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धमतरी जिले से रहा है पूर्व सीएम अजीत जोगी का गहरा नाता… जोगी के नाम से बसा है एक पूरा गांव जोगीडीह

धमतरी जिले से रहा है पूर्व सीएम अजीत जोगी का गहरा नाता… जोगी के नाम से बसा है एक पूरा गांव जोगीडीह
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By NPG News

धमतरी 30 मई 2020. गरीब और आदिवासियों के उत्थान के लिए हमेशा तत्पर रहें बहुप्रतिभा के धनी छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. अब केवल उनसे जुड़ी हुई यादें ही लोगों के जेहन में सिमट कर रह गई है. धमतरी से भी अजीत जोगी का गहरा नाता रहा है. यहां उनके नाम से पूरा एक गांव ही बस चुका है. जिसे आज जोगीडीह के नाम से जाना जाता है. डूबान प्रभावित सैकड़ों परिवार यहां आशियाना बना कर जीवन यापन कर रहे हैं. दरअसल करीब साढे चार दशक पहले गंगरेल बांध का निर्माण हुआ.

बांध बनने के बाद 55 गांव डूब में शामिल हो गए. घर और जमीन डूबने के बाद प्रभावित परिवारों को दूसरे जगहों पर जाकर बसना पड़ा. लेकिन सैकड़ों परिवार जमीन की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे. तब उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर कलेक्टर रहे अजीत जोगी ने डूबान प्रभावितों के दर्द को समझा. जोगी ने अपने कलेक्टरी में कागजी कार्रवाई पूरी कर धमतरी मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर खाली पड़ी जमीन में प्रभावितों को बसाने पहल की. जिसके बाद प्रभावित परिवारों का एक पूरा गांव यहां बस गया. अजीत जोगी द्वारा बसाए इस गांव को आज जोगीडीह के नाम से जाना जाता है.

170 प्रभावित परिवार को मिला पट्टा

डूबान प्रभावितों के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे गंगरेल बांध प्रभावित जन कल्याण समिति के संभागीय सचिव गणेश राम खापर्डे की मानें तो गंगरेल बांध के डूब प्रभावित परिवारों ने विस्थापन की मांग मध्य प्रदेश सरकार से की थी. कुछ प्रभावितों ने जबलपुर हाईकोर्ट में भी गुहार लगाया. फैसला डुबान प्रभावितों के पक्ष में आया. इस समय अजीत जोगी रायपुर के कलेक्टर थे. डूबान प्रभावितों ने जोगी के पास जाकर अपनी तकलीफें बताई. कलेक्टर जोगी ने उनके दर्द को समझकर विस्थापन के लिये कागजी प्रक्रिया पूरी की.

जोगी ने रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन को काबिल काश्त घोषित कर डूब प्रभावितों को वहां जगह दी. सन 1987-88 में ग्राम हरफर पटौद सहित 15 गांव के प्रभावित परिवार इस खाली जमीन में बसने लगे. कलेक्टर अजीत जोगी की वजह से ही डूब प्रभावितों को यहां आशियाना मिल पाया था. इसलिए सभी ने गांव का नाम जोगीडीह रखने का फैसला किया. आज इस गांव में सैकड़ों परिवार निवासरत हैं. जिनमें से 170 परिवारों को पट्टा भी मिल चुका है. भले ही आज जोगी इस दुनिया में नहीं है. लेकिन जोगीडीह से जुड़ी उनकी यादें पीढ़ियों तक जेहन में रहेंगे.

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