Jyotirlinga Darshan 2 (Somnath Jyotirlinga): चंद्र देव से जुडी है इस ज्योतिर्लिंग की कहानी, हर नई सृष्टि के साथ नया नाम और पहले ज्योतिर्लिंग के नाम से है प्रसिद्ध, अद्भुत है महिमा
Jyotirlinga Darshan 2 : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा चंद्र देव और राजा दक्ष के श्राप से जुड़ा हुआ है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों और सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से सोमनाथ मंदिर एक है।

Jyotirlinga Darshan 2 : सोमनाथ... नाम से ही स्पष्ट हो रहा है की भगवान शिव के इस रूप की कहानियां चंद्रदेव या सोम से जुडी हुई है. सोम का अर्थ चंद्र होता है. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा चंद्र देव और राजा दक्ष के श्राप से जुड़ा हुआ है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों और सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से सोमनाथ मंदिर एक है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटन में समुद्र तट के किनारे स्थित है. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग है. NPG NEWS आपको 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शनों की कड़ी में आज सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राचीनता और विशेषता, महत्ता और यहाँ कैसे पहुंचे उसके बारे में बताने जा रहा है. तो चलिए फिर जानते हैं इस अद्भुत ज्योतिर्लिंग के बारे में।
शिवपुराण के अनुसार, एक बार राजा दक्ष ने चंद्र देव को ये श्राप दे दिया था कि उनकी रोशनी बीतते दिन के साथ कम होती जाएगी, जिससे मक्ति पाने के लिए चंद्र देव ने सरस्वती नदी के पास सोमनाथ मंदिर की स्थापना की थी और इसी स्थान पर भोलेनाथ की कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या से खुश होकर शिव जी ने उनके इस श्राप को सदैव के लिए खत्म कर दिया था। इसके बाद चंद्र देव ने शंकर भगवान से यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान रहने की प्रार्थना की, जिसे भोले बाबा ने पूर्ण कर दिया था। बता दें, चंद्र देव को सोम के नाम से भी जाना जाता है और उन्होंने इस ज्योतिर्लिंग की तपस्या की थी, जिसके चलते इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा। इसके साथ ही इसे प्रभास तीर्थ भी कहा जाता है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को सभी ज्योतिर्लिंग में प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है और यह शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण जगह है. इस मंदिर को कई बार ध्वस्त किया गया और फिर से निर्मित हुआ, लेकिन इसकी महिमा और आस्था आज भी बरकरार है.
सोमनाथ मंदिर का इतिहास भी बहुत समृद्ध और विविधता से संपन्न है. इस मंदिर को लूटने और गिराने के लिए कई बार आक्रमणकारियों ने आक्रमण कर नष्ट किया, लेकिन हर बार इसे भक्तों ने पुनः निर्माण किया. इस मंदिर का वास्तुशिल्प और धार्मिक महत्व पूरे भारत में ही नहीं दुनियाभर में प्रसिद्ध है.
यहाँ यात्रा का सर्वोत्तम समय अक्टूबर से फरवरी है एवं लोकप्रिय त्यौहार महाशिव रात्रि, श्रावण प्रारम्भ, सोमनाथ स्थापना दिन, जन्माष्टमी, विजयादशमी, होली है.
अरब सागर के तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग के पास त्रिवेणी संगम (तीन नदियों – कपिला, हिरण और सरस्वती का संगम) है. मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि अगर कुष्ठ रोगी सोमनाथ महादेव के दर्शन करते हैं और मृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं तो उनको कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है.
हर नई सृष्टि के साथ नया नाम
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में स्कंद पुराण के प्रभास खंड में उल्लेखित है कि इस ज्योतिर्लिंग का नाम हर नई सृष्टि के साथ बदल जाता है.इस क्रम में जब वर्तमान सृष्टि का अंत हो जाएगा और ब्रह्मा जी नई सृष्टि निर्मित करेंगे तब सोमनाथ का नाम ‘प्राणनाथ’ होगा. स्कंदपुराण के प्रभास खंड के अनुसार माता पार्वती के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महादेव कहते हैं कि अब तक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके हैं.
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ था, लेकिन वह सबसे अधिक रोहिणी से प्रेम करते थे। जिससे अन्य पत्नियां दुखी थीं, उन्होंने इस बात की शिकायत अपने पिता से की। तब दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को यह श्राप दिया था, कि वह धीरे-धीरे अपनी चमक खो देंगे और उनका क्षय होने लगेगा। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए, चंद्रमा ने प्रभास क्षेत्र में भगवान शिव की तपस्या की और एक शिवलिंग की स्थापना की।
श्राप से महादेव ने दी राहत
चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और चंद्रमा को श्राप से राहत देते हुए यह वरदान दिया कि वह 15 दिन बढ़ेंगे और 15 दिन घटेंगे। तब चंद्रदेव ने भगवान शिव से ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां निवास करने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उनकी इस बात को स्वीकार किया, जिसके बाद इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।
मंदिर की खासियत
धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ सोमनाथ मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में हमेशा एक अखंड ज्योति जलती रहती है। इसके मंदिर से जुड़ी एक और बात इसे खास बनाती है, कि इस मंदिर पर कई बार आक्रमण किया जा चुका है और कई बार इसका पुनर्निर्माण हुआ। मान्यताओं के अनुसार, इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही यह भी माना जाता है कि यहां दर्शन करने से जातक को चंद्र दोष से भी मुक्ति मिल सकती है।
समुद्र के किनारे दक्षिण में एक बाण स्तंभ
यहां मंदिर परिसर में समुद्र के किनारे दक्षिण में एक बाण स्तंभ है, जो छठी शताब्दी से मौजूद है.यह बाण स्तंभ एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिसके ऊपरी सिरे पर एक तीर बना हुआ है, जिसका मुख समुद्र की तरफ है. इस बाण स्तंभ पर ‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योतिमार्ग’ लिखा हुआ है, जिसका मतलब है कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में किसी भी तरह की बाधा नहीं है यानी जब विज्ञान इतना प्रभावी नहीं था तब भी हमारे पुरातन शास्त्रों में यह वर्णित है.
यहीं पर श्रीकृष्ण ने त्यागे प्राण
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है और इसकी ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्ता अनादिकाल से बनी हुई है. इस क्षेत्र को प्रभास क्षेत्र भी कहा जाता था. कहते हैं कि यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण के पैर के तलवे में लगने के बाद प्राण त्याग दिए थे. इस प्रभास क्षेत्र और यहां स्थित भगवान सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत, शिवपुराण, श्रीमद्भागवत तथा स्कंदपुराण में मिलता है. इसके साथ ही ऋग्वेद में भी सोमेश्वर यानी सोमनाथ का जिक्र मिलता है.
यहाँ भी करें दर्शन
एक और सोमनाथ मंदिर : वर्तमान में जो सोमनाथ का मंदिर है, उससे सटे ही महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित एक और सोमनाथ मंदिर है, जिसे पुराना सोमनाथ मंदिर कहते हैं और इसके बारे में मान्यता है कि इसमें जो शिवलिंग है, वह स्वयंभू है. यहीं पास में भालका तीर्थ है, पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां भगवान कृष्ण ने अपना अंतिम समय बिताया था.यह स्थान कृष्ण भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है और सोमनाथ के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है. कहा जाता है कि यहीं पर एक शिकारी ने गलती से भगवान कृष्ण के पैर में तीर मार दिया था, जिससे उनका देहांत हुआ. इस घटना के कारण इस स्थान को ‘देहोत्सर्ग’ के नाम से भी जाना जाता है.
बलदेव गुफा : इसके अलावा यहां पास में गोलोक धाम तीर्थ भी है. इसके बारे में मान्यता है कि यहां श्रीकृष्ण जी का निज धाम या निवास था और यहां एक बलदेव गुफा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि कृष्ण के बड़े भाई बलदेव ने यहीं से अपने मूल नाग रूप में अपनी अंतिम यात्रा की थी. यहीं पास में त्रिवेणी संगम है, जहां कपिला, हिरण और सरस्वती का संगम है. इसको लेकर मान्यता है कि यहां स्नान करने मात्र से लोगों को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
सूर्य मंदिर : त्रिवेणी घाट के करीब सूर्य मंदिर स्थित है. यहां सूर्य देव के साथ माता छाया का भी विग्रह स्थित है. यह गुजरात के पुराने सूर्य मंदिरों में से एक है. यहीं पास में परशुराम मंदिर सोमनाथ के सबसे पुराने और पवित्र मंदिरों में से एक है. यह मंदिर भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित है. यह त्रिवेणी तीर्थ नदी के तट पर उसी स्थान पर स्थित है, जहां भगवान सोमनाथ ने भगवान परशुराम को आशीर्वाद दिया था और उन्हें क्षत्रिय हत्या के श्राप से मुक्ति दिलाई थी.
ज्वार के दौरान होते हैं शिवलिंग के दर्शन
यहां गीता मंदिर भी स्थित है, जो सोमनाथ का एक अनूठा मंदिर है, जो पूरी तरह से भगवद्गीता के सिद्धांतों और शिक्षाओं को समर्पित है.यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि एक शैक्षिक केंद्र भी है, जहां लोग गीता के ज्ञान को समझने और अपने जीवन में उतारने के लिए आते हैं. यहीं पास में बाणगंगा भी है, यह सोमनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर समुद्र में स्थित है.जहां कई शिवलिंग मौजूद हैं. ज्वार के दौरान ही इन शिवलिंग के दर्शन हो सकते हैं. यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां कुल 5 शिवलिंग हैं, जिनमें से श्रद्धालुओं को दो या तीन शिवलिंग के ही दर्शन हो पाते हैं.
ऐसे पहुचें सोमनाथ
ट्रेन से
वेरावल रेलवे स्टेशन :
यह सोमनाथ मंदिर के सबसे करीब (लगभग 7 किमी) का बड़ा रेलवे स्टेशन है, जहाँ भारत के कई प्रमुख शहरों से ट्रेनें आती हैं। स्टेशन से मंदिर तक ऑटो या टैक्सी आसानी से मिल जाती है।
सोमनाथ रेलवे स्टेशन :
यह एक टर्मिनल स्टेशन है जहाँ कुछ लोकल ट्रेनें आती हैं, और यह मंदिर से बहुत करीब है।
बस से
गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम (GSRTC).यह अहमदाबाद, राजकोट और द्वारका जैसे गुजरात के प्रमुख शहरों से सोमनाथ तक नियमित बस सेवा प्रदान करता है।
निजी बसें :
गुजरात के विभिन्न शहरों से सोमनाथ के लिए निजी बस ऑपरेटर भी सेवाएँ देते हैं।
विभिन्न शहरों से सोमनाथ की दूरी
अहमदाबाद से सोमनाथ की दूरी – 408.5 किमी
पहुंचने में लगने वाला समय – 7-8 घंटे
मार्ग – एनएच 47
राजकोट से सोमनाथ की दूरी- 194.9 किमी
पहुंचने में लगा समय- 3-4 घंटे
मार्ग- एनएच 27 और एनएच 151
द्वारका से सोमनाथ की दूरी – 237.2 किमी
पहुंचने में लगने वाला समय- 4-5 घंटे
मार्ग- NH27 और NH 51
पोरबंदर से सोमनाथ की दूरी - 130.7 किमी
पहुंचने में लगा समय - 2-3 घंटे
मार्ग- NH-51 और NH-151
सोमनाथ से हवाई अड्डे
दीव हवाई अड्डा : सोमनाथ का निकटतम कार्यात्मक हवाई अड्डा दीव है.
दीव हवाई अड्डा – 85 किमी
पहुंचने में लगने वाला समय – 1-2 घंटे
राजकोट हवाई अड्डा – 200 किमी
पहुंचने में लगा समय – 4-5 घंटे
अहमदाबाद हवाई अड्डा- 390 किमी
पहुंचने में लगा समय – 6-7 घंटे
