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Ram Navami Special Orchha: अयोध्या नहीं यहां आज भी रहते हैं श्रीराम, लोग करते हैं इन नियमों का पालन, होती है हर कामना पूरी

Ram Navami Special Orchhaइस जगह पर भगवान के रूप में नहीं, बल्कि उस भाग के राजा के रूप में स्थापना मिली है। वहाँ के लिए भगवान राम की स्थानीय परिचय के बजाय, राजा राम के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर उन्हीं का राज्य कायम है, और लोग उन्हें अपने नेता और प्रेरणा के स्त्रोत के रूप में मानते हैं।

Ram Navami Special Orchha: अयोध्या नहीं यहां आज भी रहते हैं श्रीराम, लोग करते हैं इन नियमों का पालन, होती है हर कामना पूरी
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By Shanti Suman

Ram Navami Special:मध्य प्रदेश के ओरछा में आज भी राम का शासन चलता है। यहां के टीकमगढ़ जिले के ओरछा कस्बे में भगवान राम का राज अब भी विचारकों और भक्तों की ध्यान में है। सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद इस स्थान पर राम भक्तों की सलामी होती है। ओरछा शहर ने कई तरह की छूटों से गुज़रा है, लेकिन इसका मूल्य सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार और अन्य अधर्मिकताओं से दूरी बनाए रखने में है। यहां के लोग राजा राम के नाम पर रिश्वत नहीं लेते और न्याय व्यवस्था को स्थापित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

भगवान के रूप में नहीं बल्कि उस भाग के राजा के रूप में स्थापना मिली है। उस जगह के लिए वह भगवान राम नहीं बल्कि राजा राम हैं। यहाँ उन्ही का राज्य कायम है। जी हां , मध्य प्रदेश के ओरछा में आज भी राम का शासन चलता है।

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के ओरछा कस्बे में आज भी भगवान राम का राज चलता है। यहां राजा राम को सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। ओरछा शहर को कई तरह के करों से छूट मिली हुई है। यहां पर लोग राजा राम के डर से रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार करने से डरते हैं।

ओरछा के प्रसिद्ध मंदिर में भगवान राम की पूजा भगवान के रूप में नहीं बल्कि राजा के रूप में की जाती है। एक जमाने में यहां की महारानी राजा राम को अयोध्या से ओरछा लेकर आईं थी। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है।ओरछा के महाराजा मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से वृंदावन चलने को कहा, लेकिन रानी राम भक्त थीं, तो उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। राजा ने गुस्से में आकर महारानी से कहा कि- इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। रानी अयोध्या गई और सरयू नदी के किनारे अपनी कुटी बनाकर साधना शुरू कर दी और वहां पर संत तुलसीदास से आशीर्वाद पाकर रानी की तपस्या और कठोर हो गई। रानी को कई महीनों तक राजा राम के दर्शन नहीं हुए तो वो निराश होकर अपने प्राण देने सरयू में कूद गई और जहां उन्हें नदी में राजा राम के दर्शन हुए।

ओरछा आए राम

रानी ने भगवान राम से ओरछा चलने का निवेदन किया। उस समय भगवान श्रीराम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा तभी जाएंगे, जब इलाके में उन्हीं की सत्ता रहे और राजशाही (राजा का शासन) पूरी तरह से खत्म हो जाए। इस बात पर महाराजा मधुकरशाह ने ओरछा में ‘रामराज' की स्थापना की, जो आज भी वैसी ही है।

ओरछा में ये हैं नियम

इस मंदिर में कोई भी बेल्ट लगाकर नहीं जा सकता, क्यों कि ये राजाराम का है और उनके दरबार में कमर कस कर नहीं जा सकते। सिर्फ राजा राम की सेवा में तैनात सिपाही ही बेल्ट लगा सकते हैं। मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया था लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी उस मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। ओरछा शहर को कई तरह के करों से छूट मिली हुई है। यहां पर लोग राजा राम के डर से रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार करने से डरते हैं।

इस मंदिर का प्रबंधन मध्य प्रदेश शासन के अधीन है। राजा राम के मंदिर की मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि ये अयोध्या से लाई गई हैं। मंदिर में प्रसाद का एक काउंटर है। यहां 22 रुपये का प्रसाद मिलता है। प्रसाद में लड्डू और पान का बीड़ा दिया जाता है। मंदिर प्रांगण के पास दो विशाल स्तंभ हैं जिन्हें श्रावण-भादों कहा जाता है।

मंदिर सुबह 8 बजे से 10:30 तक आम लोगों के दर्शन के लिए खुलता है। इसके बाद शाम को मंदिर 8 बजे दुबारा खुलता है। राजा राम को सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है।

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