Reflect Sunlight: धरती के तापमान से परेशान वैज्ञानिक, अब सूरज की रोशनी कम करने की हो रही है साजिश!
क्या आपने कभी सोचा है कि सूरज की रोशनी को भी कम किया जा सकता है आपको यह काल्पनिक लगेगा लेकिन ब्रिटेन में अब इसे हकीकत बनाने की तैयारी है। हम सभी जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से ये पूरी दुनिया जूझ रही है। इसी बीच ब्रिटेन की एडवांस रिसर्च एसेंजी एक ऐसा प्रयोग कर रही है कि सूरज की किरणों को ब्लॉक कर पृथ्वी को ठंडा किया जाए। पिछले कुछ दशकों की अगर हम बात करें तो धरती का तापमान इतनी तेजी से बढ़ा है कि आर्कटिक का बर्फ पिघल रहा है। गर्मी अब बढ़ती ही जा रही है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक चेतावनी चुके हैं कि तापमान वृद्धि को नहीं रोका गया तो आने वाले वर्षों में पूरी मानवता संकट में पड़ सकती है।

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क्या आपने कभी सोचा है कि सूरज की रोशनी को भी कम किया जा सकता है। आपको यह काल्पनिक लगेगा लेकिन ब्रिटेन में अब इसे हकीकत बनाने की तैयारी है। हम सभी जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से ये पूरी दुनिया जूझ रही है। इसी बीच ब्रिटेन की एडवांस रिसर्च एसेंजी एक ऐसा प्रयोग कर रही है कि सूरज की किरणों को ब्लॉक कर पृथ्वी को ठंडा किया जाए। पिछले कुछ दशकों की अगर हम बात करें तो धरती का तापमान इतनी तेजी से बढ़ा है कि आर्कटिक का बर्फ पिघल रहा है। गर्मी अब बढ़ती ही जा रही है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि तापमान वृद्धि को नहीं रोका गया तो आने वाले वर्षों में पूरी मानवता संकट में पड़ सकती है।
ब्रिटेन की संस्था एआरआईए के रिसर्च में Stratospheric Aerosol Injection (SAI) नामक तकनीक पर काम कर रही है। इसमें सल्फर जैसे बारीक कण ऊपरी वायुमंडल में छोड़े जाते हैं, जो सूरज की रोशनी को परावर्तित करके धरती तक पहुंचने से रोकेगा। जैसे ज्वालामुखी विस्फोट के समय धूल और राख फैलाकर वातावरण को कुछ वक्त के लिए ठंडा कर दिया जाता है।
ARIA अन्य दो प्रयोगों पर भी रिसर्च कर रही है-
1. क्लाउड ब्राइटनिंग – समुद्र के ऊपर के बादलों में नमक या पानी के महीन कण छोड़ना, ताकि वे अधिक सफेद और चमकदार हो जाएं, जिससे धूप वापस लौट जाए।
2. आर्कटिक बर्फ को मोटा करना- आर्कटिक बर्फ को मोटा करने पर भी रिसर्च किया जा रहा है ताकि बर्फ पिघलने की प्रक्रिया धीमी हो सके।
हालांकि एआरआईए के इस प्रयोग को लेकर वैज्ञानिकों में बहस छिड़ी हुई है काफी वैज्ञानिक ये मानते हैं कि इससे वर्षा चक्र गड़बड़ा सकता है। जिससे खेती और जल आपूर्ति भी प्रभावित होगी ऐसा करने से ओजोन परत को भी नुकसान पहुँच सकता है क्योंकि एक बार ये प्रक्रिया शुरू हुई और फिर अचानक रोकी गई तो तापमान तेजी से बढ़ेगा, जिससे तबाही भी हो सकती है। इस संस्था को लेकर इस बात की चिंता भी है कि यहां के शोध को लेकर आप आरटीआई नहीं लगा सकते, संस्था अपने शोध का विवरण सार्वजनिक नहीं करती जिससे विशेषज्ञों में यह डर है कि कहीं यह chemtrail जैसी थ्योरी में ना बदल जाए।
बता दें कि अमेरिका, चीन और यूरोप में भी इस विषय पर अनुसंधान चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई भी देश इसे खुले तौर पर लागू करने की स्थिति में नहीं है। हालांकि आने वाले समय में वैज्ञानिक इस प्रयोग को आजमाएंगे को तो दूसरे देशों को भी इसका नुकसान होगा क्योंकि कई वैज्ञानिक ये मानते हैं कि प्रकृति के साथ छेड़खानी हुई तो आने वाले समय में हमें भारी नुकसान झेलना होगा।