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Chhindwara 4 Babies Death Case : कुदरत का कहर : एक साथ आंगन में गूंजी थी चार किलकारियां, फिर चंद घंटों में उजड़ गई मां की गोद; मासूमों की मौत से खुशियां बदली मातम में

Chhindwara 4 Babies Death Case : मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक ऐसी ही रूह कंपा देने वाली खबर सामने आई है, जिसने न केवल एक परिवार को सदमे में डाल दिया, बल्कि पूरे इलाके को गमगीन कर दिया है।

Chhindwara 4 Babies Death Case : कुदरत का कहर : एक साथ आंगन में गूंजी थी चार किलकारियां, फिर चंद घंटों में उजड़ गई मां की गोद; मासूमों की मौत से खुशियां बदली मातम में
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Chhindwara 4 Babies Death Case : कुदरत का कहर : एक साथ आंगन में गूंजी थी चार किलकारियां, फिर चंद घंटों में उजड़ गई मां की गोद; मासूमों की मौत से खुशियां बदली मातम में

By UMA

Chhindwara 4 Babies Death Case : छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)। नियति कभी-कभी ऐसे जख्म देती है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल होता है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक ऐसी ही रूह कंपा देने वाली खबर सामने आई है, जिसने न केवल एक परिवार को सदमे में डाल दिया, बल्कि पूरे इलाके को गमगीन कर दिया है। यहां जुन्नारदेव क्षेत्र की एक महिला ने एक साथ चार बच्चों को जन्म दिया था, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। जिंदगी और मौत के बीच चली चंद घंटों की जंग में चारों मासूम हार गए और एक-एक कर सभी ने दम तोड़ दिया।

Chhindwara 4 Babies Death Case : 7वें महीने में ही गूंज उठीं किलकारियां

मामला जुन्नारदेव के ग्राम रोरा ढेकनी माल का है। यहां रहने वाले जगर सिंह की पत्नी गुनो को सोमवार को प्रसव पीड़ा होने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जुन्नारदेव लाया गया था। अस्पताल के गलियारे में उस वक्त हलचल तेज हो गई जब डॉक्टरों ने बताया कि महिला एक साथ चार बच्चों (तीन लड़कियां और एक लड़का) को जन्म देने वाली है। सुबह करीब 11:30 बजे चारों बच्चों का जन्म हुआ। एक साथ चार बच्चों के आने की खबर मिलते ही परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन यह खुशी रेत की तरह हाथों से फिसलने वाली थी।

Chhindwara 4 Babies Death Case : सबसे छोटे मासूम का वजन था मात्र 380 ग्राम डॉक्टरों के मुताबिक, यह एक 'सुपर प्रीमैच्योर' डिलीवरी का मामला था। महिला ने गर्भावस्था के महज 7वें महीने में ही बच्चों को जन्म दे दिया था। समय से पहले जन्म होने के कारण बच्चों के शरीर के अंग पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए थे।

चिकित्सकों ने बताया कि सबसे छोटे बच्चे का वजन केवल 380 ग्राम था, जो सामान्य नवजात के वजन के मुकाबले बेहद कम था। वजन कम होने की वजह से बच्चों के फेफड़े सांस लेने के लिए तैयार नहीं थे। डॉक्टरों की एक विशेष टीम ने मासूमों को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन संसाधनों और बच्चों की शारीरिक कमजोरी के आगे विज्ञान भी बौना साबित हुआ।

अस्पताल में पसरा सन्नाटा, सदमे में पिता

जैसे ही एक-एक कर चारों बच्चों की मौत की खबर बाहर आई, अस्पताल में जश्न का माहौल चीख-पुकार में बदल गया। जिस पिता के हाथ कुछ देर पहले बधाई स्वीकार कर रहे थे, अब वही हाथ अपने कलेजे के टुकड़ों को अंतिम विदाई देने के लिए कांप रहे थे। मुख्य चिकित्सा अधिकारी और अस्पताल प्रशासन ने इस घटना की पुष्टि करते हुए इसे एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण मेडिकल केस बताया है। डॉक्टरों का कहना है कि इतने कम वजन और प्री-टर्म (समय से पहले) केस में जीवित रहने की संभावना (Survival Rate) बहुत ही कम होती है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, सामान्यतः एक स्वस्थ नवजात का वजन 2.5 किलो से 3 किलो के बीच होना चाहिए। छिंदवाड़ा के इस मामले में बच्चों का वजन और अंगों का विकास इस स्तर पर नहीं था कि वे बाहरी वातावरण में जीवित रह सकें। विशेष रूप से 7वें महीने के जन्म में फेफड़ों का विकास न होना ही मौत का सबसे बड़ा कारण बनता है।

यह घटना उन परिवारों के लिए एक चेतावनी और सबक भी है कि गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच और पोषण का विशेष ध्यान रखा जाए, ताकि ऐसी 'हाई-रिस्क' स्थितियों को समय रहते पहचाना जा सके। फिलहाल, पूरा गांव पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने में जुटा है, लेकिन मां की खाली हुई गोद का दर्द शायद ही कोई कम कर पाए।

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