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High Court News: हाईकोर्ट ने पति की याचिका की खारिज, कहा- कभी कभार सहवास से इनकार करना मानसिक क्रूरता नहीं

High Court News: वैवाहिक जीवन में कभी-कभार सहवास से इनकार करना मानसिक क्रूरता नहीं है। इसके लिए निरंतर इनकार होना आवश्यक है। इसलिए पत्नी को क्रूरता का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया है। पति ने विवाह विच्छेद की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट ने पति की याचिका की खारिज, कहा- कभी कभार सहवास से इनकार करना मानसिक क्रूरता नहीं
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By Radhakishan Sharma

High Court News: जबलपुर। हाई कोर्ट ने पति की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पत्नी पर सहवास से इनकार करने, दहेज प्रताड़ना में फंसाने जैसे आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की थी। डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि पत्नी द्वारा कभी कभार शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के साथ क्रूरता नहीं है। वैवाहिक जीवन में इस तरह का खटपट चलते रहता है। डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता, जब तक कि निरंतर रूप से दांपत्य संबंधों से इनकार न किया गया हो।

परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता पति ने फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 की धारा 19 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। जबलपुर स्थित परिवार न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता पति ने अपनी याचिका में बताया है कि उसकी शादी मई 2007 में हुई। वर्ष 2009 तथा 2019 में उनके दो बेटे हुए। याचिका के अनुसार विवाह के आरंभ से ही दोनों के संबंध तनावपूर्ण रहे। पत्नी उसके माता–पिता के साथ रहने को तैयार नहीं थी।

याचिकाकर्ता ने पत्नी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने झूठे दहेज मामलों में फंसाने की धमकी दी थी। सहवास से इनकार किया और मार्च, 2024 में बच्चों और सामान के साथ मायके चली गई। पत्नी उसी शर्त पर लौटने को तैयार थी, जब उसे उचित देखभाल और भरण–पोषण का आश्वासन मिले। मामले की सुनवाई के दौरान फैमिली कोर्ट ने पाया कि पति यह सिद्ध नहीं कर सका कि पत्नी ने उसे दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिए त्याग दिया और न ही यह सिद्ध कर सका कि पत्नी ने उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया। फैमिली कोर्ट ने पति के आरोपों से इनकार करते हुए तलाक की अनुमति संबंधी याचिका को खारिज कर दिया था।

पत्नी की क्रूरता को आधार बनाकर पति द्वारा मांगी जा रही तलाक के संबंध में हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि धारा 13(1)(i-a) के अंतर्गत वही क्रूरता मानी जाएगी, जो इतनी गंभीर हो कि पति पत्नी का साथ रहना असंभव हो जाए। पति द्वारा लगाए गए आरोप जैसे झगड़े, कोविड काल में पत्नी का अनुपस्थित रहना और पारिवारिक कार्यक्रमों में उसका व्यवहार ऐसी गंभीर घटनाएं नहीं हैं, जिन्हें क्रूरता कहा जा सके। ये तो वैवाहिक जीवन की सामान्य खटपट हैं।

यह तो पत्नी की उचित अपेक्षा है

याचिकाकर्ता की शादी 14.05.2007 को हुई थी। मार्च, 2024 तक पति पत्नी साथ-साथ रहे। उनके दो बच्चे हैं, जो यह साबित करता है कि वे अच्छे से साथ रहे। वैवाहिक जीवन में कभी-कभार सहवास से इनकार करना मानसिक क्रूरता नहीं है। इसके लिए निरंतर इनकार होना आवश्यक है। इसलिए प्रतिवादी पत्नी को क्रूरता का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि उचित देखभाल व निष्ठा की शर्त पर लौटने की इच्छा जताई, जो एक पत्नी की उचित अपेक्षा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि स्वयं पति ने तलाक के बजाय पुनर्मिलन की कोशिश की, जिससे यह स्पष्ट है कि उसने पत्नी के पूर्व आचरण को स्वीकार कर लिया था। कोर्ट ने कहा कि पति द्वारा बताए गए घटनाक्रम केवल साधारण विवाद और दांपत्य जीवन की तकरार हैं जिसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता।

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