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वारिसान का इंतज़ार करती रही पांच लाशें..तीन लावारिस शव समेत बारह शवों को आखिरकार प्रशासन ने अंतिम संस्कार कराया..

वारिसान का इंतज़ार करती रही पांच लाशें..तीन लावारिस शव समेत बारह शवों को आखिरकार प्रशासन ने अंतिम संस्कार कराया..
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By NPG News

रायपुर,12 अप्रैल 2021। कोरोना क्या लोगों के भीतर से रिश्तों की नरमी, रक्त संबंध की गर्माहट भी छीन ले रहा है। मेकाहारा के मर्चुरी में मौजुद लाशें अगर बोल पातीं तो शर्तिया वे कुछ ऐसा ही बोलतीं।मेकाहारा में पहले दौर के कोरोना स्ट्रेन में मौत के बाद पाँच शव अपने वारिसान का इंतज़ार करते हुए आठ महिने से उपर का वक्त गुजर गया। ये पाँच शव का तो फिर भी नाम पता मौजुद था,चार शव की तो पहचान ही नहीं थी क्योंकि उनके रिकॉर्ड में केवल मेकाहारा परिसर ही दर्ज है। गिनती यहीं नहीं थमती है तीन उन नवजात के शव भी इंतज़ार करते रह गए जो सात महिने या उससे कुछ समय के थे।
रिकॉर्ड को खोजने, रजिस्टरों के पन्नों के पलटने से पता चलता है कि सबसे पुराना शव 16 सितंबर 2020 का है, और यह वह शव है जिसके लिए रिकॉर्ड में दर्ज है कि मेकाहारा परिसर में पाया गया।तीन अज्ञात शव क्रमशः सत्रह अक्टूबर से 28 अक्टूबर के बीच मर्चुरी में जगह बना गए।यह वह समय था जब कोरोना अपने पीक और उतार के बीच में था।
वे पाँच शव जिनके नाम पते रिकॉर्ड में हैं, उनमें महासमुंद गरियाबंद मुंगेली सरगुजा रायपुर दर्ज है। ज़ाहिर है इन पाँच को भर्ती कराया गया और नाम पते भी नोट कराए गए लेकिन जब मौत हो गई तो कोई शव लेने तक नहीं लौटा। ये पाँचों की मौत कोरोना से हुई थी।
इनके अतिरिक्त तीन नवजात के शव भी मर्चुरी में जगह बना गए जो प्री मैच्योर थे और कतिपय कारणों से जिनकी मौत हो गई।
अभिलेखों को देखें तो यह साफ़ समझ आता है कि, प्रबंधन ने कई पत्र ज़िला प्रशासन को कोई मौक़ों पर सौंपे लेकिन शवों का हाल मुक़ाम याने मेकाहारा की मर्चुरी नहीं बदला।
ज़िला प्रशासन ने आख़िरकार मेडिकल प्रबंधन से शर्त रख दी कि वे पुलिस से “एनओसी” लें ताकि कोई विवाद ना हो। काग़ज़ फिर इस एनओसी के लिए चले और बग़ैर जवाब रह गए।
लेकिन आख़िरकार आठ महिनों बाद शवों को संस्कार नसीब हो रहा है। आज चार शवों को संस्कार के लिए ले ज़ाया गया है। इसके पहले कल और परसों भी ले ज़ाया गया।
मर्चुरी के प्रबंधन से जुड़े हमारे सूत्र आशंका जतलाते हैं कि, कोरोना काल में ऐसे शव फिर मर्चुरी में जगह बना सकते हैं। इसकी जो वजह समझ आती है वह यह है कि, गरीब पृष्ठभूमि और कोरोना के भय के साथ कोरोना से हुई मौतों के संस्कार के कड़े नियम ऐसी स्थिति बना देते हैं कि शव छोड़ कर चले जाना ही बेहतर मान लोग गाँव लौट जाते हैं।
यह हालात झकझोरने वाले हैं.. स्तब्ध करते हैं..और यह आशंका और निराश करती है कि.. ऐसे शव आने वाले समय में भी अपनी जगह मर्चुरी में फिर बनाएंगे।

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