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SHITALA ASHTAMI : संक्रामक रोगों से मुक्ति पाने माँ शीतला की उपासना करेंगी माताएं, 251 साल पुराने शीतला मंदिर में धूमधाम से मनाया जाएगा पर्व

शीतला देवी की उपासना अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है। प्रकृति के अनुसार शरीर निरोगी हो, इसलिए भी शीतला अष्टमी SHITALA ASHTAMI का व्रत करना चाहिए। लोकभाषा में इस त्योहार को बासोड़ा भी कहा जाता है।

SHITALA  ASHTAMI : संक्रामक रोगों से मुक्ति पाने माँ शीतला की उपासना करेंगी माताएं, 251 साल पुराने शीतला मंदिर में धूमधाम से मनाया जाएगा पर्व
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By Meenu

शीतला अष्टमी का पर्व भक्तों के लिए बेहद खास होता है। इस वर्ष 2 अप्रैल, मंगलवार को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। वहीं कुछ लोग होली के बाद के सोमवार को ठंडा वार मानकर माता भी पूजा करते हैं।

छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती में 251 साल पुराना शीतला मंदिर है, जहां माता की पूजा पिण्डी रूप में पूजा की जाती है।

इस दिन शीतला देवी की उपासना अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है। प्रकृति के अनुसार शरीर निरोगी हो, इसलिए भी शीतला अष्टमी का व्रत करना चाहिए। लोकभाषा में इस त्योहार को बासोड़ा भी कहा जाता है।

सुख-समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी

शीतला मंदिर रायपुर के पुजारी पं.नीरज सैनी के अनुसार, माता शीतला स्वच्छता सेहत और सुख-समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। जिस घर में सप्तमी-अष्टमी तिथि को शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत और पूजा के विधि-विधान का पालन किया जाता है, वहां घर में सुख, शांति बनी रहती है और रोगों से मुक्ति भी मिलती है। मान्यता है कि नेत्र रोग, ज्वर, चेचक, कुष्ठ रोग, फोड़े-फुंसियां तथा अन्य चर्म रोगों से आहत होने पर मां की आराधना रोगमुक्त कर देती है, यही नहीं माता की आराधना करने वाले भक्त के कुल में भी यदि कोई इन रोंगों से पीड़ित हो तो ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं। मां की अर्चना का स्त्रोत स्कंद पुराण में शीतलाष्टक के रूप में वर्णित है। ऐसा माना जाता है कि इस स्त्रोत की रचना स्वयं भगवान शंकर ने जनकल्याण में की थी।

मंत्र

इस दिन माता को प्रसन्न करने के लिए शीतलाष्टक का पाठ करना चाहिए। मां का पौराणिक मंत्र 'हृं श्रीं शीतलायै नमः' भी सभी संकटों से मुक्ति दिलाते हुए जीवन सुख-शांति प्रदान करता है।

स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला का रूप अनूठा है. देवी शीतला का वाहन गधा है. देवी शीतला अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगानुनाशक जल रखती हैं, तो दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं. माना जाता है कि इनकी पूजा और ये व्रत करने से चेचक, अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है.माता शीतला की आराधना से व्यक्ति को बीमारियों से मुक्ति मिलती है.




शीतला अष्टमी पूजा विधि

  • शीतला अष्टमी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
  • एक थाली में एक दिन पहले बनाए गए पकवान जैसे मीठे चावल, हलवा, पूरी आदि रख लें.
  • पूजा के लिए एक थाली में आटे के दीपक, रोली, हल्दी, अक्षत, वस्त्र बड़कुले की माला, मेहंदी, सिक्के आदि रख लें. इसके बाद शीतला माता की पूजा करें.माता शीतला को जल अर्पित करें. वहां से थोड़ा जल घर के लिए भी लाएं और घर आकर उसे छिड़क दें.माता शीतला को यह सभी चीजें अर्पित करें फिर परिवार के सभी लोगों को रोली या हल्दी का टीका लगाएं. यदि पूजन सामग्री बच जाए तो गाय को अर्पित कर दें. इससे आपके जीवन में खुशहाली बनी रहेगी.

नहीं बनता है खाना

शीतला अष्टमी के दिन चूल्हा नहीं जलाना चाहिए. इस दिन बासी भोजन ही करना चाहिए. मां शीतला को ताजा भोजन का बिल्कुल भी भोग न लगाएं, बल्कि शीतला सप्तमी के दिन बनाए गए भोजन का ही सेवन करे. शीतला अष्टमी के दिन घर में झाड़ू लगाने की मनाही होती है. शीतला अष्टमी के दिन नए कपड़े या फिर डार्क कलर के कपड़े पहनने से बचना चाहिए. इस दिन मांस-मदिरा का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. मान्यताओं के अनुसार, शीतला अष्टमी के दिन सुई में धागा नहीं डालना चाहिए और न ही सिलाई करनी चाहिए.


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