गुरू सबसे श्रेष्ठ : …जब मंत्री व छत्तीसगढ़ के प्रभारी सचिव आशीर्वाद लेने पहुंचे अपने गुरू से…..जानिये कौन हैं आचार्य किशोर कुणाल, जिन्हे मानते हैं वो अपने गुरू

पटना 24 जुलाई 2021। गुरू का स्थान इस जहां में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। शिष्य भले ही कितनी भी ऊचाईयों को हासिल कर ले, गुरू के लिए वो हमेशा शिष्य ही बना रहता है। आज गुरू पूर्णिमा पर ऐसा ही नजारा पटना में भी देखने को मिला, जब बिहार के पीडब्ल्यूडी मंत्री व छत्तीसगढ़ के प्रभारी सचिव नितिन नवीन अपने गुरू आचार्य किशोर कुणाल से आशीर्वाद लेने पहुंचे। किशोर कुणाल को नितिन अपना गुरू मानते रहे हैं। कई मौकों पर नितिन खुद किशोर कुणाल से आशीर्वाद और मार्गदर्शन लेने पहुंचते रहे हैं।
कौन हैं आचार्य किशोर कुणाल
किशोर कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूलिंग मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव से की. 20 साल बाद, उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास और संस्कृत में ग्रेजुएशन किया. वे 1972 में गुजरात कैडर से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी बने और आनंद के पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात हुए. वहां से वे 1978 में अहमदाबाद के पुलिस उपायुक्त बने. वह संस्कृत अध्येता भी हैं।1983 में उन्हें प्रोमोशन मिला और वे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर पटना में तैनात हुए. कुणाल ने 1990 से 1994 तक गृह मंत्रालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के पद पर काम किया. एक आईपीएस अधिकारी के रूप में कुणाल पहले से ही धार्मिक कार्यों में शामिल थे. साल 2000 में पुलिस से रिटायर होने के बाद उन्होंने केएसडी संस्कृत यूनिवर्सिटी दरभंगा के कुलपति का पद संभाला. 2004 तक वे इस पद पर रहे. बाद में वे बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड (BSBRT) के प्रशासक बने और प्रचलित जातिवादी धार्मिक प्रथाओं में सुधार की शुरुआत की.
1972 बैच के गुजरात कैडर के अधिकारी कुणाल बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष हैं। वह पटना के महावीर मंदिर के संस्थापक हैं। इस समय वह पटना के मबावीर मंदिर न्यास के सचिव भी हैं। वह पटना के ज्ञान निकेतन नामक प्रसिद्ध विद्यालय के संस्थापक भी हैं। किशोर कुणाल ने संस्कृत भाषा में पढ़ाई पूरी की। संस्कृत और इतिहास से भारतीय पुलिस सेवा में चयन होने के बाद उन्होंने अपनी पहली पहचान एक कड़क पुलिस अधिकारी के रूप में बनाई। पटना के एसपी के तौर पर वह पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर से जुड़े। एक नवंबर 1987 से महावीर मंदिर का ट्रस्ट बनाकर समाजसेवा की शुरुआत की। जब महावीर मंदिर से जुड़े तो उस वक्त मंदिर की आय सालाना 11 हजार रुपये की थी।