Pitru Paksha 2025 : कहाँ रहते हैं पितर देव ? पितृ पक्ष के बाद धरती से कहाँ जायेंगे पितर देव
Pitru Paksha 2025 : पितृ लोक वह दिव्य और आध्यात्मिक क्षेत्र है जहां हमारे पूर्वजों की आत्माएं निवास करती हैं।

Pitru Paksha : पितृ पक्ष में पितर देव धरती पर आते हैं. पितृपक्ष के दौरान पितृ सेवक अपने पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए विशेष पूजा करते हैं। पर क्या आपको पता है पितर देव रहते कहा हैं ? तो चलिए फिर आज पितृ लोक का स्थान, उसका महत्व और इसमें प्रवेश की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानेंगे।
पितृ लोक (Pitrulok mystery) वह दिव्य और आध्यात्मिक क्षेत्र है जहां हमारे पूर्वजों की आत्माएं निवास करती हैं। यह संसार के भौतिक लोक से अलग है और अदृश्य स्वरूप का है। यहाँ आत्माएं शांति, पुण्य और दिव्य ऊर्जा के साथ रहती हैं।
सनातन शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु लोक के ऊपर दक्षिण दिशा में लगभग 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक स्थित है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि मृत्यु के बाद यदि आत्मा अर्ध गति में रहती है, तो वह लगभग 100 वर्षों तक मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की स्थिति में रहती है।
चंद्रमा के ऊर्ध्व भाग में पितृ लोक
इसके अलावा, कहा जाता है कि चंद्रमा के ऊर्ध्व भाग में पितृ लोक है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, सूर्य की प्रमुख किरण ‘अमा’ के माध्यम से पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और श्रद्धालुओं के तर्पण और पिंडदान (Pitru shradh) को ग्रहण करते हैं।
पितृ लोक में प्रवेश कौन कर सकता है ?
पितृ लोक (Pitru Lok Secrets) में सीधे भौतिक रूप से कोई नहीं जा सकता। यहां प्रवेश श्रद्धा, भक्ति और कर्मयोग के माध्यम से होता है। जब हम पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, तो हमारे द्वारा किया गया कर्म पितरों तक पहुंचता है। यह उनके लिए शांति, संतोष और मोक्ष का कारण बनता है। यानी, पितृ लोक में प्रवेश श्रद्धालुओं के पुण्य कर्म और भक्ति भाव से ही संभव होता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार
मनुष्यों के 360 दिन देवताओं के एक दिन के बराबर होते हैं.
मनुष्यों के 30 दिन पितरों के एक दिन के बराबर होते हैं.
इस गणना के अनुसार, पितृ लोक का एक महीना पृथ्वी के 30 साल और पितृ लोक का एक साल पृथ्वी के 360 साल के बराबर होता है.
पितृ लोक का महत्व और श्राद्ध
पितृ लोक का संबंध पितृ ऋण से है, जिसे चुकाने के लिए श्राद्ध और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब हम पितृपक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, तो वह सीधे पितरों तक पहुंचता है. समय का यह अंतर बताता है कि पितरों की दृष्टि से वर्ष में एक बार किया गया श्राद्ध उनके लिए निरंतर ताजगी और तृप्ति का कारण बनता है. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है. यह भी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ लोक के दरवाजे खुल जाते हैं और पितृ पृथ्वी पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं. इसी कारण इस अवधि में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व होता है. यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका भी है.
