नई दिल्ली, 26 दिसंबर। एक नई नॉन-इनवेसिव थेरेपी से भारत में प्राथमिक लीवर कैंसर के सबसे आम प्रकार हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) के रोगियों को लाभ हो सकता है।
ग्लोबोकैन इंडिया 2020 की रिपोर्ट के अनुसार हर साल हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) के 30,000 से अधिक नए स्थानीय मामलों को डायग्नोस किया जाता है। जिससे यह भारत में कैंसर का 10वां सबसे आम कारण बन जाता है। इसकी उच्च मृत्यु दर इसे देश में कैंसर से संबंधित मौतों का आठवां सबसे आम कारण बनाती है।
भारत में एचसीसी के सामान्य कारणों और जोखिम कारकों में सिरोसिस, हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण, शराब, धूम्रपान, मधुमेह और गैर-अल्कोहल फैटी लीवर रोग शामिल हैं।
एचसीसी के इलाज के लिए सर्जिकल विकल्पों को चुना जाता है। जिससे ट्यूमर में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति को रोक दिया जाता है।
दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंसेज (आईएलबीएस) के प्रोफेसर डॉ. अमर मुकुंद ने आईएएनएस को बताया कि नया बी-टेस (बैलून ट्रांसआर्टेरियल केमोएम्बोलाइजेशन) रोगियों को ट्यूमर के लिए कीमोथेरेपी दवाओं की अधिक लाभ दे सकता है।
जापानी कंपनी टेरुमो द्वारा विकसित बी-टेस स्वस्थ कोशिकाओं को होने वाले नुकसान को भी कम करता है। इसमें काफी कम उपचार की आवश्यकता होती है। यह लीवर की कार्यक्षमता को ठीक करने की क्षमता प्रदान करता है।
डॉ मुकुंद ने कहा, ''जब बी-टेस के माध्यम से इलाज किया जाता है तो रोगियों को इसमें कीमोथेरेपी से अधिक लाभ होता है। यह इलाज में काफी कम समय लेता है।''
टेस को एक पैलिएटिव थेरेपी माना जाता है क्योंकि इसका पूर्ण इलाज शायद ही कभी किया जा सकता है। बी-टेस की उपलब्धता से हम 5 सेमी तक के ट्यूमर वाले कुछ रोगियों का इलाज कर सकते हैं।
डॉ. मुकुंद ने कहा, ''बी-टेस 3 सेमी से 7 सेमी तक के घावों के लिए एक अच्छा उपचार होना चाहिए, साथ ही इसका उपयोग निकट भविष्य में अन्य प्राथमिक ट्यूमर जैसे कोलेंजियोकार्सिनोमा और हेमांगीओमा जैसे ट्यूमर के लिए भी किया जा सकता है।''
डॉक्टर ने कहा, ''गंभीर दुष्प्रभावों और जटिलताओं के कारण 8 सेमी या उससे अधिक आकार के ट्यूमर के लिए बी-टेस नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन टेस, 8 सेमी से अधिक आकार वाले बड़े ट्यूमर के इलाज में मदद कर सकता है।''
यह इलाज सभी के लिए किफायती नहीं हो सकता है। बी-टेस की लागत नियमित माइक्रोकैथेटर का उपयोग करने वाले टेस की लागत से लगभग दोगुनी हो सकती है।
डॉ मुकुंद ने कहा, "अभी भी काफी लम्बा रास्ता पड़ा है। हम अब तक के नतीजों से उत्साहित हैं। हमें आगे यह देखने की जरूरत है कि यह एचसीसी वाले हमारे मरीजों (भारतीय मरीजों) पर कैसे काम करता है। लेकिन, यह निश्चित रूप से सही दिशा में एक अच्छा कदम है।''