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Menopause: शारीरिक संबंधों का अंत नहीं है मीनोपाज! शर्म और डर से भारतीय महिलाएं इस तरह छुपाती हैं अपना मीनोपाॅज?...

Menopause: शारीरिक संबंधों का अंत नहीं है मीनोपाज! शर्म और डर से भारतीय महिलाएं इस तरह छुपाती हैं अपना मीनोपाॅज?...

Menopause: शारीरिक संबंधों का अंत नहीं है मीनोपाज! शर्म और डर से भारतीय महिलाएं इस तरह छुपाती हैं अपना मीनोपाॅज?...
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By Divya Singh

Menopause: ऑफिस से थके-हारे, खीजे हुए लौटे पति पर जाने कितना ही लोड है। काम के दबाव के अलावा सहकर्मियों की पाॅलिटिक्स और बाॅस के ऑर्डर। लौटकर बदले में उन्हें पत्नी का मुस्कुराता हुआ चेहरा तो कम से कम चाहिए ही चाहिए । वहीं बच्चे स्कूल-काॅलेज के बाद कोचिंग से भी निपटकर इतने थक चुके हैं कि उन्हें हर चीज़ अपने-अपने रूम में चाहिए। इन सबके बीच में किसी को नज़र नहीं आता कि सबके लिए सहज उपलब्ध घर की महिला आज कुछ ज्यादा ही ढली हुई है। बिना गर्मी के पसीने से लथपथ है। उसमें अजब सी उधेड़बुन है या भड़भड़ाहट जैसा कुछ। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। चाहती तो है अपनों से हालात शेयर करना पर डर भी है और शर्म भी। हां, उसके अंदर बदलाव हो रहे हैं जिन्हें मेडिकल की भाषा मे मीनोपाॅज कहते हैं। अब बच्चों से बोले कैसे? और पति, वे तो कहीं सुनते ही सन्नाटे में न आ जाएं, क्योंकि अब शायद वो 'उपयोगी' नहीं रहेगी न!...

मीनोपाॅज के साथ बदल जाता है औरत का शरीर

मीनोपाॅज औरत के जीवन का एक निश्चित पड़ाव है। हर एक महिला को एक निश्चित उम्र में इससे गुज़रना ही है। आमतौर पर चालीस से पचास साल की उम्र के बीच महिला की रजोनिवृत्ति यानि मीनोपॉज़ होता है और उसके पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं। प्री मीनोपाॅज के लक्षण ही महिला के लिए परेशान करने वाले होते हैं और जब पीरियड्स आने पूरी तरह बंद हो जाते हैं तो शरीर में तमाम बदलाव होते हैं। एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन कम बनते हैं। एस्ट्रोजन हार्मोन महिला की खुशियों की चाभी की तरह है। इस हार्मोन की कमी से वजाइनल ड्राइनैस, सेक्स के दौरान दर्द और असुविधा होती है। जब-तब मूत्र मार्ग संक्रमण हो सकता है।

अलावा इसके भी मीनोपाॅज के शरीर पर बहुत से असर दिखते हैं। उनका मूड अचानक बदल सकता है। वे डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। बालों का झड़ना बढ़ जाता है। हाथ-पैरों, सिर में दर्द और स्तनों में भी कड़ापन और दर्द रहता है। हाॅट फ्लैशेज़ भी बहुत काॅमन हैं। जिसमें ऐसा लगता है कि पूरा शरीर खासकर चेहरे से सीने तक भयानक जलन महसूस होती है। महिला पसीने से लथपथ हो जाती है। उन्हें कंपकंपी भी हो सकती है क्योंकि सिकुड़ रही ओवरी ऐसे हार्मोन रिलीज़ करने लगती है। उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है और बुढ़ापे के लक्षण तेजी से दिखने लगते हैं। आगे चलकर हड्डियों का घनत्व तेजी से गिरने लगता है जिससे जोड़ों में दर्द और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। कुल मिलाकर महिला के लिए जीवन बदल सा जाता है। वैवाहिक जीवन निभाना उसे खासकर कठिन लगने लगता है।

कम उम्र में हो गया विनीता का मीनोपाॅज

विनीता (परिवर्तित नाम) को भी यही डर था। उसके पति करीब साल भर की ट्रेनिंग के बाद विदेश से वापस आने वाले थे। फोन पर इशारों में 'तैयार रहने' के लिए भी कह दिया था। विनीता बड़ी उधेड़बुन में थी। उसका मीनोपाॅज समय से काफी पहले 38 की उम्र में हो गया था। संकोच के चलते दो साल से उसने यह बात अपने पति से छुपाकर रखी थी। खुशकिस्मती से वह पहले ही दो बच्चों की माँ बन चुकी थी। लेकिन अब वह अपने शरीर में बहुत से बदलाव महसूस कर रही थी। हालांकि वह पढ़ी - लिखी महिला थी। हाॅट फ्लैशेज़, मूड स्विंग जैसी मीनोपाॅज से जुड़ी जानकारियां उसे थीं, लेकिन शरीर भी तो बदल गया था। अब उसमें सेक्स की न तो चाह थी और न ही शरीर इसके लिए तैयार था। आखिर उसने डाॅक्टर की मदद ली। उन्होंने उसे हार्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी के बारे में बताया जो इस दौरान उसके लिए जीवन को आसान कर सकते थे लेकिन इसके कई साइड इफेक्ट्स भी थे। साथ ही उन्होंने उसे एक जैल के लिए रिकमंड भी किया जो उसके लिए सेक्स को आसान बना सकता था। अब जाकर विनीता की जान में जान आई।

विनीता का किस्सा एक शहरी महिला का किस्सा है जिसकी डाॅक्टर और दवाओं तक पहुंच थी लेकिन गांव-कस्बों में हर महिला के लिए स्थिति समान नहीं है। पीरियड्स और मीनोपाॅज दोनों ही यहां टैबू जैसे विषय हैं। जिनपर बात तो क्या, दूसरे को इनका पता चलना भी शर्म की बात है। साड़ी और दुपट्टे में लुका-छिपा कर पैड या कपड़ा लेकर बाथरूम में घुसने वाली ये लड़कियां और महिलाएं इतनी झेंपी हुई रहती हैं जैसे उनसे कोई अपराध हो गया हो। पीरियड्स और उससे जुड़ी बातों को इतना 'गंदा' और शर्मिंदगी का टाॅपिक बना दिया गया है कि महिलाएं इनकी आहट से ही घबराती हैं और नर्वस रहती हैं। और मीनोपाॅज तो जैसे उनके नारीत्व का अंत ही है।

पुरुष की नज़र से मुख्य समस्या सेक्स ड्राइव की कमी

महिलाओं की इन तमाम समस्याओं के बीच जो मुख्य समस्या कुछ पुरुषों को सबसे ज्यादा खटकती है वो है महिला में सेक्स की चाह न रहना। सहयोग में असमर्थता और बचने का भाव। हालाँकि समझदार और पढ़े-लिखे पुरुष महिला के शरीर में आए इन बदलावों को स्वीकार करते हैं और पत्नी को दोषी के नज़रिए से नहीं देखते। लेकिन कम पढ़े-लिखे तबकों में महिलाओं को नारकीय परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है। इसलिए महिलाएं जहां तक हो सके, इस बात को छुपाती हैं। कुछ औरतें तो झूठ-मूठ पीरियड का दिखावा करते हुए सेनेटरी पैड तक फैंकती हैं। मानो उनका रजस्वला होना ही उनकी सबसे बड़ी खूबी है।

दर्दनाक है सीमा का किस्सा

56 साल की सीमा ( परिवर्तित नाम) घरों में मेड का काम करती है। सीमा बताती है कि जब उसका मासिक आना बंद हुआ तो उसने अपनी सास को सबसे पहले इस बारे में बताया। सास ने ही कहा कि अभी पति से जैसे-तैसे यह बात छुपाकर रख। आदमी की जात को जवान बीवी ही चाहिए। लेकिन आखिर कितने साल तक यह बात छिपती।अनपढ़ आदमी औरत की मजबूरी क्या समझता, जिस दिन उसे पता चला, उसने उसे धक्का ही मार दिया और शर्ट डालकर घर से दनदनाते हुए बाहर निकल गया। सीमा कहती है "उस दिन लगा जैसे सब कुछ लुट गया। अब पति कई बार रात बाहर गुजार कर आता है।... अब और क्या कहूं।"

महिलाएं भी करती हैं कटाक्ष

पुरुष तो पुरुष, कई महिलाओं को तो दूसरी महिलाओं के ही कटाक्ष का सामना करना पड़ता है। एक 54 साल की महिला बताती हैं "मेरा मेनोपॉज हुए 3 साल हो गए हैं। मैंने अभी ये बात किसी को नहीं बताई है। इसका कारण यह है कि मैने दूसरी महिलाओं के साथ मीनोपॉज के बाद एक किस्म की दूरी का व्यवहार देखा है। ये इस तरह से है, जैसे हमने कोई पाप कर दिया हो। वे उन्हें बूढ़ी महिला की कैटेगरी में रखने लगती हैं जिसमें अब कोई बात बाकी नहीं हैं। भद्दे मज़ाक तक करती हैं। लोगों की प्रतिक्रियाओं का डर मुझे सच छुपाने के लिए मजबूर कर रहा है। उससे भी बड़ा डर यह है कि कहीं मेरे पति मुझसे बिदक न जाएं।

मीनोपाॅज नहीं है खुशियों का अंत

हर माह आने वाले पीरियड्स दरअसल काफी थकाने वाली प्रक्रिया हैं। पीरियड्स पेन,घर से बाहर निकलने पर होने वाली असुविधा, हैवी ब्लीडिंग को मैनेज करना, अनियमित पीरियड्स की समस्या, गांवों में अछूतों जैसा व्यवहार यानि बहुत सारी समस्याएं हैं जिनका मीनोपाॅज के साथ अंत हो जाता है। अगर महिलाएं इस नज़रिए से मीनोपाॅज को देखें,बदलावों से डरने के बजाए हिम्मत से उनका सामना करें तो मीनोपाॅज एक नई शुरुआत है, न कि खुशियों का अंत। कुछ समस्याएं जैसे हाॅट फ्लैशेज़, मूड स्विंग आदि तो खुद ब खुद एकाध साल के अंदर समाप्त हो जाती हैं। शरीर और खासकर हड्डियों की कमज़ोरी को दूर करने के लिए वे कैल्शियम और विटामिन डी 3 के सप्लिमेंट्स ले सकती हैं या कैल्शियम युक्त चीज़ों का सेवन बढ़ा सकती हैं। अपने आप को मनोरंजक गतिविधियों में शामिल करें, अपनी हाॅबीज़ को फिर समय दें ताकि आपका मूड बेहतर हो। सेक्स लाइफ भी आपके कंट्रोल में रहे, इसके लिए अब कई दवाएं मौजूद हैं। सबसे पहले आप अपना हौसला बढ़ाएं, उम्र को खुदपर हावी न होने दें तो आप मीनोपाॅज के बदलावों से जल्द उबर जाएंगी।

Divya Singh

दिव्या सिंह। समाजशास्त्र में एमफिल करने के बाद दैनिक भास्कर पत्रकारिता अकादमी, भोपाल से पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की। दैनिक भास्कर एवं जनसत्ता के साथ विभिन्न प्रकाशन संस्थानों में कार्य का अनुभव। देश के कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन। कहानी और कविताएं लिखने का शौक है। विगत डेढ़ साल से NPG न्यूज में कार्यरत।

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