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Parivartini Ekadashi 2025: परिवर्तिनी एकादशी के दिन जरूर पढ़ें ये कथा, वरना अधूरा रह जाएगा व्रत

हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को(Parivartini Ekadashi 2025) परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. साल 2025 में यह पावन तिथि 3 सितंबर को पड़ रही है. इस दिन सिर्फ उपवास या नामस्मरण ही नहीं, एक प्राचीन कथा का विशेष महत्व है,

Parivartini Ekadashi 2025: परिवर्तिनी एकादशी के दिन जरूर पढ़ें ये कथा, वरना अधूरा रह जाएगा व्रत
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By Anjali Vaishnav

Parivartini Ekadashi 2025: हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को(Parivartini Ekadashi 2025) परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. साल 2025 में यह पावन तिथि 3 सितंबर को पड़ रही है. इस दिन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इस(Parivartini Ekadashi 2025) एकादशी को भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हुए अपना करवट बदलते हैं, और इसे एक धार्मिक रूप से परिवर्तनकारी क्षण माना जाता है.

लेकिन इस दिन सिर्फ उपवास या नामस्मरण ही नहीं, एक प्राचीन कथा का विशेष महत्व है, जिसे सुनना और समझना हर भक्त के लिए आवश्यक है. यह कथा एक राजा और दान के ऊपर है, साथ ही त्याग, भक्ति और धर्म की सर्वोच्चता को दर्शाती है.

दैत्यराज बलि की कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha)

त्रेता युग में एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य हुआ करता था राजा बलि. बलि पराक्रमी था, साथ ही एक आदर्श दाता और धर्मनिष्ठ शासक भी था. उसने अपने तप और वीरता के बल पर तीनों लोकों स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल पर अधिकार जमा लिया था. बलि की बढ़ती शक्ति से देवगण चिंतित हो उठे. इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित करने के बाद अब उसका अगला लक्ष्य स्वर्ग को स्थायी रूप से अपने अधीन करना था.

यह परिस्थिति उत्पन्न होते देख सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उनसे मदद की गुहार लगाई. भगवान ने आश्वासन दिया कि वे धर्म की रक्षा अवश्य करेंगे और इसी उद्देश्य से उन्होंने वामन अवतार लिया जो उनका पाँचवाँ अवतार माना जाता है.

भगवान विष्णु ने एक ब्रह्मचारी बटुक (बालक) के रूप में अवतार लिया और यज्ञ के दौरान बलि के समक्ष पहुँचे. राजा बलि, जो कि अपने यश और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था, ब्राह्मण रूपी वामन को देखकर प्रसन्न हुआ और उन्हें वर देने को तैयार हो गया.

वामन ने मात्र तीन पग भूमि की मांग की. यह सुनकर बलि सहित सभी दरबारी हँस पड़े कि इतना छोटा सा वरदान क्यों मांगा जा रहा है. लेकिन बलि ने वचन दे दिया. उसी समय दैत्यगुरु शुक्राचार्य को आभास हो गया कि यह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं, जो दैत्यों की बढ़ती शक्ति को रोकने आए हैं.

शुक्राचार्य ने बलि को चेताया कि यदि वह यह वरदान देता है तो वह अपना सब कुछ खो देगा. लेकिन बलि ने कहा "मैं अपने वचन से पीछे नहीं हट सकता, चाहे सामने स्वयं ईश्वर ही क्यों न हों." जैसे ही बलि ने वामन को भूमि दान की, भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर लिया. पहले पग में उन्होंने पृथ्वी और आकाश को नाप लिया, दूसरे पग में समस्त दिशाओं को. अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान शेष नहीं बचा. भगवान ने बलि से पूछा, तीसरा पग कहाँ रखें?"बलि ने विनम्रता और समर्पण के साथ कहा प्रभु, अपना तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें.


यह देखकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया और वरदान दिया कि कलियुग में वह एक बार फिर राज करेगा. इसके अलावा भगवान विष्णु ने वचन दिया कि वे बलि के द्वार पर अनंत काल तक द्वारपाल बनकर रहेंगे .

कथा का आध्यात्मिक संदेश

यह कथा दान या शक्ति की नहीं है, बल्कि यह बताती है कि वचन, भक्ति और निष्ठा का मूल्य सबसे बड़ा है. राजा बलि ने जब यह जाना कि भगवान स्वयं उसके द्वार पर आए हैं, तब भी वह अपने वचन से पीछे नहीं हटा. यही उसका महानता का प्रतीक बना. इस कथा में एक और गहरा संदेश छिपा है अहंकार चाहे किसी का भी हो, वह ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता.

क्यों जरूरी है इस कथा का पाठ?

परिवर्तिनी एकादशी पर इस कथा का श्रवण या पाठ करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह मनुष्य को उसके कर्तव्यों और धार्मिक मूल्यों की याद दिलाती है. इस दिन अगर आप उपवास न भी कर सकें, तो इस कथा को जरूर सुनें या पढ़ें. कहते हैं कि इस कथा का पाठ करने से वाजपेय यज्ञ जितना पुण्य प्राप्त होता है, और भगवान विष्णु की कृपा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं. इस एकादशी पर संकल्प लें कि धर्म, सत्य और त्याग के पथ पर चलेंगे क्योंकि यही व्रत का सच्चा सार है.

(Disclamer: दी गई सारी जानकारी धर्मिक मान्यताओं के आधार पर है NPG.NEWS इसकी पुष्टी नहीं करता.)

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