गरीबों की जान से खिलवाड़: मात्र 20 हजार में मिल रही महिलाओं की बच्चे दानी: डॉक्टर ने कहा- 'आई विल गिव यू 4000 पर पेसेंट'..पढ़ें इस पूरे घोटाले का राज
देश के इस राज्य में एक बड़ा स्कैम चल रहा है, यहां महिलाओं की बच्चेदानी मात्रा 20 हजार रुपए कमाने के लालच में निकाल ली जा रही है..

(NPG FILE PHOTO)
पटना। बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्वास्थ्य के नाम पर एक बड़ा स्कैम चल रहा है। यहां के निजी अस्पताल सरकार के आयुष्मान भारत योजना का लाभ उठाकर गरीब और अनपढ़ महिलाओं की बच्चेदानी (Uterus) सिर्फ 20 हजार रुपए कमाने के लालच में निकाल रहे हैं। ये अस्पताल, डॉक्टरों और एजेंटों का एक संगठित रैकेट चला रहे हैं, जो सीधे तौर पर मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
एक बड़े मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यहां यूट्रस निकालने के लिए आयुष्मान योजना से मिलने वाले 20 हजार रुपए में से 4 हजार रुपए एजेंटों को कमीशन के तौर पर दिया जाता है, और बाकी 16 हजार रुपए अस्पताल रख लेता है। इसमें से सर्जरी का खर्च पांच से छह हजार रुपए आता है, यानी हर ऑपरेशन पर अस्पताल को 10 हजार रुपए से ज्यादा का मुनाफा हो रहा है।
भागमनी और रीना की दर्दनाक कहानी
बिहार के पश्चिमी चंपारण की रहने वाली 28 साल की भागमनी की कहानी इस स्कैम का सबसे बड़ा उदाहरण है। पेट में दर्द की शिकायत पर वह एक प्राइवेट अस्पताल गईं, जहां डॉक्टरों ने उन्हें अपेंडिक्स बताया। बाद में एक हेल्थ वर्कर के कहने पर वह यूपी के कुशीनगर के एक अस्पताल में भर्ती हुईं। वहां उन्हें बच्चेदानी में इन्फेक्शन बताकर डराया गया और आयुष्मान कार्ड का इस्तेमाल कर उनकी बच्चेदानी निकाल दी गई।
हद तो तब हो गई जब अस्पताल ने डिस्चार्ज रिपोर्ट में यूट्रस की बजाय अपेंडिक्स की सर्जरी का जिक्र किया। ठीक ऐसी ही कहानी रीना की भी है, जिन्हें पीरियड्स की समस्या थी। उन्हें भी डॉक्टरों ने मर जाओगी कहकर डराया और ऑपरेशन के लिए मजबूर कर दिया। रीना और भागमनी दोनों के अल्ट्रासाउंड में यह साफ हुआ कि, उनकी बच्चेदानी सर्जिकली हटाई जा चुकी है।
कैसे काम करता है यह पूरा रैकेट?
इस रैकेट में छोटे हेल्थ वर्कर्स, मेडिकल स्टोर वाले, झोलाछाप डॉक्टर और सरकारी अस्पतालों के स्टाफ तक शामिल हैं। ये सभी कमीशन के लालच में मरीजों को यूपी के निजी अस्पतालों में भेजते हैं, जहां उन्हें गंभीर बीमारी का डर दिखाकर ऑपरेशन के लिए राजी कर लिया जाता है।
ज्यादातर मामले ग्रामीण इलाकों से सामने आये है, जहां आशा वर्कर्स और हेल्थ वर्कर्स गांव में पेट की समस्याओं से जूझ रही महिलाओं पर नजर रखती हैं और उन्हें कमीशन के लिए प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती करवाती है। सरकारी अस्पताल का स्टाफ मरीजों को बेहतर इलाज का हवाला देकर निजी अस्पतालों में रेफर करता है। इनमें सबसे बड़ा टारगेट उन लोगों को रखा जाता है, जिनके पास आयुष्मान कार्ड होता है।
एक बड़े मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गोरखपुर और कुशीनगर के कई अस्पतालों में ये कारोबार बड़े धड़ल्ले से चाय जा रहा है। मात्र 3 से 4 हजार रुपए का कमीशन लेकर ये एजेंट अस्पतालों में गरीब महिलाओं को यहां लाते है। इन जिलों में स्थित कुछ अस्पतालों में जांच पड़ताल करने पर पाटा चला कि, डॉक्टर्स एक साथ 10 से 15 केस हेंडल करते है। इसके आलावा इन अस्पतालों में फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट और किसी गंभीर बिमारी का फर्जी रिपोर्ट भी तैयार किया जाता है।
पहले भी हो चुका है यूट्रस घोटाला
आपको बता दें कि, ये कोई नया मामला नहीं जब इस बड़े स्टार पर घोटाले को अंजाम दिया जा रहा हो। इससे पहले भी साल 2011 में नेशनल हेल्थ बीमा स्कीम के तहत भी ऐसा ही "यूट्रस घोटाला" सामने आया था। तब पूरे बिहार में करीब 27 हजार गरीब महिलाओं की बिना वजह बच्चेदानी निकाल दी गई थी। सरकार ने तब पीड़ित महिलाओं को 50 हजार रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया था।
अब जब यही स्कैम दोबारा सामने आया है, तो यह सवाल खड़ा होता है कि, क्या सरकार इस गोरखधंधे को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी, या फिर ऐसे ही आयुष्मान योजना का दुरुपयोग होता रहेगा और गरीब महिलाओं की जिंदगी बर्बाद होती रहेगी। फिलहाल, अब इस मामले में सरकार और स्वास्थ्य विभाग की त्वरित कार्रवाई की सख्त जरूरत है।
