Shivling: जानिए शिवलिंग का वास्तविक अर्थ, इसका पुरुष या महिला अंग से कई लेना-देना नहीं, अपने भ्रम को कर लें दूर..
अधिकतर लोगों में ये भ्रांति है कि शिवलिंग में भगवान भोलेनाथ का अंग है, जो माता पार्वती की योनि में स्थित है। जबकि संस्कृति में लिंग का अर्थ स्वरूप या प्रतीक होता है। शिवलिंग यानि शिव का प्रतीक.. आइए हम आपको बताते हैं इसका वास्तविक अर्थ...
रायपुर, एनपीजी न्यूज। अधिकतर लोगों में ये भ्रांति है कि शिवलिंग में भगवान भोलेनाथ का अंग है, जो माता पार्वती की योनि में स्थित है। जबकि संस्कृति में लिंग का अर्थ स्वरूप या प्रतीक होता है। शिवलिंग यानि शिव का प्रतीक.. आइए हम आपको बताते हैं इसका वास्तविक अर्थ...
शिवलिंग का अर्थ लिंग नहीं होता.. ये पूरी गलतफहमी हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने और बाद में गलत व्याख्याओं के चलते हुआ। शिवलिंग में लिंग शब्द का अर्थ चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है। जिसे लोग मां पार्वती की योनि समझते हैं, वो दरअसल धरती उसका पीठ या आधार है।
शिवलिंग का मतलब अनंत यानि जिसका न आदि और न अंत
शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परम पुरुष का प्रतीक होने से शिव में लिंग शब्द जोड़कर शिवलिंग हुआ। शिवलिंग का मतलब अनंत भी है यानि जिसका न आदि है न अंत। मतलब जिसका न अंत है और न शुरुआत। शिवलिंग शिव का प्रतीक है, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका न तो आदि है और न अंत। वे सृष्टि से पहले भी थे और सृष्टि के नष्ट होने के बाद भी रहेंगे।
ब्रह्मांड का आकार शिवलिंग की तरह
वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्राह्मांड की आकृति है। सृष्टि की शुरुआत में हमारे ब्रह्मांड की आकृति शिवलिंग की ही तरह थी।
आधार या पीठ को समझ लिया गया योनि
शिवलिंग को सहारा देने वाले आधार/पीठ को योनि समझ लिया गया है। शिवलिंग को नर-मादा मिलन से सृष्टि के निर्माण का प्रतीक कहना बेतुका है, क्योंकि ये चट्टानें, पहाड़, समुद्र पेड़-पौधे जैसी चीजें नर-मादा मिलन से नहीं बने हैं। इसलिए मानव अंग होने के कारण यह सार्वभौमिक सृष्टि का प्रतीक नहीं हो सकता। वहीं ऐसे जीव भी हैं, जो बिना संभोग (नर-मादा मिलन) के प्रजनन करते हैं।
शिव लिंगाष्टकम शंकराचार्य द्वारा शिवलिंग के लिए लिखी गई एक प्रार्थना है।
संस्कृत -''पराथं परम परमात्म लिंगम्, तत्-पर्णमामि सदा शिवलिंगम्''- इसमें कहा गया है कि शिवलिंग शिव के परमात्म स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।
वहीं लिंग पुराण में कहा गया है-
प्रधानं प्रकृतिर यदाहुर्लिगंउत्त्तम।
गंध-वर्ण-रशिन्नं शब्द-स्पर्शादिवर्जितं।
इसका अर्थ है कि लिंग रंग, स्वाद, श्रवण या स्पर्श से रहित है। इसलिए लिंग कोई मानव अंग नहीं हो सकता। शिव के परमात्मा रूप का मात्र एक प्रतिनिधित्व, जो श्लोक में वर्णित सभी चीजों से रहित है।
कई लोग करते हैं शिवलिंग की पूजा की निंदा
कई लोगों को आपने शिवलिंग की पूजा की निंदा करते हुए सुना होगा। वे कहते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनि की पूजा करते हैं। दरअसल ये भाषा की अज्ञानता का दोष है। वे भूल गए हैं कि आदिकाल से चले आ रहे सनातन धर्म की जड़ें संस्कृत भाषा से जुड़ी हैं।
शिवलिंग की लगातार अभिषेक के साथ पूजा करनी होती है, इसलिए इसके चारों ओर एक खाई बनाई जाती है और पानी को निकालने के लिए जल निकासी की व्यवस्था की जाती है। शिवलिंग न तो लिंग है और न ही योनि। संस्कृत में लिंग को शिश्न कहा जाता है।
अंग्रेजों ने की गलत व्याख्या
दरअसल अंग्रेजों ने जब शिवलिंग को देखा तो उन्हें लगा कि यह लिंग है। आप वही कल्पना करते हैं, जो आपके दिमाग में सबसे ज़्यादा चल रहा हो। उनके मन और जीवन में सेक्स था, तो उन्हें योनि के अंदर लिंग दिखाई दिया। अगर आपके पास वह निराकार सार्वभौमिक ऊर्जा है, तो आपको शिवलिंग दिखाई देगा।
योगशिखा उपनिषद के अनुसार, "यह लिंगम स्वयं ही निर्माता और सृजन है- अगर आप शिवलिंग को ध्यान से देखें, तो आपको निश्चित रूप से दो चरणों का समूह दिखाई देगा, जिस पर मुख्य लिंगम खड़ा है। लिंगम के ठीक बगल में शिव का 'त्रिशूल' है, जो विश्व के तीन गुणों को दर्शाता है- 1. सत्व 2. रज और 3. तम। ये तीन गुण या गुण आधार से लिंगम का निर्माण करते हैं जैसे-
1. आधार या भूमि भाग-
यह सात्विक भाग है, जहां भगवान ब्रह्मा निवास करते हैं। यह उस शांति को दर्शाता है, जो तब बनी रहती है जब व्यक्ति जीवन के हर कदम पर भगवान की छाया में रहता है।
2. ऊपरी चरण या पीठम
यह रजोगुण वाले भगवान, यानी भगवान विष्णु का पात्र है। यहां रहकर विष्णु सर्वोच्च सत्ता को ऊपर रखते हैं और नीचे रचयिता और सृष्टि की रक्षा करते हैं। चरण में एक जल निकासी प्रणाली है, जो मोक्ष के प्रदाता के रूप में भगवान विष्णु की विशेषताओं को दर्शाती है। यहां जल जीवन को दर्शाता है और जल का प्रवाह भगवान के मार्ग का अनुसरण करने से मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।
दक्षिण भारतीय लोग नाम में लगाते हैं लिंगम
लिंग शब्द पुरुष जननेन्द्रिय से जुड़ा होता, तो दक्षिण भारतीय लोगों के सरनेम में लिंग शब्द नहीं लगा होता, जैसे- लिंगास्वामी, रामलिंगम, नागलिंगम इत्यादि वगैरह।
शिवलिंग का अर्थ होता है शिव का प्रतीक। ठीक ऐसे ही हिंदी व्याकरण में में पुल्लिंग का अर्थ हो जाता है- पुरुष का प्रतीक। स्त्रीलिंग का अर्थ होता है- स्त्री का प्रतीक। नपुंसक लिंग का अर्थ है- नपुंसक का प्रतीक। लिंग शब्द संस्कृत में प्रतीक या चिन्ह को दर्शित करता है, जननेन्द्रिय को नहीं।
शिवलिंग का अर्थ न आदि न अंत
अगर स्कन्दपुराण में देखें तो वहां साफ लिखा है कि आकाश खुद ही लिंग है। शिवलिंग वह धुरी है, जिस पर वातावरण सहित घूमती हमारी धरती और समस्त ब्रह्मांड टिका है। शिवलिंग का एक पर्याय अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई आदि या अन्त न हो।