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अंग्रेजी माध्यम के नए स्कूल शुरू करने वाली सरकार के ध्यान में आखिरकार डीएवी मॉडल स्कूल क्यों नहीं….. आखिर कब मिलेगी अंग्रेजी माध्यम के सरकारी स्कूलों को डीएवी प्रबंधन से आजादी !

अंग्रेजी माध्यम के नए स्कूल शुरू करने वाली सरकार के ध्यान में आखिरकार डीएवी मॉडल स्कूल क्यों नहीं….. आखिर कब मिलेगी अंग्रेजी माध्यम के सरकारी स्कूलों को डीएवी प्रबंधन से आजादी !
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By NPG News

रायपुर 26 फरवरी 2020। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर संचालित करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने हर जिले में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल संचालित करने का निर्णय लिया है और इसकी जिम्मेदारी स्कूल शिक्षा सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने ली है जिनके लिखे गए पत्र के अनुसार जिलों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के चयन के बाद अब शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है और आने वाले सत्र में यहां स्कूल संचालित भी हो जाएंगे लेकिन बड़ा सवाल यह है इन स्कूलों में बड़ी कक्षाओं खासतौर पर नौवीं से बारहवीं तक के लिए बच्चे आएंगे कहां से क्योंकि नई भर्ती होने वाले छोटे बच्चे तो स्कूलों को आसानी से मिल जाएंगे पर 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं के लिए अंग्रेजी माध्यम के बच्चे स्कूलों को मिलेंगे कि नहीं यह देखना होगा ।

पिछली सरकार ने शुरू किया था मॉडल स्कूल और फिर सौंप दिया गया निजी हाथों में….. प्रबंधन को हो रहा है फायदा

ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने की कवायद पहली बार की जा रही है इससे पहले भी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रदेश में 75 मॉडल स्कूल खोले थे जिसमें कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई हो रही है लेकिन 2016 में सरकार ने इन अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को डीएवी प्रबंधन के हाथों सौंप दिया था । सर्वसुविधा युक्त स्कूल बिल्डिंग समेत सारे संसाधन सरकारी है जिसका प्रयोग डीएवी प्रबंधन स्कूल चलाने के लिए करता है और स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने के लिए सरकार द्वारा उन्हें राशि किस हिसाब से दी जाती है उसका अनुमान आप इस हिसाब से लगा सकते हैं कि जब प्रदेश में 16000 रुपये में व्याख्याता पंचायत काम कर रहे हैं उस स्थिति में 26000 रुपये मॉडल स्कूल में संविदा बेस पर पढ़ाने वाले शिक्षक के लिए सरकार खर्च करती है हालांकि यह बात अलग है कि उस शिक्षक को 15-16 हजार राशि ही मिलती है और शेष राशि डीएवी प्रबंधन रखता है जो कि उसके प्लेसमेंट एजेंसी के तौर पर कार्य करने की फीस है ।

यानी कुल मिलाकर सरकार अधिक पैसा खर्च करके अपने शिक्षकों पर विश्वास न करके डीएवी प्रबंधन के ऊपर विश्वास जता रही है जो कि अभी तक उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे हैं और ऐसा कोई परिणाम सामने नहीं आया है जिससे यह कहा जा सके कि डीएवी प्रबंधन ने स्कूल शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया है सच्चाई तो यह है कि सरकार डीएवी प्रबंधन को मॉडल स्कूलों को सौंप कर भूल गई है ऐसे में नई सरकार और स्कूल शिक्षा सचिव डॉक्टर आलोक शुक्ला से उम्मीद है कि वह इस ओर ध्यान देंगे और जब नए स्कूलों को पढ़ाने के लिए आसानी से शिक्षक मिल जा रहे हैं तो फिर इन विद्यालयों में भी पढ़ाने के लिए आसानी से अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक मिल जाएंगे जिनकी नियुक्ति सरकार पहले ही पंचायत या शिक्षा विभाग के शिक्षकों के तौर पर कर चुकी है और खासतौर पर जब 15000 पदों पर भर्ती होने जा रही है तब तो और भी कोई समस्या नहीं आनी है , जरूरत है इस ओर ध्यान देने की ।

कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए सरकारी स्कूलों को डीएवी प्रबंधन को देने का विरोध किया था अब देखना होगा कि सत्ता में आने के बाद क्या एक बार फिर वही व्यवस्था चलेगी या फिर सरकार डीएवी प्रबंधन से मॉडल स्कूलों को वापस लेते हुए फिर से शिक्षा विभाग के जिम्मेदार कंधों पर सौंपते हुए चलाने की कोशिश करेगी ।

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