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Snake Rescue in Chhattisgarh: सांप पकड़ने के लिए इन 8 शर्तों पर एक साल के लिए फारेस्ट विभाग देता है परमिशन, वरना जाना पड़ सकता है जेल...

Snake Rescue in Chhattisgarh: सांप पकड़ने के लिए इन 8 शर्तों पर एक साल के लिए फारेस्ट विभाग देता है परमिशन, वरना जाना पड़ सकता है जेल...
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By NPG News

सत्यप्रकाश पांडेय

Snake Rescue in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में सांपों को रेस्क्यू करना फिर उनकी नुमाईश करने का गोरखधंधा ना सिर्फ गाँव-शहर तक सीमित है बल्कि सोशल साइटस पर भी उसके कइयों प्रत्यक्ष प्रमाण जमकर वायरल हैं। बिलासपुर शहर या फिर जिले में कौन-कौन साँपों का रेस्क्यू कर रहा है शायद इसकी जानकारी वन महकमें को नहीं है जबकि वन मुख्यालय से जारी आदेश के तहत वन मुख्यालय या फिर वन मंडल से अधिकृत और रजिस्टर्ड टीम ही संबंधित जिले में 50 किलोमीटर के दायरे में साँपों का सुरक्षित रेस्क्यू कर उन्हें पास के किसी जंगल में छोड़ेगी। सांप रेस्क्यू के लिए अधिकृत टीम को विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्य जीव प्रबंधन एवं जैव विविधता संरक्षण सह मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक कार्यालय से अनुमति भी लेना होगा या फिर उन्हें सूचित करना होगा । बिना किसी पंजीयन और वन मुख्यालय की अनुमति के बगैर कोई भी संस्था या व्यक्ति ना सिर्फ साँपों का रेस्क्यू करता है बल्कि उनकी नुमाईश करता हुआ पाया जाता है तो उसके खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत सख्त कानूनी कार्रवाही का प्रावधान है। ऐसे हालात में साँपों की तस्करी और उनके जहर निकालकर बेचे जाने जैसी घटना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

आपको बता दें कि सांपों को ऐसे कोई भी नहीं पकड़ सकता। इसके लिए वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव प्रबंधन एवं जैव विविधता संरक्षण सह मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक कार्यालय से अनुमति लेना होगा। यह भी 8 शर्तों पर एक साल के लिए दी जाएगी, समयसीमा समाप्त होने के बाद उसके नवीनीकरण का प्रावधान है । वन विभाग ने अब तक बिलासपुर क्षेत्र में मात्र एक संस्था को ही इसके लिए अधिकृत किया था जिसका नवीनीकरण पिछले दो वर्ष से लंबित है। मतलब साफ़ है कि बिलासपुर जिले में एक भी ऐसी संस्था अधिकृत नहीं है जो साँपों का रस्क्यू कर सके मगर नियम-कायदों को कूड़े के ढ़ेर में डालकर कुछ लोग सांप पकड़ने का काम अहर्निश कर रहें हैं।

रायपुर के अटल नगर स्थिति वन मुख्यालय अरण्य भवन से जारी निर्देश पर ध्यान दें तो बिलासपुर में मात्र स्नेक्स एंटी रेप्टाइल रेस्क्यू वेलफेयर सोसायटी बिलासपुर को ही सांपो के रेस्क्यू करने की अनुमति दी गई थी। यह अनुमति विभाग ने तब दिया है जब सोसायटी ने पिछले 4 वर्षों से बिलासपुर अंचल में सांपों को बचाने के कार्य करने की जानकारी दी। हालाँकि स्नेक्स एंटी रेप्टाइल रेस्क्यू वेलफेयर सोसायटी बिलासपुर ने भी पिछले दो साल से अपनी अनुमति का नवीनीकरण नहीं करवाया है।

सांपों के संरक्षण और रेस्क्यू के लिए जनहित में विभाग ने वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 12(ख) (ख ख) के तहत यह अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा बिना अनुमति सांप रेस्क्यू करते पकड़े जाने पर ऐसे लोगों के खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस नियम के तहत पकडे जाने पर न्यूनतम 3 साल और अधिकतम 7 साल की सजा का प्रावधान है।

वन मुख्यालय अरण्य भवन से जारी निर्देश पर ध्यान दें तो अधिकृत टीम को जिले के 50 किमी क्षेत्र में कार्यक्षेत्र रखना होगा। सांप को पकड़ने के बाद वनमंडलाधिकारी या उनके प्राधिकृत अधिकारी को सूचना देनी होगी। प्रत्येक वर्ष सांप पकड़ने का रिकार्ड रखना होगा और प्रतिमाह इसकी जानकारी वनमंडलाधिकारी को देनी होगी। सांपों को पकड़ने के बाद वनमंडलाधिकारी या उनके प्राधिकृत अधिकारी के निर्देश पर उन्हें वन क्षेत्र में छोड़ा जाएगा। ऐसे में सांप को मारने, उसके अंग या उसका विष निकालकर व्यापार करते पाए जाने पर संबंधित व्यक्ति, टीम या संस्था के खिलाफ विभाग वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अधीन कार्रवाई करेगी और अनुमति भी समाप्त हो जाएगी। आपको बताते चलें कि सांप को पकड़ने और उसे सुरक्षित छोड़ने के लिए विभाग कोई शुल्क नहीं देगा। सांप पकड़ने, छोड़ने के दौरान किसी भी दुर्घटना, सर्पदंश से शारीरिक क्षति या मृत्यु होने की दशा में सांप पकड़ने वाला स्वयं जिम्मेदार होगा।

इन तमाम नियम कायदों के बीच कितने ऐसे लोग, संस्था हैं जो स्वयं के खर्चे पर जनहिताय का शोर मचा रहीं हैं। शायद अपवाद स्वरूप कोई मिल जाए तो अलग बात है। सांप रेस्क्यू को लेकर बिलासपुर जिले में चल रही प्रतिस्पर्धा और वन्यप्राणी के साथ खुला खिलवाड़ जाहिर तौर पर कुछ अलग ही इशारा करता है क्यूंकि जितने भी लोग इस काम को जिले में कर रहें हैं वे वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 12(ख) (ख ख) का खुला उल्लंघन कर रहें हैं। सांप को पकड़ना, उसे अपने पास रखना फिर उसका तमाशा बनाता हुआ वीडियो सोशल साइट्स पर शेयर करना यक़ीनन अन्य लोगों को ऐसे अपराध की राह पर धकेलने जैसा है।

सोशल साइटस पर वायरल हो रही कुछ तस्वीरों और वीडियो के संबंध में वाइल्डलाइफ से जुड़े जानकारों के अलावा वन मुख्यालय में जिम्मेदार अफसरों से बातचीत करने पर कई बातों का खुलासा होता है। विभाग चाहे तो बिना किसी व्यक्ति की शिकायत के स्वमेव ही ऐसी तस्वीरों, वीडियो को संज्ञान में लेकर संबंधित व्यक्ति से पूछताछ के बाद कार्रवाही कर सकता है।

साल 2019 -2020 में वन विभाग बिलासपुर ने ऐसे 5 लोगों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए न्यायालय में मामला प्रस्तुत किया था इसमें कमल चौधरी, आरती खुटियाले, वैभव वाधमारे जो अभी न्यायालयीन जमानत पर हैं और आज भी बेखौफ सांप रेस्क्यू का काम अवैधानिक तरीके से कर रहें हैं । उस दौरान हुई अन्य कार्रवाही में भागीरथ कालबेलिया और सपेरा नाथ न्यायिक रिमांड पर जेल में हैं। विभाग के मुताबिक कमल चौधरी के पास से सर्प बंदी बनाने के 6 नग बड़े बॉक्स, 4 नग रेस्क्यू एंगल रॉड, 4 नग फाइवर स्नैक बॉक्स व अन्य सामग्री मिली थी। जबकि भागीरथ के पास से दो कोबरा सांप, गोह की हड्डी मिले थे। ऐसे मामलों में जनहित का हवाला देकर ना जाने किस किस तरीके के गोरखधंधे होते हैं शायद इसकी ख़बर वन विभाग को नहीं होती। इस पूरे मामले में हमने राज्य के जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव और एपीसीसीएफ अरुण पांडेय से बातचीत की, उन्होंने बताया कि मुख्यालय से अनुमति प्राप्त व्यक्ति या संस्था सांप का रेस्क्यू कर सकती है। इसके अलावा कोई भी व्यक्ति रेस्क्यू करता है या खुद को रेस्क्यूवर बताकर सांप पकड़ता है तो साक्ष्य मिलने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि किसी भी वन्यप्राणी के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।

इधर रवि नायडू Project Research Assistant at Bombay Natural History Society ने बिलासपुर के कमल चौधरी और उनकी सहयोगी की कुछ तस्वीरें और वीडियो सोशल साइट्स पर शेयर करते हुए साफ़ लिखा है कि Offenders are back in action. "Stunt" is priority, ethical rescue??

Who cares. I think Chhattisgarh state FD officials need to read Sec. 2(16) & Sec.9 of WPA,1972. Strict action required to stop unethical way of snake rescue.

बिलासपुर में दैनिक भास्कर के संपादक रहे वन्यजीव विशेषज्ञ और वाइल्डलाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चढ्ढा ने भी ऐसे मामलों पर घोर आपत्ति जताते हुए कहा है कि किसी की जान बचाना निश्चित ही अच्छा काम हो सकता है मगर उसके आड़ में वाइल्डलाइफ के साथ खिलवाड़, उसके तरह-तरह के वीडियो आपत्तिजनक कृत्य हैं। ऐसे मामलों का खुलकर विरोध किया जाना चाहिए।

इस मामले में छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के सदस्य और वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ मोहित साहू से भी हमने बातचीत की, उन्होंने साफ़ और स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब ऐसे लोग लोगों के लिए क्या कहें ? ऐसे स्टंट जितने इनके खुद के लिए और इन निरीह साँपों के लिए खतरनाक हैं, उससे ज्यादा समाज, खासकर बच्चे, जो इनको देखेंगे, उनके लिए खतरनाक हैं। इनमें से कोई भी साँप अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा होगा और जब कोई भी जानवर असहज होता है, वो क्या करेगा ? इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बच्चे सहज ही इन लोगों को आदर्श मानकर इनकी नकल करेंगे और इसके भयावह परिणाम हो सकते हैं ! ऐसे मामलों को संज्ञान में लेने की जरूरत है।

आपको बता दें कि राज्य के कुछ जिलों में स्नेक रेस्क्यू को लेकर जिला और वन महकमा बेहद गंभीर है।

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