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'माता' का ऐसा मंदिर, जहाँ देवी मां दिन में 3 बार बदलती हैं अपना रूप; मात्र दर्शन भर से हर मनोकामना होती है पूरी

maa kalika mandir satna: मध्य प्रदेश के सतना में माता का ऐसा मंदिर है, जहाँ देवी माँ दिन में अपना रूप तीन बार बदलती है। इनके दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जाती है।

माता का ऐसा मंदिर, जहाँ देवी मां दिन में 3 बार बदलती हैं अपना रूप; मात्र दर्शन भर से हर मनोकामना होती है पूरी
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maa kalika mandir satna

By Ashish Kumar Goswami

भोपाल/सतना। देश-दुनिया और भारत के कई राज्यों में नवरात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। भारत के बड़े शक्तिपीठों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। इस दौरान मध्य प्रदेश के सतना में भी भक्तों का तांता लगा हुआ है।

बता दें कि, मध्य प्रदेश के सतना जिले में माता का ऐसा मंदिर है, जहाँ देवी माँ दिन भर में अलग-अलग स्वरूपों में दर्शन देती हैं। यह मंदिर सतना जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर अमरपाटन रोड पर बसे भटनवारा गाँव में माँ कालिका के नाम से प्रचलित है।

होते है बड़े-बड़े चमत्कार

यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए जाना जाता रहा है। मंदिर के पुजारी प्रभात शुक्ला बताते हैं कि, इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ स्थापित माँ कालिका की प्रतिमा दिन में तीन बार अपना रूप और भाव बदलती हैं। जैसे-जैसे सूरज आसमान में अपनी दिशा बदलता है, वैसे-वैसे माता की प्रतिमा का तेज और भाव भी बदलता रहता है।

इस समय बदलता है माता का स्वरूप

सुबह के वक़्त माँ का चेहरा एकदम शांत और सौम्य दिखता है। लेकिन दोपहर होते ही उनका रूप इतना तेजस्वी हो जाता है कि कोई भी भक्त उन्हें ज्यादा देर तक देख नहीं पाता। वहीं, शाम ढलते ही माता के चेहरे पर करुणा और ममता का भाव साफ़ नज़र आता है, मानो वह अपने भक्तों पर प्यार बरसा रही हों।

इसके अलावा पुजारी बताते हैं कि, सिर्फ चेहरा ही नहीं, बल्कि माता की आँखें भी सूरज की दिशा के साथ बदलती हुई लगती हैं। दोपहर में जब सूरज अपने चरम पर होता है, तो देवी की आँखों से एक ऐसा प्रकाश निकलता है कि, भक्त उनसे नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाते।

चमत्कारों की लंबी फेहरिस्त

इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं। कई भक्त इसे बड़े-बड़े चमत्कारों से तो कई इसे मंदिर की प्रचलित लोककथाओं से जानते हैं। बताया जाता है कि, इस मंदिर में कई भक्तों ने चमत्कार होते हुए अपनी आँखों से देखा है। पुजारी प्रभात शुक्ला अपने पूर्वजों से सुनी घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि, 1974 में माता की प्रतिमा से अपने आप पसीना निकलने लगा था।

इसके अलावा 12 अप्रैल 2004 को मंदिर में हुए एक भंडारे के दौरान अचानक माता की प्रतिमा का सिर हिलने लगा था। जिसके बाद पुजारी को एक बड़ी गलती का पता चला था। बाद में इस गलती को ठीक करने पर माता की प्रतिमा शांत हुई थी।

700 साल से भी पुराना इतिहास

स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का मानना है कि, यह मंदिर करीब 700-800 साल पुराना है और इसका संबंध मौर्य काल से भी बताया जाता है। लोककथा के अनुसार, यह प्रतिमा पहले पास की करारी नदी के किनारे मिली थी। जब कुछ चोर इसे चुराकर ले जाने लगे, तो वे ज़्यादा दूर नहीं जा पाए और इसे रास्ते में ही छोड़कर भाग गए। बाद में माता ने एक भक्त को सपने में दर्शन दिए और राजा ने यहाँ पर भव्य मंदिर बनवाया।

फ़िलहाल, अभी नवरात्रि के मौके पर यहाँ दूर-दराज से भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। मंदिर परिसर "जय माता दी" के जयकारों और भक्ति गीतों से गूंज रहा है। भक्तों का कहना है कि, यहाँ मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है, और यही वजह है कि उनकी आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है।

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