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"वर्ल्ड आर्थराइटिस डे" आज, समय रहते सतर्क होने से संभव है आर्थराइटिस का इलाज

वर्ल्ड आर्थराइटिस डे आज, समय रहते सतर्क होने से संभव है आर्थराइटिस का इलाज
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By NPG News

दिव्या सिंह

बहुत से लोग समय-समय पर अपने बदन में दर्द और अकड़न महसूस करते हैं और कभी-कभी उनके हाथों, कंधों और घुटनों में भी सूजन और दर्द रहता है। यहाँ तक कि उन्हें हाथ हिलाने तक में दिक्कत होती है। ऐसे लोगों को अर्थराइटिस हो सकता है।आज की बदलती जीवनशैली, मोटापा, गलत खानपान आदि वजहों से अर्थराइटिस रोग अब केवल बुजुर्गो तक हीं सीमित नहीं रह गया है, बल्कि युवा और बच्चे भी इसका शिकार होते जा रहे है। लोगों के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाली बीमारियों में से एक "आर्थराइटिस" पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली इस बीमारी के संदर्भ में जागरुकता बढ़ा कर लोगों को समय पर सतर्क करने के लिए हर वर्ष 12 अक्टूबर को "वर्ल्ड आर्थराइटिस डे" मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस काॅमन सी लगने वाली लेकिन बेहद दर्दनाक बीमारी के बारे में।

क्या होता है आर्थराइटिस

आर्थराइटिस जोड़ों की सूजन है। यह संयुक्त या एकाधिक जोड़ों को प्रभावित कर सकता है। आर्थराइटिस जोड़ों के ऊतकों की जलन और क्षति के कारण होता है। जलन के कारण ही ऊतक लाल, गर्म, दर्दनाक और सूज जाते हैं। यह सारी समस्या यह दर्शाती है कि आपके जोड़ों में कोई समस्‍या है। जोड़ वह जगह होती है जहां पर दो हड्डियों का मिलन होता है जैसे कोहनी या घुटना। कुछ तरह के अर्थराइटिस में जोड़ों की बहुत ज्यादा क्षति होती है। अर्थराइटिस के लक्षण आमतौर पर समय के साथ विकसित होते हैं, लेकिन वे अचानक भी प्रकट हो सकते हैं। यह आमतौर पर 65 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में देखा जाता है, लेकिन बदलती और बेतरतीब जीवनशैली के कारण यह बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों में भी फैल रही है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अर्थराइटिस अधिक आम है।

आर्थराइटिस से पीड़ित लोगों की कुल आबादी में से दो-तिहाई लोग 65 वर्ष से कम आयु के हैं।अध्ययनों से पता चला है कि प्रत्येक 250 में से लगभग 1 बच्चा भी किसी न किसी प्रकार की गठिया की स्थिति से पीड़ित है।

*कितने प्रकार का होता है आर्थराइटिस

अब तक 100 से अधिक विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस का पता लगाया जा चुका है। इसमें कुछ सबसे प्रमुख हैं ऑस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटीइड आर्थराइटिस, सेप्टिक आर्थराइटिस, एंकिलॉज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस, जूवेनाइल आइडोपैथिक आर्थराइटिस और गाउट ।

आर्थराइटिस के लक्षण -

1. बार बार बुखार आना

2. मांसपेशियों में दर्द रहना

3. हमेशा थकान और सुस्ती महसूस होना

4. ऊर्जा के स्तर में गिरावट आना

5. भूख की कमी हो जाना

6. वज़न का घटने लगना

7. जोड़ों में दर्द की समस्या

8. सामान्य मूवमेंट पर भी शरीर में असहनीय दर्द होना

9. शरीर का टेम्परेचर बढ़ जाना अर्थात शरीर का गर्म हो जाना

10. शरीर पर लाल चकत्ते पड़ जाना

11. जोड़ों के आस पास की त्वचा पर गाँठें बन जाना

ये सारे ही लक्षण अर्थराइटिस के हो सकते हैं।

*आर्थराइटिस की समस्या के कारण

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, आर्थराइटिस की समस्या के कई कारण हो सकते हैं, जिसके बारे में सभी लोगों को जानते हुए अपने जोखिम कारकों के आधार पर बचाव के उपाय करते रहने चाहिए। डॉक्टर्स कहते हैं, उम्र बढ़ने और लाइफस्टाइल में गड़बड़ी के अलावा, घुटनों में चोट के कारण भी इसके विकसित होने का खतरा हो सकता है। साथ ही यदि आपके परिवार में किसी को आर्थराइटिस की समस्या रह चुकी है तो आपमें भी इसके विकसित होने का जोखिम हो सकता है। इसके अलावा प्रतिरक्षा प्रणाली में दिक्कत और शारीरिक निष्क्रियता भी गठिया के विकसित होने का एक संभावित कारण हो सकती है, जिसके बारे में लोगों को सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता होती है।

*दर्द कम करने के लिए कुछ सामान्य उपाय

कुछ उपायों को अपनाकर हम अर्थराइटिस के अत्यधिक तीव्र दर्द को कम भी कर सकते हैं। तो आइए देखते हैं कि वे क्या हैं-

1.) नहाते समय अपने पानी को गुनगुना रखें। कोशिश करें कि आप गुनगुने पानी से ही नहाएं। इससे आपके शरीर में अर्थराइटिस के दर्द को कम करने की क्षमता उत्पन्न होगी।

2.) अर्थराइटिस रोगियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यही है कि वे समय समय पर डॉक्टर से संपर्क करें। इस रोग के दर्द से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर ही सही सलाह दे सकते है।

3.) वज़न कम करें।कोशिश करें कि आपके शरीर पर वसा का अतिरिक्त जमाव ना हो। यदि आपका वज़न बढ़ जाता है तो ऐसे में आर्थराइटिस की समस्या और ज़्यादा परेशानी का सबब बन सकती है।

4.) व्यायाम करना भी काफ़ी फ़ायदेमंद होता है। डॉक्टर तथा एक्सपर्ट की सलाह से व्यायाम करें। इससे शरीर में मूवमेंट होगी जो जोड़ों की फंक्शनिंग को ठीक कर सकता है।

*आर्थराइटिस का इलाज संभव है

लगभग सभी इन्‍फ्लेमेट्री आर्थराइटिस ट्रीटेबल हैं। इसकी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं, मगर रेगुलर फॉलो-अप जरूरी है

अगर इसके शुरूआती लक्षणों को पहचानकर समय से इलाज लिया जाए तो किसी भी पर्मानेन्‍ट डिसेबिलिटी से बचा जा सकता है।

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