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Siddheshwar Mahadev Mandir, Palari, chhattisgarh: गोबर के कंडों की आंच में पकाकर बनाया गया छत्तीसगढ़ का अनोखा शिव मंदिर

Siddheshwar Mahadev Mandir, Palari, chhattisgarh: गोबर के कंडों की आंच में पकाकर बनाया गया छत्तीसगढ़ का अनोखा शिव मंदिर
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By yogeshwari varma

आपने किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जिसे गोबर के कंडों यानी उपलों से पका कर बनाया गया हो, बिल्कुल वैसे जैसे कुम्हार मिट्टी के बर्तन को पकाता है? छत्तीसगढ़ में ऐसा मंदिर है। बलौदा बाजार से 15 किमी की दूरी पर ग्राम पलारी मे एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है जिसे सिध्देश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। 8वी- 9वीं शताब्दी के दौरान बना यह मंदिर कई मायनों में अनोखा है। यहाँ शिव विवाह के दृश्य का पत्थर पर ऐसा अनोखा अंकन है जो किसी भी दूसरे मंदिर में नहीं हैं। बारातियों में शामिल होने के लिए यहां देवताओं को पुष्पक विमान से आते दिखाया गया है। ये कुबेर जी के उसी पुष्पक विमान का चित्रण है जिसे रावण ने उनसे छीन लिया था और रावण वध के बाद प्रभु श्री राम जिसपर सवार हो अयोध्या लौटे थे। ऐसे अद्भुत विमान का अंकन यहां पत्थर पर किया हुआ देखा जा सकता है। पुरातत्वविदों के अनुसार इस विमान का उत्कीर्णन भी भारत के किसी अन्य मंदिर में होने के बारे में नहीं सुना गया है।

यहां है सिद्धेश्वर महादेव मंदिर

राजधानी रायपुर से 70 किमी की दूरी पर और बलौदा बाजार से 15 किमी की दूरी पर ग्राम पलारी में स्थित है सिद्धेश्वर महादेव मंदिर। इस मंदिर की स्थापना बाल समुंद तालाब के निकट की गई है। मंदिर के निर्माण का समय 8-9वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है।

छेनों (गोबर के कंडों) से पकाकर बनाया गया मंदिर

आपने ऐसे मंदिरों के बारे में तो पढ़ा होगा जिन्हें ईंटों या पत्थरों को देसी विधि से जोड़कर बनाया गया होगा लेकिन पलारी के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण अलग ही तरीके से घुमंतू लोगों ने किया है।

ऐसा बताया जाता है कि घुमंतू लोगों का एक दल भटकता हुआ यहां पहुंचा। उन्होंने ही यहां एक तालाब और मंदिर बनाया। मंदिर बनाने के लिए उन्होंने एकदम देसी तरीका अपनाया। उन्होंने गुंबद के आकार में छेनो (गोबर के कंडो) को व्यवस्थित कर उसके ऊपर चिकनी मिट्टी पोती। मिट्टी की मोटी तहों को चढाकर उसके ऊपर विभिन्न प्रकार की आकृतिया बनाईं। आखिर में अंदर की ओर रखे गए छेनो में आग लगा दी। जिस तरह कुम्हार बर्तन बनाता है ठीक उसी तरह इस पूरे मंदिर के ढांचे को पकाया गया।फिर छेनों की राख को पत्थर के द्वार से बाहर निकाला गया। इस प्रकार की मंदिर निर्माण की प्रक्रिया और कहीं भी नहीं सुनी गई है। यह छत्तीसगढ का अनोखा मंदिर है।

मंदिर निर्माण में अनोखी कलाकारी का भी नमूना देखा जा सकता है। पत्थर से बने गर्भगृह के दोनो ओर नदियों 'गंगा-जमुना देवी' की कलात्मक मुर्तियो का अंकन है।उनके इर्द-गिर्द परिचारिकाओं को भी उकेरा गया है।

गर्भगृह की बाहरी भित्तियों पर गणेश, सिंह, हाथी, नरसिंह आदि को मिट्टी को तराशकर ही बनाया गया है। जो अब भग्न हाल में हैं। मंदिर का शिखर ध्वस्त हो गया था जिसका जीर्णोद्धार बाद में किया गया है। गर्भगृह में शिवलिंग भी बाद पुनः स्थापित किए गए।

शिव विवाह का अद्भुत अंकन है मंदिर में

सिद्धेश्वर मंदिर की एक और खासियत ऐसी है जिसने पुरातत्वविदों को भी हैरान पर दिया था। दरअसल जिस पुष्पक विमान का उल्लेख केवल पौराणिक ग्रंथों में मिलता है,उसे यहां पत्थरों पर उकेरा गया है। बारातियों में शामिल देवतागण पुष्पक विमान पर सवार हैं।ऐसा उत्कीर्णन अन्यत्र किसी भी मंदिर में नहीं देखा गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पुष्पक विमान विमान कुबेर का था जिसे रावण ने छीन लिया था। लंका विजय के बाद भगवान श्री राम इसी से अयोध्या लौटे थे। यहां शिव विवाह से संबंधित कथा को व्यक्त करते हुए पुष्पक विमार उकेरा गया है।अनेक देवाताओं को हाथियों, घोड़ों और बैल पर सवार होकर शिव विवाह में शामिल होने आते दिखाया गया है। मंदिर की चौखट पर शिव विवाह के दृश्य हैं। चौखट के शीर्ष पर मृदंग आदि बजाते, नृत्य करते लोगों को दर्शाया गया है।बारातियों में शामिल दिग्पालों का भी अंकन किया गया है।पुरातत्वविदों के अनुसार शिव विवाह का यह अंकन अद्भुत है। हालांकि अब ये सभी आकृतियाँ भग्नावस्था में हैं।

तालाब निर्माण से जुड़ी कथा भी है रोचक

इन घुमंतू लोगों को यहां टिकने के लिए पानी की ज़रूरत थी। पर आसपास कहीं पानी नहीं मिल रहा था। इसलिए इनके समूह ने मिलकर एक बहुत बड़ा सा तालाब खोदा। गहरा तालाब खोदने के बावजूद भी वह उसमें पानी नहीं आ रहा था। वह सूखा का सूखा ही रहा। तब वृद्ध जनों की सलाह पर दल के नायक ने अपने नवजात शिशु को परात में रखकर तालाब में छोड़ दिया। ईश्वर के आशीर्वाद से तत्काल तालाब में पर्याप्त पानी आ गया और बालक भी परात में सुरक्षित रहा। कहते है इसी कारण इस तालाब का नाम बालसमुंद पड़ा। और तब से लेकर आज तक इस तालाब में हमेशा पानी रहता है।

इतिहास और पौराणिक स्थलों की यात्रा करने के इच्छुक लोगों के लिए सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन यादगार हो सकते हैं।

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