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Warning for Mobile Users Kids : दिमाग से लेकर आंखें और फिजिकल एक्टिविटी भी हो रही खत्म...कहीं आपके लाडले को खोखला ना बना दे मोबाइल फोन

मोबाइल फोन न देने पर बच्चों का गुस्सा करना, रोना, चीखना और चिल्लाना आपने भी देखा होगा। लेकिन क्या आपने सोचा है कि उनमें इस तरह की आदत शुरू कैसे होती है? जवाब बहुत आसान है- पेरेंट्स की गलतियों के कारण।

Warning for Mobile Users Kids : दिमाग से लेकर आंखें और फिजिकल एक्टिविटी भी हो रही खत्म...कहीं आपके लाडले को खोखला ना बना दे मोबाइल फोन
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By Meenu

बच्चों की जिद से पीछा छुड़ाने के लिए क्या आप भी उन्हें मोबाइल फोन थमा देते हैं. आपका बच्चा भले ही इससे शांत हो जाता है लेकिन काफी देर तक स्क्रीन पर समय बिताने से वह दिमागी रूप से कमजोर हो रहा है. उनकी आंखें भी कमज़ोर हो रही हैं। दुसरो से मिलना-जुलना, सामाजिक और शारीरिक गतिविधियां तो फिर भूल ही जाये। वे मोबाइल की ही दुनिया में होकर रह जाते हैं।

दुनिया भर में हुई कई रिसर्च बताती हैं कि कम उम्र में बच्चों को स्मार्टफोन देना उनके मानसिक विकास को प्रभावित करना है. एक रिपोर्ट के अनुसार, मोबाइल, गैजेट्स और ज्यादा टीवी देखने से बच्चों का भविष्य खराब होता है. वर्चुअल आटिज्‍म का खतरा भी बढ़ रहा है.



मोबाइल फोन न देने पर बच्चों का गुस्सा करना, रोना, चीखना और चिल्लाना आपने भी देखा होगा। लेकिन क्या आपने सोचा है कि उनमें इस तरह की आदत शुरू कैसे होती है? जवाब बहुत आसान है- पेरेंट्स की गलतियों के कारण।

जी हां, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल पर छपी रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार दिमाग के समुचित विकास के लिए जन्म से 5 साल तक की उम्र बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसी उम्र में बच्चे विचार करना, तुलना करना, लिखना, पढ़ना, नई भाषा सीखने, क्रिएटिविटी जैसी क्षमताएं विकसित करते हैं। ये क्षमताएं दिमाग के अंदर करोड़ों न्यूरॉन्स के कनेक्शन के कारण पैदा होती हैं। लेकिन मोबाइल की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी इन न्यूरॉन्स के कनेक्शन में बाधा बनती है, जिससे बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होता है।


वर्चुअल ऑटिज्म क्या है

मनोचिकित्सक डॉ. सोनिया परियल के अनुसार अक्सर 4-5 साल के बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म (virtual autism) के लक्षण दिखते हैं. मोबाइल फोन, टीवी और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत की वजह से ऐसा होता है. स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल या लैपटॉप-टीवी पर ज्यादा समय बिताने से उनमें बोलने और समाज में दूसरों से बातचीत करने में दिकक्त होने लगती है. हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, इस कंडीशन को ही वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है. इसका मतलब यह होता है कि ऐसे बच्चों में ऑटिज्म नहीं होता लेकिन उनमें इसके लक्षण दिखने लगते हैं। सवा साल से तीन साल के बच्चों में ऐसा बहुत ज्यादा दिख रहा है.

ज्यादा मोबाइल यूज करने से बच्चों में स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पाता और उनका ज्यादातर समय गैजेट्स में ही बीत जाता है. उनका बिहैवियर खराब होने लगता है. कई बार उनके नखरे भी बहुत बढ़ जाते हैं और वे आक्रामक भी हो सकते हैं. स्मार्टफोन से उनके सोने का पैटर्न भी बिगड़ जाता है. ऐसे में पैरेंट्स को बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रखना चाहिए. गैजेट्स का जीरो एक्सपोजर बच्चों में रखना चाहिए. मतलब उन्हें पूरी तरह इससे दूर रखना चाहिए.

पैरेंट्स क्या करें


अक्सर जब बच्चा छोटा होता है तो पैरेंट्स उन्हें पास बिठाकर मोबाइल फोन दिखाते हैं. बाद में बच्चों को इसकी लत लग जाती है. पैरेंट्स को सबसे पहले तो अपने बच्चों को इलेक्ट्रॉनिग गैजेट्स से दूर खना है. उनका स्क्रीन टाइम जीरो करने पर जोर देना चाहिए. उनका फोकस बाकी चीजों पर लगाएं. स्लीप पैटर्न भी दुरुस्त करें. बच्चों को आउटडोर एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करें. ऐसा करने के लिए मां-बाप को पहले खुद में सुधार करना होगा. बच्चों को सामने खुद भी फोन से दूरी बनानी होगी और स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में हिस्सा लेना चाहिए.

बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म से बचाने में सबसे बड़ा रोल पैरेंट्स का होता है. इसके अलावा ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है. हालांकि, पर्सनैलिटी डेवलपमेंट थेरेपी, स्पीच थेरेपी और स्पेशल एजुकेशन थेरेपी से इसे कुछ हद तक रोका जा सकता है. इससे बच्चे की स्थिति में सुधार कियाजा सकता है. लेकिन इस प्रक्रिया में काफी समय की आवश्यकता होती है.

वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण




  • वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार बच्चे दूसरों से बातचीत करने से कतराते हैं.
  • ऐसे बच्चे बातचीत के दौरान आई कॉन्टैक्ट से बचते हैं.
  • इन बच्चों में बोलने की क्षमता का विकास काफी देरी से होता है.
  • इन्हें समाज में लोगों से घुलने-मिलने में काफी परेशानियां होती हैं.
  • वर्चुअल ऑटिज्म की चपेट में आने वाले बच्चों का आईक्यू भी कम होता है.


माता-पिता की इन गलतियों के कारण बच्चों को लगती है मोबाइल की लत



बाल मनोवैज्ञानिक या परामर्शदाता डॉ. सिमी श्रीवास्तव के अनुसार आजकल बच्चों को बिजी रखने के लिए माता-पिता खुद ही उन्हें गेम्स और वीडियोज चलाकर दे देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मोबाइल या टैबलेट की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी बच्चों की आंखों के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकती है?

  • रोते हुए बच्चे को शांत करने के लिए मोबाइल पर वीडियोज चलाकर दे देना।
  • बच्चा परेशान कर रहा है, तो उसे ऑनलाइन या ऑफलाइन गेम में उलझा देना।
  • बच्चों को टाइम न देना, जिससे बोर होकर बच्चे टीवी, टैबलेट्स और मोबाइल का इस्तेमाल बोरियत मिटाने के लिए करने लगते हैं।
  • बच्चों के सामने खुद भी हर समय फोन चलाना, वीडियोज देखना या सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना।
  • बच्चों के वीडियोज शूट करना और ऑनलाइन पोस्ट करना, जिससे बच्चे का मोबाइल, सोशल मीडिया की तरफ इंगेजमेंट बढ़ता है।
  • बच्चों को बाहर खेलने न जाने देना, जिससे बच्चे दिनभर घर पर रहते हैं और डिजिटल गेम्स से ही टाइमपास करते हैं।

कैसे छुड़ा सकते हैं बच्चों की मोबाइल की लत?

सीमित समय के लिए इस्तेमाल करने दें गैजेट्स

आजकल के बच्चों को गैजेट्स से पूरी तरह दूर रख पाना बहुत मुश्किल है। ऑनलाइन क्लासेज, स्कूल और दोस्तों के व्हाट्सएप ग्रुप्स, एनिमेटेड क्लासेज के इस जमाने में बच्चे अगर गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो कहीं न कहीं पीछे रह जाएंगे। लेकिन ध्यान रखने वाली बात ये है कि उन्हें सीमित समय के लिए ही इन गैजेट्स का इस्तेमाल करने की इजाजत दें और पढ़ाई-लिखाई, दोस्तों से बातचीत, स्कूल के ग्रुप मैसेज चेक करने या नई स्किल्स सीखने से जुड़ी चीजों के लिए ही गैजेट्स दें।

बाहर जाकर खेलने के लिए करें प्रेरित

बच्चों के विकास के लिए बेहतर यही है कि वो बाहर जाकर खेलें। बाहर खेलते समय उछल-कूद के दौरान उनकी एक्सरसाइज हो जाती है। इसके अलावा दूसरे बच्चों के साथ खेलने से उनमें सोशल स्किल्स और लैंग्वेज स्किल्स भी बढ़ती हैं।

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