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Pitru Paksha 2024 : छत्तीसगढ़िया गोबर से देहरी लीपकर करते हैं "पितरों" का स्वागत

Pitru Paksha 2024 : छत्तीसगढ़ में पितृ पक्ष शुरू होने के एक दिन पहले लोग अपने घरों की अच्छे से साफ-सफाई करते हैं, मिट्टी के घर वाले लोग गोबर से लिपकर चूना से पोताई करते हैं। खासतौर पर लोग अपने आंगन की देहरी के हिस्से की सफाई करते हैं।

Pitru Paksha 2024 : छत्तीसगढ़िया गोबर से देहरी लीपकर करते हैं पितरों का स्वागत
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By Meenu

Pitru Paksha 2024 in chattisgarh : छत्तीसगढ़ में हर त्यौहार को लेकर एक अलग परंपरा और नियम है. यहाँ देवी-देवताओं से लेकर पितृ तक के पर्व को बहुत ही धूमधाम और नियम को ध्यान में रखते हुए मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ में पितरों को भी खास तरह से पूरे सम्मान के साथ अपने घरों में बुलाया जाता है और विशेष परम्परा निभाई जाती है. इस साल 17 सितंबर 2024 से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है, जो 2 अक्तूबर 2024 को समाप्त होंगे। पितर पक्ष को लेकर गणेश पक्ष में ही सारे घरों में तैयारियां चालू हो जाती है. साफ-सफाई से लेकर पूजा सामग्री की व्यवस्था में परिवार के बड़े-बुजुर्ग लग जाते है.

छत्तीसगढ़ में सभी हिंदू परिवारों के द्वारा पितृ पक्ष मनाया जाता है। पितृ पक्ष शुरू होने के एक दिन पहले लोग अपने घरों की अच्छे से साफ-सफाई करते हैं, मिट्टी के घर वाले लोग गोबर से लिपकर चूना से पोताई करते हैं। खासतौर पर लोग अपने आंगन की देहरी के हिस्से की सफाई करते हैं।

आटा से चौक बनाया जाता है

दूसरे दिन पितृपक्ष लगने के बाद रोजाना आंगन की देहरी या घर के बाहर दरवाजे की देहरी के पास के हिस्से को रोजाना गोबर से लिपकर उसमें आटा से चौक बनाया जाता है। इस चौक में केवल आटे का उपयोग होता है न कि रंगोली या किसी दूसरे चीजों का।

फूल बिछाकर करते हैं स्वागत




गोबर से लिपकर उस जगह पर चौक बनाने और उसमें फूल बिछाने को लेकर यह मान्यता है कि पितर देव जब तालाब या नदी से तर्पण लेकर घर आएंगे तो वे इसी चौक और फूल के ऊपर बैठेंगे। यह कार्य पितर देवताओं के स्वागत और सम्मान के लिए किया जाता है। चौक के ऊपर में सफेद और पीले रंग के फूलों को ही बिछाया जाता है। भूलकर भी लाल रंग के फूल को चौक के ऊपर नहीं रखना चाहिए नहीं तो पितर देव नाराज हो सकते हैं।


तोरई का विशेष महत्व

पितृपक्ष में तोरई सब्जी का विशेष महत्व है। प्राचीन लोक परंपरानुसार तोरई के पत्तों से ही पितरों को अर्ध्य दिया जाता है। तोरई के पत्ते पर रखकर ही भोजन दिया जाता है और पकवानों में तोरई का भजिया, सब्जी बनाई जाती है। यह परंपरा अर्से से चली रही है। लिहाजा इन पंद्रह दिनों में तोरई की खासी मांग रहती है।

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