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Shivarinarayan: छत्तीसगढ के शिवरीनारायण में शबरी और राम की अद्भुत स्मृति, जानिए शबरी की धार्मिक भूमि के बारे में...

Shivarinarayan: छत्तीसगढ के शिवरीनारायण में शबरी और राम की अद्भुत स्मृति, जानिए शबरी की धार्मिक भूमि के बारे में...
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By Gopal Rao

कृति तिवारी

Shivarinarayan : रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार रायगढ़ में रामायण महोत्सव का आयोजन करा रही है। विदेशों से आए विदेशों से आए 27 कलाकारों के अलावा इस महोत्सव में 12 राज्यों के 270 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं और प्रदेश के 70 कलाकार अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं। केरल, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कलाकारों ने पहले दिन खूबसूरत प्रस्तुति दी। आज दूसरे दिन भी दोपहर ढलने के बाद पूरा रायगढ़ राम रंग में रंग जाएगा। छत्तीसगढ़ में रामायण महोत्सव के मौके पर छत्तीसगढ़ में भगवान राम को लेकर न्यू पावरगेम के खास रिपोर्ट की पहली कड़ी में आज बात शिवरीनारायण की, जहां प्रभु श्री राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाकर अपने प्रेम से कई संदेश दिए।

छत्तीसगढ़ के कण-कण में, रज-रज में राम है। यहां की लोक आस्था के केंद्र में भगवान राम हैं। भगवान राम छत्तीसगढ़ में भांचा के रुप में घर-घर आराध्य हैं। छत्तीसगढ़ की पावन भूमि भगवान श्रीराम की चरण धूलि से सजी है। वनवास के दौरान वे छत्तीसगढ़ के जिन-जिन जगहों से गुजरे, वे पूजे जाते हैं और सबका अपना धार्मिक, पुरात्विक महत्व है। महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम तट पर बसा है शिवरीनारायण। शबरी और नारायण के मातृप्रेम से भीगी इस धरती पर प्रदेश का इकलौता शबरी मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रामायण के समय से यहां शबरी आश्रम है। भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए शबरी-नारायण नगर बसा। हिंदू वेद पुराणों के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को शिवरीनारायण से ही ओडिशा के पुरी ले जाया गया था। ये भी मान्यता है कि हर साल माघी पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ यहां नारायण रुप में विराजते और दर्शन देते हैं। याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में उल्लेख है कि भगवान श्रीराम का नारायणी रूप यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। इसीलिए शिवरीनारायण को गुप्त तीर्थधाम भी कहा जाता है।


हर युग में शिवरीनारायण का अस्तित्व

हर युग में शिवरीनारायण का अस्तित्व रहा है। सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात शिवरीनारायण मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से विख्यात शिवरीनारायण का जिक्र स्कंध पुराण में भी मिलता है। जिसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। शिवरीनारायण को तीर्थनगरी प्रयाग जैसी मान्यता है।


यहीं शबरी ने राम को खिलाए जूठे बेर

शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति का साक्षी शिवरीनारायण प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से विख्यात रहा है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द शिवरीनारायण रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। इसी वजह से भी इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम को यहीं पर शबरी ने अपने जूठे बेर खिलाये थे। जिसके बाद शबरी और नारायण के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर में ये शिवरी नारायण हो गया। यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना प्राचीन मंदिर भी है।


माघी पूर्णिमा को लगता है मेला

गुप्त धाम शिवरीनारायण में हर साल माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक माघी मेला लगता है। इस मेले में लाखों की संख्या में दर्शनार्थी भगवान नारायण के दर्शन करने पहुंचते हैं। हजारों लोग जमीन में लोट मारते हुए पहुंचते हैं। मान्यता है कि माघी पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ शिवरीनारायण में दर्शन देते हैं। यहां के प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों की भव्यता और अलौकिक गाथा अपनी मूलभूत संस्कृति के शाश्वत रूप में मौजूद है।


टेंपल सिटी में चहुंओर भगवान

इसे अब बडा मंदिर और नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। प्राचीन स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला के बेजोड़ नमूने वाले इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। शिवरीनारायण मंदिर में वैष्णव समुदाय द्वारा वैष्णव शैली की अदभुत कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। उत्तर भारतीय आर्य शिखर शैली में बने बड़े मंदिर का प्रवेश द्वार सामान्य कलचुरि प्रकार के मंदिरों से भिन्न और नागवंशी मंदिरों के प्रवेश द्वार की तरह है। बड़े नर नारायण मंदिर की परिधि 136 फीट तथा ऊंचाई 72 फीट है जिसके ऊपर 10 फीट का स्वर्णिम कलश है। मंदिर के चारों ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। एक अन्य मान्यता के मुताबिक यहां 11 शताब्दी में हैह्य वंश के राजाओं ने लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया। नर-नारायण मंदिर के ठीक सामने 12 वीं शताब्दी का केशवनारायण मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की अत्यंत प्राचीन भव्य प्रतिमा है इस मूर्ति के चारों और भगवान विष्णु के 10 अवतारों का सुंदर अंकन है। इस मंदिर में दो स्तंभ हैं एक स्तंभ में सुंदर चित्रकारी की गई है जबकि दूसरे स्तंभ को खाली छोड़ दिया गया है। प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान नारायण के पैर के पास जिस स्त्री का चित्रांकन किया गया है वहीं सबरी है। पंचरथ तल विन्यास पर निर्मित यह भूमिज शैली का ईटो से निर्मित सुन्दर मंदिर है। जिसका निर्माण काल 9 वीं सदी ईस्वी माना जाता है। शिवरीनारायण में 9 वीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियां स्थापित है। शिवरीनारायण में बड़े मंदिर के अलावा मां अन्नपूर्णा, चंद्रचूड़ और महेश्वर महादेव, केशवनारायण, श्रीराम लक्ष्मण जानकी, जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, राधाकृष्ण, काली और मां गायत्री का भव्य और आकर्षक मंदिर है। जहां के दर्शन करने लाखों लोग हर साल पहुंचते हैं।


प्रमुख जगहों से दूरी

  • राजधानी रायपुर से 140 किलोमीटर
  • जिला जांजगीर से 50 किलोमीटर
  • कोरबा से 110 किलोमीटर
  • रायगढ़ से 110 किलोमीटर
  • बलौदाबाजार से 52 किलोमीटर

Gopal Rao

गोपाल राव रायपुर में ग्रेजुएशन करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। विभिन्न मीडिया संस्थानों में डेस्क रिपोर्टिंग करने के बाद पिछले 8 सालों से NPG.NEWS से जुड़े हुए हैं। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं।

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