Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादशी कल, इस व्रत को करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर प्राप्त करता है विष्णुलोक को
इस बार यह पुण्यदायी एकादशी 04 मई को है। इस दिन साधक जीवन में सुख और शांति के लिए भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं।
शास्त्रों में वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वैशाख माह और एकादशी तिथि दोनों ही भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए भी इस एकादशी का और भी महत्व बढ़ जाता है।
पदम पुराण के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और अनेक वर्षों तक तप करने पर मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
इस बार यह पुण्यदायी एकादशी 04 मई को है। इस दिन साधक जीवन में सुख और शांति के लिए भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं। मान्यता है कि एकादशी के दिन ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व
पदम पुराण के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और अनेक वर्षों तक तप करने पर मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। मनुष्य वरूथनी एकादशी का व्रत करके साधक विद्यादान का फल भी प्राप्त कर लेता है। यह एकादशी सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है एवं दरिद्रता का नाश करने वाली और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली भी मानी गई है।
पूजाविधि
इस दिन शंख, चक्र, कमल, गदा एवं पीताम्बरधारी भगवान विष्णु की रोली, मोली, पीले चन्दन,अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए और साथ ही यथाशक्ति श्री विष्णु के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करते रहना चाहिए। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच,द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, प्राचीन समय में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम के तपस्वी राजा राज्य करते थे। एक बार राजा जब तपस्या कर रहे थे तभी वहां एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा, लेकिन राजा तपस्या में लीन थे। भालू राजा को घसीट कर जंगल में ले गया। भालू को देख राजा बहुत डर गए। इस दौरान उन्होंने भगवान विष्णु से जीवन की रक्षा के लिए प्रार्थना की। उसकी पुकार सुन प्रभु वहां प्रकट हुए और भालू को मारकर राजा के प्राण बचाए। तब तक भालू ने राजा का पैर खा लिया था। इसकी वजह वह बेहद दुखी था। राजा को इस परिस्थिति में देख भगवान विष्णु ने उसको एक उपाय बताया। प्रभु ने राजा को वरूथिनी एकादशी करने के लिए कहा। राजा ने प्रभु की बात को मानकर वरूथिनी एकादशी व्रत किया और उसने वराह अवतार मूर्ति की पूजा की। इसके बाद इस व्रत के प्रभाव से राजा फिर से सुंदर शरीर वाला हो गया। मृत्यु के पश्चात राजा को भगवान् विष्णु के धाम,वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हुई।