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Sharad Poornima 2025 : यहाँ शरद पूर्णिमा पर बैगा पर आती है देवी माँ, पी जाता है कई बकरों का खून

Sharad Poornima 2025 : रायगढ़ जिले मानकेश्वरी देवी मंदिर में शरद पूर्णिमा के दिन बैगा के शरीर में देवी आती हैं और वो बलि दिए गए बकरों का खून पीती हैं।

Sharad Poornima 2025 : यहाँ शरद पूर्णिमा पर बैगा पर आती है देवी माँ, पी जाता है कई बकरों का खून
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By Meenu Tiwari

Sharad Poornima 2025 : छत्तीसगढ़ के एक इलाके में शरद पूर्णिमा के दिन एक जगह ऐसी है, जहाँ खीर की नहीं खून की नदी बहती है. यहाँ का एक बैगा इस दिन बकरे की बलि देकर उसका खून पी जाता है. यहां के श्रद्धालुओं के मुताबिक इस दिन बैगा के शरीर में देवी आतीं हैं और वो बलि दिए गए बकरों का खून पीती हैं।


हम बात कर रहे हैं रायगढ़ जिले मानकेश्वरी देवी मंदिर की, जहाँ बैगा के शरीर में देवी आतीं हैं और वो बलि दिए गए बकरों का खून पीती हैं। बलि की ये परंपरा करीब 500 साल से चली आ रही है।


जिला मुख्यालय से करीब 27 किमी दूर करमागढ़ में विराजी मां मानकेश्वरी देवी रायगढ़ राजघराने की कुल देवी हैं। शरद पूर्णिमा के दिन दोपहर बाद यहां बलि पूजा शुरू हुई। श्रद्धालुओं के मुताबिक जिनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वे यहां बकरा और नारियल लाकर चढ़ाते हैं। देवी पूजन समिति के अनुसार बलि पूजा से एक रात पहले यानि की आज निशा पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाएगी। जब यह पूजा होती है, तो राज परिवार से एक ढीली अंगूठी बैगा के अंगूठे में पहनाई जाती है, जो उसके नाप की नहीं होती।




कई गांव से आते हैं श्रद्धालु


शरद पूर्णिमा के दिन करमागढ़ में होने वाले बलि पूजा को देखने रायगढ़ के अलावा दूसरे जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। जिसमें रायगढ़ के जोबरो, तमनार, गौरबहरी, हमीरपुर, लामदांड, कुरसलेंगा, भगोरा, मोहलाई, बरकछार, चाकाबहाल, अमलीदोड़ा, ओड़िसा के सुंदरगढ़, सारंगढ़ जिले के विजयपुर, जुनवानी, बंगुरसिया सहित कई गांव शामिल हैं।


जैसे ही बलि पूजा होती है, यह अंगूठी पूरी तरह से कस जाती है


बलि पूजा से एक रात पहले, निशा पूजा बड़े विधि-विधान से आयोजित की जाती है। देवी पूजन समिति के सदस्यों के अनुसार, इस पूजा में राज परिवार से एक ढीली अंगूठी बैगा के अंगूठे में पहनाई जाती है। जैसे ही बलि पूजा होती है, यह अंगूठी पूरी तरह से कस जाती है, जो दर्शाती है कि देवी का वास अब बैगा के शरीर में हो गया है। इसके बाद श्रद्धालु बैगा के पैर धोते हैं और सिर पर दूध डालकर पूजा करते हैं। यह सब कुछ उस आस्था को दर्शाता है, जिसे स्थानीय लोग मानते हैं।


मंदिर और पूजा पर पौराणिक मान्यता


ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 1700 ईसवी में हिमगिरि (ओड़िसा) रियासत का राजा, जो युद्ध में पराजित हो गया था, उसे जंजीरों में बांधकर जंगल में छोड़ दिया गया। राजा जंगल में भटकते हुए वर्तमान तमनार ब्लाक के ग्राम कर्मागढ़ में पहुंच गया, तब उन्हें देवी ने दर्शन देकर बंधन मुक्त किया।




बताया जाता है कि इस तरह एक घटना सन 1780 में तब हुई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अंग्रेज ने कठोर लगान वसूलने के लिए रायगढ़ और हिमगिरी पर हमला किया था। तब यह युद्ध कर्मागढ के जंगली मैदान पर हुआ था। इसी दौरान जंगल से मधुमक्खियों, जंगली कीटों का हमला मंदिर की ओर से अंग्रेज पर हुआ। इस दौरान अंग्रेज पराजित होकर लौट गए और उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया।

रक्तपान से नहीं होता है शरीर में कोई दुष्प्रभाव

बैगा में माता प्रवेश करती है तो बैगा पशुबलि का रक्तपान करता है। इसका दुष्प्रभाव भी माता की कृपा से उसके शरीर पर नहीं पड़ता है। कई गुना रक्त पीने के बावजूद उनका स्वास्थ्य सही रहता है। बलि पूजा के बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का भी वितरण किया गया।


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