-त्रयम्बक शर्मा
मुंबई की कई हिराइनें ही हिरोइन ले रही हैं. अफीम, चरस, गांजा और अन्य नाना प्रकार के नशे हाई क्लास सोसायटी के मानक बने हुये हैं. शराब पीने वालों को लोग मिडिल क्लाॅस समझने लगे हैं. सुशांत सिंह आत्महत्या का मामला नहीं होता और क्वीन फिल्म की कंगना रानावत मुखर नहीं होती, तो क्या मुंबई पुलिस कभी ड्रग माफिया को नहीं पकड़ पाती ? ऐसा नहीं है, हमारे देश की पुलिस को सब पता होता है और उसके संरक्षण में ही सब कार्य संपादित होते हैं. ऐसे मामले उन्हें सिर्फ मौका देते हैं कि वे अपनी प्रतिभा दिखा सकें और उसमें से भी सिर्फ छोटी मछली को पकड़कर अंदर कर अपनी पीठ थपथपा लें.
ऐसा ही मामला हुआ रायपुर में जब लाॅकडाउन के दौरान क्वींस क्लब में एक व्यक्ति ने हवाई फायर कर दिया. हवाई फायर के कारण मामला बनाना पड़ा और फिर दबाव के चलते तफ्तीश भी करनी पड़ी. अब रायपुर पुलिस इसमें कुछ ड्रग डीलरों को पकड़कर अपनी पीठ थपथपा लेगी. ऐसा हो ही नहीं सकता कि ड्रग रायपुर में या देश में कहीं भी बिना पुलिस की जानकारी के बिक रहा हो. लाॅकडाउन के दौरान रायपुर में शराब भी वीआईपी रोड की कई होटलों सहित शहर में अनेक स्थानों पर बिकती रही, वह भी दुगुनी और तिगुनी कीमत पर. क्वींस क्लब की पार्टी ने कई राज खोले. भला हो गोली चलाने वाले का वर्ना ये राज कुछ और साल छिपे रहते. मतलब जब तक कुछ बड़ा नहीं होगा तब तक पुलिस कुछ नहीं करेगी.
राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी में पैसा कमाने वालों की तादाद बढ़ी है और इसमें भू-माफिया जो बिल्डर बन गये और अचानक बहुत ज्यादा पैसा कमाने लगे. रायपुर में ऐसे कई अबोध सिंघानिया पैदा हो गये जो अखबारों में विज्ञापन देकर अपने आपको शहर का गणमान्य समझने लगे. उन्हें इस भ्रम में डालने का काम भी हमारी मीडिया के मार्केटिंग वालों ने किया है. आज आप किसी भी अखबार में कुछ लाखों का विज्ञापन देकर अपने आप को शहर का गणमान्य और सभ्रांत नागरिक कहला सकते हैं. आपको अखबार अपने छोटे मोटे इवेंट में अतिथि भी बनाने में संकोच नहीं करेगा, भले ही आप कितने ही भ्रष्ट हों, कर चोर हों, बोलचाल में भी कितने ही गंदे हों.
समाज में जब शराब बेचने वालों, ड्रग बेचने वालों, सेक्स रैकेट चलाने वालों को सम्मान मिलने लगे तो यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा. पैसे से कुछ भी किया जा सकता है, यह मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. स्वाभिमानी लोग अब घमंडी कहे जाने लगे हैं तो यह कतई शुभ नहीं है.
ऐसे अबोध सिंघानिया देश में हर जगह हैं जो ज्यादा रेट मिलते ही जमीन ही नहीं, संबंध और संस्कार भी बेच देते हैं. सिस्टम में इन्होंने पैसे और चाटुकारिता से अपनी ऐसी जगह बना ली है कि समाज ना तो इन्हें निगल पा रहा है और ना ही उगल पा रहा है. बड़े बड़े लोगों के बीच अचानक उठने बैठने से इन्हें लगने लगा है कि वे सचमुच बहुत बड़े आदमी हैं और कानून तो उनका नौकर है. ऐसे लोगों का इतिहास गवाह है कि इनके बच्चे ही इनके पैसे का दुरूपयोग करेंगे क्योंकि वे कमा ही उन्हीं के लिये रहे हैं. आज इन्हीं अबोध सिंघानियों के बच्चों के नाम ड्रग मामले में आ रहे हैं. यह इस बात का उदाहरण है कि सिर्फ पैसा कमाने से आप एक अच्छे इंसान, अच्छे माता पिता, अच्छे नागरिक नहीं हो सकते जब तक आपके पास संस्कार ना हो. आज सबके पास अनेक बड़ी बड़ी कार तो है पर संस्कार नदारद है.
समाज और मीडिया को भी यह सोचना होगा कि वह कुछ पैसों के लाभ के लिये कहीं ऐसे व्यक्तियों को तो महिमामंडित नहीं कर रहा जिनके पास संस्कार नाम की कोई चीज ही नहीं है. महंगे कपड़ों में लिपटे सस्ते और अभद्र लोग कब तक समाज में सम्मान पाते रहेंगे ?
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