मामला हाई कोर्ट में लंबित होने का हवाला देते हुए शिकायत को ठंडे बस्ते में डाल दिया और हस्तक्षेप से विवि ने इनकार कर दिया। वर्ष 2011 में आरीफ अकील ने शिकायत दर्ज कराई। इसी बीच कालेज प्रबंधन ने जगह परिवर्तन का आवेदन दिया। खानूगांव में संचालित कालेज को पुना गांव में स्थानांतरित कराने के संबंध में विवि से अनुमति भी प्राप्त कर ली। इसी बीच जाली दस्तावेजों के आधार पर कालेज की संबद्धता को लेकर विवि में तीसरी शिकायत दर्ज कराई गई। जांच कमेटी ने जांच के बाद कालेज की संबद्धता रद्द करने की सिफारिश कर दी। इसी आधार पर मई 2025 में, शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालय को कॉलेज की संबद्धता रद्द करने का निर्देश दिया।
दस्तावेजों से हुआ खुलासा-
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के समक्ष दस्तावेज पेश किया, जिसमें फर्जीवाड़ा साफतौर पर दिखाई दे रहा था। एडिशनल एजी ने 10 जनवरी 2001 का एक बिक्री विलेख पेश किया। जिसमें विक्रेता का नाम बुलाखीलाल और क्रेता अमान एजुकेशन सोसायटी है, जिसके सचिव आरिफ मसूद हैं। इस दस्तावेज की जांच करने पर, यह 2004 में ही जाली पाया गया था और मूल बिक्री विलेख से पता चला कि विक्रेता वही था, लेकिन क्रेता रुबीना मसूद थीं, जो कॉलेज चलाने वाली सोसायटी के सचिव की पत्नी हैं। दस्तावेज के साथ छेड़छाड़ की गई थी और इसे सॉल्वेंसी के प्रमाण के रूप में पेश किया गया था। डिवीजन बेंच ने कहा कि अधिकारियों को 2004 में ही उनके साथ की गई धोखाधड़ी का पता चल गया था। लेकिन प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण कारणों से उन्होंने IPC की धारा 420, 467 और 468 के तहत कथित अपराध को माफ कर दिया और कॉलेज को सॉल्वेंसी साबित करने के लिए नए दस्तावेज जमा करने की अनुमति दी।
छात्रहित में आया हाई कोर्ट का फैसला-
इंदिरा प्रियदर्शनी कालेज में एक हजार स्टूडेंट पढ़ाई कर रहे हैं। उनके भविष्य को देखते हुए डिवीजन बेंच ने संबद्धता रद्द करने के राज्य शासन के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कालेज का संचालन यथावत रखने का निर्देश दिया है। डिवीजन बेंच ने अगले शैक्षणिक सत्र के लिए कोर्ट की अनुमति बिना छात्रों को प्रवेश देने पर रोक लगा दी है। बेंच ने भोपल के पुलिस कमिश्नर को विधायक मसूद और जालसाजी में सहयोग करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। इसके लिए कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर को तीन दिन का समय दिया है।
